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म्याँमार: 'मानवाधिकारों के व्यवस्थागत हनन' को रोकने के लिये, सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव नाकाफ़ी

म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के विरोध में अमेरिकी शहर वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस के बाहर प्रदर्शन.
Unsplash/Gayatri Malhotra
म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के विरोध में अमेरिकी शहर वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस के बाहर प्रदर्शन.

म्याँमार: 'मानवाधिकारों के व्यवस्थागत हनन' को रोकने के लिये, सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव नाकाफ़ी

मानवाधिकार

म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने आगाह किया है कि यूएन सदस्य देशों द्वारा मज़बूत, समन्वित कार्रवाई के अभाव में, देश के हालात बिगड़ने की आशंका है. फ़रवरी 2021 में म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट होने के बाद से अब तक, सुरक्षा परिषद ने बुधवार को अपना पहला प्रस्ताव पारित किया, मगर यूएन विशेषज्ञ ने इसके मसौदे को अपर्याप्त बताया है.

विशेष रैपोर्टेयर ने माना कि इस प्रस्ताव की भाषा को जिस तरह से तैयार किया गया, उससे प्रस्ताव को वीटो नहीं किया जा सका है, मगर उनके अनुसार यह नाकाफ़ी है.

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टॉम एंड्रयूज़ ने कहा कि सुरक्षा परिषद के अध्याय VII के तहत आने वाले अधिकारों के इस्तेमाल के बिना, कुछ क़दम उठाये जाने की मांग करना, म्याँमार के ग़ैरक़ानूनी सैन्य नेतृत्व को आमजन पर हमले करने व उनका जीवन बर्बाद करने से नहीं रोकेगा.

देश में सैन्य तख़्तापलट के बाद से ही बड़े पैमाने पर सैन्य बलों द्वारा दमनात्मक कार्रवाई की गई है, विरोध प्रदर्शनों के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है और हज़ारों को गिरफ़्तार किया गया है.

विशेष रैपोर्टेयर ने क्षोभ प्रकट किया कि सैन्य नेतृत्व ने देश की पाँच करोड़ 40 लाख आबादी को बंधक बना कर रखा हुआ है.

बहुप्रतीक्षित प्रस्ताव

प्रस्ताव में पिछले वर्ष सैन्य तख़्तापलट के बाद देश में आपात स्थिति जारी रहने पर गहरी चिन्ता जताई गई है, जिसका स्थानीय आबादी पर गहरा असर हुआ है.

प्रस्ताव में, देश में शान्ति स्थापना हेतु योजना को लागू करने के लिये तत्काल, ठोस क़दम उठाये जाने का आग्रह किया गया है, जिस पर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) द्वारा सहमति व्यक्त की गई है.

साथ ही, लोकतांत्रिक संस्थाओं व प्रक्रियाओं को बनाए रखना होगा.

सुरक्षा परिषद में लम्बे समय से इस संकट से निपटने के उपायों पर मतभेद है, और चीन व रूस ने कठोर कार्रवाई किये जाने का विरोध किया है.

इन दोनों देशों के साथ भारत ने भी बुधवार को सुरक्षा परिषद में मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जबकि 12 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाला.

मतदान के बाद, चीन के राजदूत झाँग जून ने बताया कि उनका देश म्याँमार पर एक प्रस्ताव के बजाय, एक औपचारिक वक्तव्य पारित करने के पक्ष में था.

वहीं, रूस के राजदूत वसीली नेबेनज़िया ने कहा कि मॉस्को, म्याँमार में हालात को अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिये ख़तरा नहीं मानता है, और इसलिये परिषद को क़दम नहीं उठाने चाहिए.

मज़बूत प्रस्ताव नहीं

मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने बताया कि म्याँमार में व्यवस्थागत ढँग से मानवाधिकारों के उल्लंघन को, युद्धापराध और मानवता के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है.

उनके अनुसार, इन अपराधों को एक ग़ैरक़ानूनी सैन्य व्यवस्था द्वारा हर दिन, म्याँमार की जनता के विरुद्ध अंजाम दिया जा रहा है, जिसे रोकने के लिये यूएन सदस्य देशों द्वारा समन्वित ढँग से क़दम उठाया जाना होगा.

मानवाधिकार विशेषज्ञ के अनुसार प्रस्ताव में सभी प्रकार की हिंसा पर तत्काल रोक लगाने, राजनैतिक बन्दियों को रिहा करने, मानवीय सहायता के लिये निर्बाध रास्ता मुहैया कराने, और महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों का सम्मान करने की मांग की गई है.

मगर, इन मांगों को पूरा कर पाने में विफल रहने, प्रतिबंध लगाए जाने, और सैन्य नेतृत्व द्वारा अब तक अंजाम दिये गए अपराधों की जवाबदेही तय किये जाने का उल्लेख नहीं है.

टॉम एंड्रयूज़ ने सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्य देशों, नॉर्वे, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, आइसलैंड व मैक्सिको के साथ सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि प्रस्ताव की भाषा इससे कठोर होनी चाहिए थी.

म्याँमार में युवजन, लोकतंत्र के समर्थन में हो रहे एक प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं.
Unsplash/Pyae Sone Htun
म्याँमार में युवजन, लोकतंत्र के समर्थन में हो रहे एक प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं.

नींद से जगाने वाली घंटी

प्रस्ताव में स्पष्ट किया गया है कि संकट को समाप्त करने के लिये कार्रवाई, सुरक्षा परिषद द्वारा तय नहीं की जाएगी.

“इसलिये, यह अनिवार्य है कि जिन देशों के पास म्याँमार की जनता का समर्थन करने की इच्छाशक्ति है, वे इस संहार का अन्त करने के लिये तत्काल समन्वित कार्रवाई करें.”

उन्होंने आगाह किया कि इस प्रस्ताव को आगे जाकर बन्द हो जाने वाली गली बनने से रोकना होगा, जिसके बाद कोई अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई भी ना हो.

“उन देशों के लिये यह नींद से जगाने वाली एक घंटी होनी चाहिए, जोकि चहुँओर से घिरे लोगों का समर्थन करते हैं.”

यूएन विशेषज्ञ ने पिछले महीने महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की उस घोषणा से सहमति जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने म्याँमार को निराश किया है.

“इस विफलता को ऐसे प्रस्तावों से दूर नहीं किया जा सकता, जिसका कोई नतीजा ना हो.”

इसके बजाय, उन्होंने लक्षित कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया है, जिसके तहत प्रतिबंधों के लिये समन्वित क़दम उठाने, सैन्य नेतृत्व को वित्त पोषित करने वाले राजस्व की डोर काटने और हथियारों व दोहरे इस्तेमाल की टैक्नॉलॉजी को बेचे जाने पर रोक लगाने की बात कही गई है.

उन्होंने कहा कि इन सभी क़दमों के लिये असल में राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.