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अफ़ग़ानिस्तान: विश्वविद्यालयों में महिलाओं पर पाबन्दी के तालेबानी आदेश की निन्दा

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त के एक विश्वविद्यालय में छात्राओं का दीक्षान्त समारोह.
UNAMA/Fraidoon Poya
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त के एक विश्वविद्यालय में छात्राओं का दीक्षान्त समारोह.

अफ़ग़ानिस्तान: विश्वविद्यालयों में महिलाओं पर पाबन्दी के तालेबानी आदेश की निन्दा

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र और मानवीय सहायता संगठनों ने अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के लिये विश्वविद्यालयों के दरवाज़े बन्द किये जाने के तालेबानी आदेश की निन्दा की है, और इस निर्णय को तत्काल वापिस लिये जाने की मांग की है.

अफ़ग़ानिस्तान में यूएन सहायता मिशन (UNAMA) ने तालेबान प्रशासन से, लड़कियों की छठी कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिये स्कूल फिर खोलने का आग्रह किया.

मिशन ने ध्यान दिलाया है कि दैनिक सार्वजनिक जीवन में महिलाओं व लड़कियों की पूर्ण भागीदारी के लिये हरसम्भव उपाय किये जाने होंगे.

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने महिलाओं के विश्वविद्यालयों में प्रवेश पर पाबन्दी को अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों के लिये क्रूर चोट और देश के लिये एक दुखद झटका बताया.

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया कि जीवन के लगभग सभी पहलुओं से महिलाओं को व्यवस्थागत ढँग से बाहर रखे जाने की मिसाल, दुनिया में और कहीं नहीं है.

मानवाधिकारों के लिये यूएन के शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अतीत के वर्षों में महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, तृतीयक स्तर पर शिक्षा के लिये उन पर पाबन्दी हृदयविदारक है.

वोल्कर टर्क ने कहा कि यह माध्यमिक स्कूलों में पढ़ रही लड़कियों को रोके जाने के बाद हुआ है. “ज़रा, उन सभी महिला चिकित्सकों, वकीलों और शिक्षकों के बारे में सोचिए, जिन्होंने ये कार्य किया है, और जो फिर देश के विकास से दूर हो जाएंगी.”

मानवाधिकार कार्यालय प्रमुख के अनुसार, महिलाओं को तृतीयक व उच्चतर शिक्षा से दूर रखा जाना, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अफ़ग़ानिस्तान के लिये तय दायित्वों का स्पष्ट उल्लंघन है.

सुनियोजित भेदभाव

बताया गया है कि युनिवर्सिटी की पढ़ाई करने से महिलाओं को रोका जाना, तालेबान की व्यवस्थागत, भेदभावपूर्ण नीतियों का ही विस्तार है.

वर्ष 2021 में देश की सत्ता पर नियंत्रण के बाद, लड़कियों को माध्यमिक स्कूल की पढ़ाई से रोका गया, महिलाओं व लड़कियों की आवाजाही पर पाबंदी लगाई गई, महिलाओं को अधिकाँश कार्यबल से दूर रखा गया, और उनके पार्क, जिम, व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर जाने पर रोक लगा दी गई.

यूएन मिशन ने सचेत किया कि इन पाबंदियों की वजह से अफ़ग़ान महिलाएँ व लड़कियाँ, घर की चारदीवारी में ही बन्द हो कर रह गई हैं.

“आधी आबादी को समाज व अर्थव्यवस्था में अर्थपूर्ण योगदान देने से रोकने के, पूरे देश के लिये विनाशकारी असर होगा.”

इन तौर-तरीक़ों से अफ़ग़ानिस्तान अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ेगा और देश में लाखों लोगों के लिये आर्थिक बदहाली व पीड़ा भरे हालात अनेक सालों तक जारी रहने की आशंका है.

यूएन मिशन ने ध्यान दिलाया कि शिक्षा एक बुनियादी मानवाधिकार है, और महिलाओं को इससे दूर रखा जाना, ना केवल उन्हें इस अधिकार से वंचित रखता है, बल्कि समग्र अफ़ग़ान समाज को भी उनके योगदान से प्राप्त होने वाले लाभ को नकारता है.

मिशन के मुताबिक़, देश की आधी आबादी के साथ भेदभाव का जारी रहना, अफ़ग़ानिस्तान को समावेशी समाज बनने से रोकेगा, और महिलाओं व लड़कियों की जबरन व कम उम्र में शादी कराये जाने, हिंसा व दुर्व्यवहार के मामलों की आशंका बढ़ेगी.

“यह निर्णय, विदेश से वापिस आने की सोच रहे अफ़ग़ान नागरिकों के लिये एक नकारात्मक कारक बनेगा, और अनेक अन्य को देश से जाने के लिये मजबूर करेगा.”

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में एक ऐतिहासिक मस्जिद के पास से गुज़रती दो महिलाएँ.
UNAMA
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में एक ऐतिहासिक मस्जिद के पास से गुज़रती दो महिलाएँ.

सर्वाधिक प्रभावित

इस बीच, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने एक सर्वेक्षण के नतीजे साझा किये हैं, जिनके अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय व आर्थिक संकट से महिलाएँ व लड़कियाँ सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं.

यूएन एजेंसी के अनुसार, महिलाओं व लड़कियों पर थोपी गई पाबंदियों से उनके लिये स्वयं और बच्चों के खाने का प्रबंध कर पाना कठिन हुआ है, और उन्हें अपनी सम्पत्ति बेचने, बच्चों को स्कूलों से बाहर निकालने और भोजन ना करने जैसे क़दम उठाने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है.

देश में महिलाओं की आवाजाही बेहद सीमित है और उन्हें अपने पुरुष संगी के साथ ही बाहर आने-जाने की अनुमति है, जिससे उनके लिये बाज़ारों, स्वास्थ्य केन्द्रों और वितरण केन्द्रों पर जाना कठिन हुआ है.

निर्बल हालात में रह रही महिलाओं व लड़कियों के लिये महिला सहायताकर्मियों को भी इन्हीं चुनौतियों से जूझना पड़ता है.

एक अनुमान के अनुसार, देश में आठ लाख गर्भवती व स्तनपान करा रहीं, कुपोषित महिलाएँ हैं, जोकि अब तक की सबसे अधिक संख्या है. कुपोषण का शिकार महिलाओं द्वारा कुपोषित बच्चों को जन्म देने का यह घातक चक्र फ़िलहाल यूँ ही जारी है.