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सोमालिया: ग्रामीण समुदायों पर अकाल का जोखिम, तत्काल समर्थन की दरकार

हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका क्षेत्र में लाखों लोगों को खाद्य क़िल्लत से जूझना पड़ रहा है, और उनके मवेशियों पर जोखिम है.
© WFP/Geneva Costopulos
हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका क्षेत्र में लाखों लोगों को खाद्य क़िल्लत से जूझना पड़ रहा है, और उनके मवेशियों पर जोखिम है.

सोमालिया: ग्रामीण समुदायों पर अकाल का जोखिम, तत्काल समर्थन की दरकार

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) ने आगाह किया है कि सोमालिया में अकाल का जोखिम बढ़ता जा रहा है और अगले वर्ष सात लाख से अधिक लोगों के भुखमरी की चपेट में आने की आशंका है. यूएन एजेंसी के अनुसार, ग्रामीण समुदायों के लिये जोखिम सबसे अधिक है, जिसे ध्यान में रखते हुए, उनकी आवश्यकताओं को जल्द पूरा किया जाना होगा.

इसके मद्देनज़र, सहनक्षमता निर्माण और आजीविका समर्थन में विशाल निवेश की ज़रूरत को रेखांकित किया गया है ताकि भूख की मार के इस चक्र को तोड़ा जा सके.

सोमालिया में वर्षा के पिछले पाँच मौसम नाकाम रहे हैं, जिससे ऐतिहासिक स्तर पर सूखे की परिस्थितियाँ उपजी, और देश में एक बड़ी आबादी अकाल के कगार तक पहुँच गई.

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इन हालात में खाद्य क़ीमतों में उछाल दर्ज किया गया है और टकराव में तेज़ी आई है.

बताया गया है कि लगभग 20 लाख लोगों को अगले वर्ष जनवरी से मार्च महीने के दौरान, आपात स्तर पर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है.

जून 2023 तक पीड़ितों का यह आँकड़ा, बढ़कर 27 लाख तक पहुँच सकता है, जबकि साल के मध्य तक सात लाख से अधिक लोग के समक्ष विनाशकारी स्तर पर खाद्य असुरक्षा, भुखमरी व मौत का संकट होगा.

ठोस कार्रवाई की आवश्यकता

यूएन एजेंसी के अनुसार, मानवीय सहायता के ज़रिये, अत्यधिक गम्भीर हालात को टालने में सफलता मिली है, मगर अकाल के ख़तरे को कुछ और महीने से अधिक अवधि तक टालने के लिये ये पर्याप्त नहीं हैं.

संगठन ने कहा है कि स्थानीय समुदायों की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ, उनकी आजीविका सुरक्षा और सहनक्षमता निर्माण के लिये भी ठोस उपाय किये जाने होंगे.

जलवायु संकट और आर्थिक व्यवधानों को ध्यान में रखते हुए, सोमाली नागरिकों को भविष्य में स्थिति के अनुरूप तैयार रहने पर बल दिया गया है.  

मानवीय राहत मामलों में संयोजन के लिये यूएन एजेंसी (OCHA) के अनुसार, हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका क्षेत्र (सोमालिया, केनया, इथियोपिया) हाल के वर्षों में सबसे गम्भीर सूखे की चपेट में है.

ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-बाड़ी पर निर्भर आबादी, और पशुपालक व ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले विस्थापित समुदायो पर अकाल का जोखिम सबसे अधिक है.

यूएन एजेंसी के अनुसार, उनकी गुज़र-बसर, उनके मवेशियों के जीवित रहने और उनके द्वारा फ़सल उगाने की क्षमता पर निर्भर है, और दोनों पर ही सूखे के कारण असर हुआ है.

अहम उपाय, अपर्याप्त धनराशि

खाद्य एवं कृषि संगठन ने मवेशियों को बचाये जाने, उनके भोजन का प्रबन्ध करने और स्वस्थ बनाये रखने पर बल दिया है, चूँकि अनेक ग्रामीण समुदायों के लिये भोजन व आय का वे मुख्य स्रोत हैं.

एक अध्ययन के अनुसार, मवेशियों के लिये चारा व भोजन सुनिश्चित करने से, पशुपालक समुदायों में कुपोषण में 11 प्रतिशत तक की कमी लाना सम्भव हुआ है.

इस प्रकार की सहायता प्रदान करना, अपेक्षाकृत सस्ता है, और इसकी क़ीमत औसतन प्रति बकरी 40 सैण्ट्स है, जबकि पशु बदलने की क़ीमत 40 डॉलर तक पहुँच सकती है.

यूएन एजेंसी के अनुसार, ग्रामीण आजीविका सहायता कार्यक्रमों से जीवन रक्षा सम्भव है, और भविष्य में पुनर्बहाली का मार्ग प्रशस्त होता है.

मगर, इन समर्थन प्रयासों, जलवायु सहनसक्षम खाद्य उत्पादन और विकास प्राथमिकताओं के लिये विशाल स्तर पर फ़िलहाल सहायता धनराशि का अभाव है.

यह एक बड़ी चुनौती है, जिसके कारण समुदाय, जलवायु जोखिमों व आर्थिक व्यवधानों के नज़रिये से विकट हालात में हैं.

सहायता प्रयास

यूएन एजेंसी ने पिछले आठ महीनों में, 35 ज़िलों में सात लाख से अधिक लोगों तक, अकाल रोकथाम योजना के तहत नक़दी सहायता पहुँचाई है.

इसके तहत, 40 हज़ार से अधिक व्यक्तियों को बीज, पशुओं के लिये भोजन, उर्वरक और कृषि कार्य में उपयोग में लाई जाने वाली अन्य सामग्री प्राप्त हुई है.

एक करोड़ 10 लाख पशुओं का उपचार किया गया है, और दूर-दराज़ के इलाक़ों में ढाई करोड़ लीटर से अधिक जल पहुँचाया गया है.

ग्रामीण समुदायों को आजीविका सहायता के साथ, दो करोड़ 40 लाख डॉलर की मदद मुहैया कराई गई है, विशेष रूप से उन समुदायों को जिन पर अकाल का सर्वाधिक जोखिम है.  

यूएन एजेंसी की योजना अगले कुछ महीनों में 10 लाख से अधिक लोगों तक पहुँचने की है, मगर इसके लिये अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता होगी, मुख्यत: दुर्गम इलाक़ों में रह रहे लोगों तक सहायता पहुँचाने के लिये.