प्रवासी कामगारों के मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित किये जाने पर बल
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR), ने ‘अन्तरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस’ से ठीक पहले शुक्रवार को प्रकाशित अपनी एक नई रिपोर्ट में देशों से प्रवासी कामगारों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिये और अधिक प्रयासों की पुकार लगाई है.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने सचेत किया है कि कामकाज की तलाश में किसी अन्य देश का रुख़ करने वाले प्रवासियों को अपने मानवाधिकार त्यागने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
We wanted workers, but human beings came शीर्षक वाली यह रिपोर्ट एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के भीतर और वहाँ से अस्थाई श्रम कार्यक्रम के तहत होने वाले प्रवासन पर केन्द्रित है, जोकि विश्व में प्रवासियों के मूल स्थान की दृष्टि से सबसे बड़ा क्षेत्र है.
"We wanted workers, but human beings came" – New report on temporary labour migration programmes urges States to do more to uphold the rights of migrant workers. No one should have to give up their rights to be able to migrate for work: https://t.co/YW0c845qcB
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UNHumanRights
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा, “प्रवासी कामगारों को अक्सर अमानुषिक बना दिया जाता है. उन्होंने कहा कि ये ध्यान रखना होगा कि वे भी मनुष्य हैं, उनके मानवाधिकार हैं, और उनकी मानवीय गरिमा की पूर्ण रक्षा की जानी होगी.
हर साल, लाखों लोग अस्थाई श्रम प्रवासन कार्यक्रमों के तहत अपने देशों को छोड़कर, अन्य देशों का रुख़ करते हैं, जहाँ उनके गंतव्य स्थानों के लिये आर्थिक लाभ और उनके मूल देशों के लिये विकास से प्राप्त होने वाले फ़ायदे का वायदा होता है.
रिपोर्ट बताती है कि किस तरह अनेक मामलों में अस्थाई कार्य योजना, मानवाधिकारों पर विविध प्रकार की अस्वीकार्य पाबन्दी थोपती है.
प्रवासी कामगारों को अक्सर भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर गन्दगी भरे माहौल में रहने के लिये मजबूर किया जाता है, उनके पास पोषक आहार के सेवन की क्षमता नहीं होती.
साथ ही, उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल मुहैया नहीं कराई जाती है, और कामगारों को लम्बे समय के लिये अपने परिवार से दूर जीवन गुज़ारना पड़ता है.
कुछ देशों में, उन्हें सरकारी समर्थन वाली योजनाओं से दूर रखा जाता है, जिसे कोविड-19 जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों के दौरान उनके लिये जोखिम गहरा जाता है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “उनसे यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि काम के लिये प्रवासन के बदले वे अपने अधिकारों को त्याग देंगे, भले ही यह उनके और उनके परिवारों, और मूल व गंतव्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये कितना ही महत्वपूर्ण क्यों ना हो.”
रिपोर्ट में नाम सार्वजनिक किये बिना, एक देश का उदाहरण दिया गया है जहाँ, स्थाई निवासियों और नागरिकों से विवाह करने के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता है.
एक अन्य उदाहरण में, कुछ चिन्हित पारिवारिक ज़ोन में, अस्थाई प्रवासियों को मकान किराये पर नहीं दिया जा सकता है, चूँकि कामगारों को अपने परिवार के साथ प्रवासन की अनुमति नहीं है.
अति-व्यस्त, कठिन जीवन
साल के कुछ महीने चलने वाली योजनाओं के तहत, प्रवासियों को शनिवार व रविवार को भी काम करना पड़ता है, जिससे उन्हें धार्मिक सेवा व उपासना के लिये समय नहीं मिल पाता है.
कुछ अन्य देशों में प्रवासी घरेलू कामगारों ने बताया कि कार्य के दौरान पूजा या व्रत रखने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिये जाने की धमकी दी गई.
निर्माण कार्य से जुड़े कुछ प्रवासी कामगारों को नियोक्ता (employer) द्वारा प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवा का स्तर ख़राब है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त टर्क ने ज़ोर देकर कहा कि, “देशों को व्यापक, मानवाधिकार-आधारित श्रम प्रवासन नीतियों के साथ-साथ, एशिया व प्रशान्त में और वहाँ से प्रवासन गलियारे बनाने होंगे. अस्थाई कार्यक्रमों के विकल्प के तौर पर, जो कभी-कभी बेहद पाबन्दी भरे, और शोषणकारी होते हैं.”
उन्होंने सचेत किया कि मानवाधिकारों को ठेस पहुँचाने वाले क़दमों को यह कहकर न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है कि प्रवासियों का आप्रवासन दर्जा अस्थाई है.
ना ही देश सभी प्रवासी कामगारों व उनके परिवारों के मानवाधिकारों का ज़िम्मा नियोक्ताओं व अन्य निजी पक्षों को सौंप सकते हैं.