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ईरान: प्रदर्शनकारी को फाँसी दिये जाने की निन्दा, हिरासत में लिये गए कलाकारों पर चिन्ता

ईरान की तथाकथित नैतिकता पुलिस की हिरासत में 22 वर्षीय महसा अमिनी की मौत के बाद स्वीडन के स्टॉकहोम में प्रदर्शनकारी एकत्र हुए.
Unsplash/Artin Bakhan
ईरान की तथाकथित नैतिकता पुलिस की हिरासत में 22 वर्षीय महसा अमिनी की मौत के बाद स्वीडन के स्टॉकहोम में प्रदर्शनकारी एकत्र हुए.

ईरान: प्रदर्शनकारी को फाँसी दिये जाने की निन्दा, हिरासत में लिये गए कलाकारों पर चिन्ता

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गुरूवार को ईरान में एक 23 वर्षीय कलाकार को मौत की सज़ा दिये जाने की निन्दा की है. मोहसेन शेकारी को हाल के दिनों में हुए विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के लिये, क़ानून तोड़ने का दोषी क़रार दिया गया था.

इस्लामी क्रान्ति न्यायालय ने मोहसेन शेकारी को कथित रूप से ईश्वर के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के आरोप में दोषी क़रार दिया था जिसके बाद, गुरूवार सुबह उन्हें फाँसी दे दी गई.

सितम्बर में 22 वर्षीय महसा अमीनी की मौत, पुलिस हिरासत में हो जाने के बाद देश में व्यापक स्तर पर सरकार-विरोधी प्रदर्शन हुए हैं. ईरान की नैतिकता पुलिस ने, महसा अमीनी को सही तरीक़े से हिजाब नहीं पहनने के आरोप में गिरफ़्तार किया था.

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समाचार माध्यमों के अनुसार, विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के लिये दोषी व्यक्ति को मौत की सज़ा दिये जाने की यह पहली घटना है.

इस बीच, स्थानीय प्रशासन के अनुसार, 12 अन्य लोगों को ईश्वर के विरुद्ध युद्ध छेड़ने, और धरती पर भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने के बाद, मौत की सज़ा सुनाई गई है.

मृत्युदंड का 'उन्मूलन हो'

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अपने एक साझा वक्तव्य में कहा कि मुक़दमे की कार्रवाई निष्पक्ष ना होना और फिर मौत की सज़ा दिया जाना, मनमाने ढंग से जीवन से वंचित किये जाने का मामला है.

उन्होंने ईरान से मौत की सज़ा दिये जाने पर स्वैच्छिक रोक लगाए जाने और मृत्युदंड के उन्मूलन पर विचार करने का आग्रह किया है.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने ध्यान दिलाया है कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत, मृत्युदंड उन्हीं अपराधों में दिया जा सकता है, जोकि सबसे गम्भीर अपराधों की श्रेणी में आते हों.

यानि ऐसे मामले, जिनमें इरादतन लोगों को जान से मार दिया गया हो, और ऐसा, एक निष्पक्ष मुक़दमे की कार्रवाई के बाद ही किया जाना होगा.

विशेषज्ञों ने कहा, “हम उन ईरानी कलाकारों के जीवन के प्रति चिन्तित हैं, जिन पर मौत की सज़ा वाले आरोप लगा गए हैं.”

मौत व यातना

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने कुर्दिस्तान के रैपर गायक समन यासिन का उल्लेख किया, जिन्हें हाल ही में कथित तौर पर मौत की सज़ा सुनाई गई है. इस्लामी अदालत ने 29 अक्टूबर को उन्हें ईश्वर के प्रति युद्ध छेड़ने का दोषी क़रार दिया.

वहीं एक अन्य रैपर तुमाज सालेही को बिना उनके वकील की उपस्थिति में, बन्द दरवाज़ों में हुई अदालती प्रक्रिया के बाद एक अन्य मामले में दोषी पाया गया, जिसकी सज़ा मौत है.

समन यानिस को सरकार की आलोचना करने वाले गानों के लिये, 2 अक्टूबर को हिरासत में लिया गया था, और तुमाज सालेही को 30 अक्टूबर को ऐसे वीडियो साझा करने के लिये 30 अक्टूबर को गिरफ़्तार किया गया, जिसमें वो लोगों से प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का आग्रह कर रहे हैं.  

विरोध के स्वरों पर लगाम

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के अनुसार, तुमाज सालेही की नाक की हड्डी टूट गई है, और हाथ की उंगलियों व पाँव को गम्भीर चोटें पहुँची हैं.

वक्तव्य में क्षोभ प्रकट किया गया है कि ये गिरफ़्तारियाँ और लोगों पर दोष साबित करने के मामले, अपनी कला की अभिव्यक्ति, सृजनात्मकता के जायज़ अधिकार के शान्तिपूर्ण इस्तेमाल से सम्बन्धित हैं.

उन्होंने कहा कि इनका उद्देश्य केवल देश में मुखर स्वरों को चुप कराना है और ईरान में कला तक पहुँच होने व सांस्कृतिक और सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने के सभी लोगों के अधिकारों पर पाबन्दी लगाई जा रही है.

महसा अमीनी की मौत के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों का सुरक्षा बलों ने सख़्ती से दमन किया है, बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बताया कि अब तक 40 ईरानी कलाकारों, लेखकों, कवियों, और संगीतकारों को गिरफ़्तार करके जेल भेजा गया है.

विशेष रैपोर्टेयर ने ज़ोर देकर कहा कि प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की कार्रवाई अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार सन्धियों का हनन है, जिनका ईरान भी सम्बद्ध पक्ष है.

उन्होंने शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के लिये हिरासत में लिये गए हज़ारों प्रदर्शनकारियों की तत्काल रिहाई की पुकार लगाई है, और ध्यान दिलाया है कि फलती-फूलती संस्कृति व लोकतांत्रिक समाज के लिये कला सृजनात्मकता बेहद अहम है.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.

सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.