तालेबान द्वारा महिलाओं के मानवाधिकार उल्लंघन, माने जा सकते हैं - मानवता के विरुद्ध अपराध

संयुक्त राष्ट्र के 11 स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में सत्ताधीन तालेबान शासकों द्वारा महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाने की नवीनत गतिविधियों की जाँच, लैंगिक प्रताड़ना के रूप में की जानी चाहिए.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “अफ़ग़ानिस्तान में हाल के महीनों में महिलाओं और लड़कियों के बुनियादी अधिकारों और स्वतंत्रताओं का हनन, बहुत तेज़ी से बढ़ा है, और ये मामले दुनिया में पहले ही बहुत गम्भीर व अस्वीकार्य हैं.”
🇦🇫 #Afghanistan: Latest actions targeting women & girls by #Taliban de facto authorities may amount to gender persecution, a crime against humanity. Such acts deepen existing violations of women's rights & freedoms – already the most drastic globally: https://t.co/XYhoQX9ojf https://t.co/TtPunKLDGF
UN_SPExperts
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने तालेबान द्वारा किए जा रहे इन मानवाधिकार उल्लंघनों पर एक वक्तव्य जारी करते हुए दलील दी है कि लैंगिक उत्पीड़न, मानवता के विरुद्ध एक अपराध है, जिसके लिए अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत मुक़दमा चलाया जा सकता है.
अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान शासन के दौरान, लड़कियों को सैकंडरी स्तर की शिक्षा से वंचित रखा गया है, महिलाओं पर भी पार्कों, व्यायाम शालाओं (Gyms) व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर दाख़िल होने पर पाबन्दी लगा दी गई है. और कम से कम एक क्षेत्र में तो महिलाओं को, उनके विश्वविद्यालय में भी दाख़िल होने से रोक दिया गया है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है, “महिलाओं को पार्कों में जाने से रोकने पर, बच्चों को भी मनोरंजन व व्यायाम के अवसरों और खेलकूद व आनन्दप्रद गतिविधियों से वंचित होना पड़ता है.”
“महिलाओं के उनके घरों तक ही सीमित कर देना, कारावास के समतुल्य है और इससे घरेलू हिंसा के बढ़े स्तरों और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के बढ़ने की सम्भावना है.”
इस बीच तालेबान अधिकारी ऐसे पुरुषों को पीट रहे हैं जो रंगीन कपड़े पहनने वाली या अपने चेहरों को ढँकने वाला नक़ाब नहीं पहनने वाली महिलाओं के साथ चलते-फिरते हैं.
उससे भी ज़्यादा तालेबान, महिलाओं के तथाकथित सम्भावित अपराधों के लिए पुरुषों को दंडित करके, महिलाओं व लड़कियों की मौजूदगी को ही अदृश्य बना रहे हैं.
वो पुरुषों को महिलाओं के व्यवहार, परिधानों और आन्दोलनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करके, इन लैंगिक एजेंसियों को एक दूसरे के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहे हैं.
वक्तव्य में ध्यान दिलाते हुए कहा गया है, “हम बेहद चिन्तित हैं कि इस तरह की गतिविधियाँ पुरुषों और लड़कों को - ऐसी महिलाओं व लड़कियों को दंडित करने के लिये विवश किया जा रहा है जो उनकी हस्तियों को अदृश्य बनाने के तालेबान के प्रयासों का विरोध करती हैं.“
“इससे भी आगे महिलाओं व लड़कियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है और उनके ख़िलाफ़ हिंसा को सामान्य बात बनाया जा रहा है.”
महिलाओं पर बढ़ती पाबन्दियों का विरोध करने वाली महिला मानवाधिकार पैरोकारों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें पीटा जा रहा है और गिरफ़्तार किया जा रहा है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने तालेबान शासकों से अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों व संकल्पों का पालन करने और मानवाधिकार मानक पूरी तरह लागू करने का आहवान किया है.
इनमें सभी लड़कियों व महिलाओं के शिक्षा, रोज़गार और सार्वजनिक व सांस्कृतिक जीवन में शिरकत करने के अधिकार शामिल हैं.
उन्होंने 3 नवम्बर को एक प्रैस कान्फ्रेंस के दौरान बन्दी बनाए गए ज़रीफ़ा याक़ूबी और अन्य पुरुषों को तत्काल व बिना शर्त रिहा किए जाने पर भी ज़ोर दिया.
साथ ही तालेबान से, उन्हें सार्वजनिक रूप से बन्दी बनाए जाने के कारण घोषित करने और उनके परिवारों व वकीलों से सम्पर्क स्थापित करने की अनुमति देने का भी आहवान किया है.
इस बीच, मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से महिलाओं पर लगाई गईं पाबन्दियों को हटाने की मांग करने का भी आहवान किया है.
इसके अतिरिक्त वैश्विक नेताओं से, लैंगिक उत्पीड़न के लिए ज़िम्मेदार पक्षों व लोगों की जाँच करने और उपयुक्त अन्तरराष्ट्रीय और देश के बाहर न्यायिक संस्थानों में मुक़दमा चलाने के लिए क़दम उठाने का भी आहवान किया है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अफ़ग़ान मानवाधिकार पैरोकारों, विशेष रूप में महिलाओं और लड़कियों को समर्थन बढ़ाने; देश की निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागेदारी सुनिश्चित करने के लिये, सुरक्षित माहौल व स्थान को बढ़ावा देने की भी पुकार लगाई गई है.
इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम देखने के लिये यहाँ क्लिक करें.
मानवाधिकार विशेषज्ञ और विशेष रैपोर्टेयर, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा, किसी विशेष मानवाधिकार स्थिति या किसी देश की स्थिति की जाँच करके, रिपोर्ट सौंपने के लिए नियुक्त किए जाते हैं. ये पद मानद होते हैं और ये मानवाधिकार विशैषज्ञ अपनी व्यक्तिगत हैसियत में काम करते हैं. उनके कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है.