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तीव्र बाढ़ से स्वच्छता लक्ष्य पीछे धकेल दिए जाने का ख़तरा

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बाढ़ के पानी के नीचे पानी की आपूर्ति लाइन से युवा लड़के पीने का पानी इकट्ठा करते हैं.
© UNICEF/Asad Zaidi
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बाढ़ के पानी के नीचे पानी की आपूर्ति लाइन से युवा लड़के पीने का पानी इकट्ठा करते हैं.

तीव्र बाढ़ से स्वच्छता लक्ष्य पीछे धकेल दिए जाने का ख़तरा

जलवायु और पर्यावरण

पाकिस्तान, नाइजीरिया और हाल ही में चाड में आई भयंकर बाढ़ ने न केवल फ़सलों, घरों और बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर दिया, बल्कि इससे शौचालयों, सीवरों और खुले स्थानों में शौच स्थलों में भी पानी भर गया, जिससे रोगजनक कीचड़ के पीने के पानी की आपूर्ति में मिलने से बीमारी के प्रकोप भड़के. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप), दुनिया भर में बाढ़ग्रस्त इलाक़ों में लोगों की सहनसक्षम स्वच्छता प्रणालियों व शौचालय सुविधाओं तक पहुँच हासिल कराने हेतु प्रयासरत है.

विशेष रूप से इसका प्रभाव हाशिए पर धकेले हुए समुदायों में विनाशकारी रहा. विशेषज्ञों का कहना है कि इसे आने वाले समय का एक गम्भीर पूर्वावलोकन माना सकता है. जैसे-जैसे पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, अधिक तीव्र बाढ़ और बढ़ते समुद्र के स्तर से स्वच्छता प्रणालियों पर ख़तरा मंडरा रहा है, ख़ासतौर पर विकासशील देशों में.

लेकिन केवल ये देश ही इस तरह के ख़तरों का सामना नहीं कर रहे हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसिसिपी की राजधानी जैक्सन में, हाल ही में अत्यधिक बाढ़ के बाद, सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) में समुद्री और पीने योग्य पानी की शाखा की प्रमुख, लेटिसिया कार्वाल्हो कहती हैं, "सभी देशों को जलवायु-सहनसक्षम स्वच्छता प्रणालियों की आवश्यकता है. दुनिया भर में हम जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव देख रहे हैं, उसके लिये विकसित देश, और सभी देशों में आबादी के सबसे धनी वर्ग ज़िम्मेदार हैं."

उन्होंने कहा कि सबसे कमज़ोर वर्ग के लोग, जिनका जलवायु परिवर्तन में न्यूनतम योगदान है, वो इसका सबसे बड़ा असर झेलने के लिये मजबूर हैं. "हमें सभी देशों में, तत्काल न्यायिक बदलाव को बढ़ावा देने और सहनसक्षमता बनाने के लिये अधिक धनराशि की आवश्यकता है."

अनुसन्धान से पता चलता है कि अनुपचारित अपशिष्ट जल, सामाजिक, आर्थिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं के केन्द्र में है, जिसका सामना अनेक विकासशील देश करते हैं और वैश्विक स्तर पर नदियों, जलभृतों, तटीय पारिस्थितिक तंत्र एवं प्रवाल भित्तियों कोरल को प्रभावित करते हैं.

लातिन अमेरिका, अफ़्रीका और एशिया की लगभग एक-तिहाई नदियाँ ख़तरनाक रोगजनकों से प्रदूषित हैं, जो दस्त, हैज़ा और टाइफ़ाइड बुख़ार जैसी बीमारियों का कारण बनती हैं. अनेक देशों में, अनुपचारित सीवेज नियमित रूप से नदियों में या सीधे समुद्र में डाला जाता है.

लेटिसिया कार्वाल्हो कहती हैं, "विकसित देशों को भी अपनी कार्रवाई सुधारने की ज़रूरत है. विकसित देशों द्वारा सीधे नदियों और समुद्र में अनुपचारित सीवेज का निर्वहन पूरी तरह से अस्वीकार्य पर्यावरणीय अपराध है."

विश्व स्तर पर, घरेलू अपशिष्ट जल का 44 प्रतिशत सुरक्षित रूप से उपचारित नहीं किया जाता है, और अनुमानित 80 प्रतिशत अपशिष्ट जल, जिसमें कृषि और उद्योग शामिल हैं, अनुपचारित रहकर, ताज़े व ख़ारे पानी के निकायों को प्रदूषित करता है.

लगभग 3.6 अरब लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबन्धित स्वच्छता बुनियादी ढाँचे की कमी है, और कम से कम 2 अरब लोग मल से दूषित पेयजल स्रोत का उपयोग करते हैं. इस बीच, तीन में से एक व्यक्ति को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है. इसमें, अफ़्रीका विशेष रूप से जोखिम में है.

इन महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में मदद करने के लिये, यूनेप ने सुरक्षित स्वच्छता और अपशिष्ट जल प्रबन्धन पर टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की दिशा में, अफ़्रीका की प्रगति को आँकने और आगे बढ़ाने के लिये अफ़्रीका का स्वच्छता एवं अपशिष्ट जल एटलस जारी किया है.

लेकिन जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस सप्ताह मिस्र के शर्म अल-शेख़ में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP27) में कहा, प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित कमज़ोर देशों को हुए हानि व क्षति की भरपाई हेतु बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है.

भूजल पर ध्यान देना ज़रूरी

विकासशील देशों में बड़े शहरों की मलिन बस्तियों में अक्सर अपर्याप्त शौचालय सुविधाएँ होती हैं और वो अक्सर सामुदायिक शौचालयों का उपयोग करने के लिये मजबूर होते हैं.
© UNICEF/Dhiraj Singh
विकासशील देशों में बड़े शहरों की मलिन बस्तियों में अक्सर अपर्याप्त शौचालय सुविधाएँ होती हैं और वो अक्सर सामुदायिक शौचालयों का उपयोग करने के लिये मजबूर होते हैं.

19 नवम्बर को मनाया जाने वाला, संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित विश्व शौचालय दिवस भी पर्याप्त स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुँच की कमी की जागरूकता बढ़ाने के लिये शुरू किया गया था.

इस वर्ष, यह दिन स्वच्छता और भूजल के बीच सम्बन्धों पर केन्द्रित है, क्योंकि भूजल पृथ्वी पर 99 प्रतिशत तरल ताज़ा पानी प्रदान करता है व घरेलू उपयोग के आधे से ज़्यादा पानी का अहम स्रोत है.

यह दिन स्वच्छता प्रणालियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जोकि जलवायु संकट के कारण होने वाली चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर सकें और भूजल स्रोतों की रक्षा करने में सक्षम हों.

कई जगहों पर, गम्भीर बाढ़ के कारण मल, विषैले रसायनों, प्लास्टिक और इलैक्ट्रॉनिक कचरे व अन्य मलबे के साथ अपनी जगह बना लेता है, जिससे एक घातक मिश्रण पैदा होता है जो भूजल में रिस सकता है.

उदाहरण के लिये, हाल ही में यूनेप के एक अध्ययन में पाया गया कि दक्षिण अफ़्रीका में, इसके छोटे पैमाने के खेतों, लैंडफ़िल, क़ब्रिस्तानों, कारख़ानों और अनौपचारिक बस्तियों से बहकर, केप टाउन के अधिकांश भाग में स्थित ‘केप फ्लैट्स जलभृत’ में रिसाव होने का जोखिम है.

विश्व स्तर पर भूजल पेयजल का एक प्रमुख स्रोत है, और एक बार दूषित होने के बाद इसे बहाल करना बेहद मुश्किल या असम्भव ही होता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि भूजल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिये बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु वित्तपोषण बेहद महत्वपूर्ण है और इसे यूनेप समर्थित One Health  दृष्टिकोण का हिस्सा माना जाना चाहिये, जिसका उद्देश्य लोगों, जानवरों और व्यापक पर्यावरण के स्वास्थ्य में स्थाई सुधार करना है. इसके तहत, साफ़ पानी की सामूहिक आवश्यकता को पूरा करने के लिये व्यवसायों, सरकारों और समुदायों को संगठित किया जाता है.

प्रकृति-आधारित समाधान, स्वच्छता प्रणालियों को मज़बूत करने के प्रयासों के पूरक हो सकते हैं. उदाहरण के लिये, वनस्पति आर्द्रभूमि के संरक्षण से, अतिरिक्त पानी को सोखने और बाढ़ के प्रभावों से निपटने में मदद मिलती है. लेकिन विकसित देशों को ये उपाय अपनाने और ऐसे समाधानों को व्यवहार्य बनाने के लिये, पर्याप्त वित्त एवं क्षमता निर्माण की आवश्यकता है.

दुनिया भर में कई समुदाय अपनी स्वच्छता प्रणालियों को सुरक्षित रखने के लिये पुरज़ोर कोशिशों में लगे हैं. कुछ लोग पीने के पानी के लिये ऊँचे शौचालयों और हाथ से चलने वाले नलों का निर्माण कर रहे हैं, जिनसे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में बाढ़ आने पर वो पानी के ऊपर रहें. वहीं अनेक अन्य देश, नई तकनीकों की तलाश कर रहे हैं.

यूनेप ने मलेशिया में एक पायलट परियोजना को समर्थन दिया है, जिसमें घरों के नीचे पोर्टेबल सेप्टिक टैंक स्थापित किए गए हैं.

तंज़ानिया में, यूनेप ने छोटे पैमाने के जल उपचार संयंत्रों के निर्माण के प्रयास का समर्थन किया है, जिनमें से कुछ तो, बिजली के बिना काम कर सकते हैं. और केनया में, हरित प्रौद्योगिकी के ज़रिये स्वच्छता में सुधार लाने की यूनेप की एक परियोजना से, एक जेल में बदलाव लाया गया है.

अपशिष्ट जल से पोषक तत्वों की उगाही को बढ़ावा देने के लिये, यूनेप ने, भारत में एक पायलट परियोजना का नेतृत्व किया है और हाल ही में अफ़्रीका में मल कीचड़ प्रबन्धन में सुधार के लिये अध्ययन किया गया है.

लेटिसिया कार्वाल्हो का कहना है कि सुरक्षित और सहनसक्षम स्वच्छता प्रणाली सुनिश्चित करने के लिये, जलवायु अनुकूलन उपायों और सन्दर्भ-विशिष्ट प्रकृति-आधारित समाधानों के साथ वित्त पोषण और स्मार्ट जल प्रबन्धन हेतु, अन्तरराष्ट्रीय एकजुटता की आवश्यकता है.

लेटिसिया कार्वाल्हो कहती हैं, "हमारे पास दुनिया की स्वच्छता प्रणालियों और पीने के पानी की आपूर्ति को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक उपकरण मौजूद हैं. ज़रूरत है कि अब हम उनका उपयोग करना शुरू कर दें."

अगले महीने, 7 से 8 दिसम्बर तक पेरिस में भूजल पर संयुक्त राष्ट्र-जल शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जहाँ स्वच्छता एवं भूजल की रक्षा में उसकी भूमिका पर विस्तार से चर्चा होगी. इसका उद्देश्य है, उच्चतम अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भूजल पर ध्यान केन्द्रित करना और संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन को एक संयुक्त सन्देश देना, जिसमें नीति निर्माताओं से भूजल के महत्व को पूरी तरह से पहचानने व इस क़ीमती संसाधन की सुरक्षा के लिये स्वच्छता पर प्रगति में तेज़ी लाने का आग्रह किया जाएगा.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.