नागरिकता के बिना जीवन, राष्ट्रविहीनों के मानवाधिकारों का गम्भीर उल्लंघन

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने विश्व भर में 43 लाख राष्ट्रविहीन लोगों के जीवन में बेहतरी लाने के लिये मज़बूत राजनैतिक इच्छाशक्ति और ठोस उपायों की पुकार लगाई है.
उन्होंने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रविहीनों को बिना नागरिकता के सायों में जीवन गुज़ारना पड़ता है, जोकि मानवाधिकारों का एक गम्भीर हनन है और मानवता पर एक धब्बा है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि राष्ट्रीयता के बुनियादी अधिकार से वंचित होना, और राष्ट्रविहीन रहने वाले लोगों के समक्ष एक बेहद कठिन चुनौती होती है.
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As the world faces complex challenges, having a nationality, and all the rights and protections that emanate from it, is essential. #EndStatelessness #IBelong https://t.co/8EXZ5gWiT7
Refugees
उनकी बुनियादी मानवाधिकारों तक पहुँच नहीं होती और ना ही वे समाज में पूर्ण रूप से भागीदार बन पाते हैं, और उन्हें हाशिये पर जीवन गुज़ारने के लिये मजबूर होना पड़ता है.
फ़िलिपो ग्रैंडी ने यह अपील #IBelong मुहिम शुरू होने की आठवीं वर्षगाँठ पर जारी की है, जिसे यूएन शरणार्थी एजेंसी ने एक दशक के भीतर राष्ट्रविहीनता का अन्त किये जाने के इरादे से 2014 में शुरू किया था.
इस बीच, कुछ हद तक प्रगति दर्ज की गई है. लगभग साढ़े चार लाख राष्ट्रविहीन लोगों को या तो नागरिकता मिल चुकी है या फिर उनको नागरिकता मिलने की पुष्टि की जा चुकी है.
इसके अलावा, एशिया, योरोप, अफ़्रीका और अमेरिकी क्षेत्र में लाखों लोगों के पास, अब नए सिरे से लागू किये गए क़ानूनी बदलावों के कारण नागरिकता पाने का रास्ता है.
अधिकाँश व्यक्ति अपनी नागरिकता को सामान्य बात मानकर चलते हैं, मगर काग़ज़ा ना होने से जीवन कठिन हो सकता है. 30 वर्षीया लिन्डा ने इसे लम्बे समय तक महसूस किया है.
लिन्डा का जन्म मॉस्को मे हुआ था, मगर उनके पास रूसी नागरिकता नहीं थी. उनकी माँ मध्य पूर्व से हैं, और वह उस देश में पत्रकारिता पढ़ने के लिये आई थीं.
चूँकि वो राष्ट्रविहीन थी, तो उनकी लिन्डा का दर्जा भी वैसे ही रहा.
काग़ज़ात के अभाव में, लिन्डा अपना बैंक खाता नहीं खुलवा सकीं, और ना ही उनके लिये मकान किराये पर ले पाना और फ़ोन के लिये सिम कार्ड ले पाना सम्भव था.
लिन्डा ने नागरिकता मिलने के अनेक वर्षों बाद यूएन एजेंसी को एक इंटरव्यू में बताया कि, “10 नवम्बर 2019 को मुझे एक सूचना पत्र मिला, जिसमें मुझे रूसी नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई थी.”
“वो एक बेहद भावुक क्षण था...मैंने महसूस किया कि वाक़ई में अस्तित्व है.”
यूएन एजेंसी ने #IBelong मुहिम के शुरू होने के बाद से उठाये गए अन्य क़दमों और समाधानों के बारे में जानकारी दी.
बताया गया है कि तीन देशों ने अपने राष्ट्रीयता क़ानूनों में सुधार किया है, जोकि लैंगिक रूप से भेदभावपूर्ण थे, जिसे राष्ट्रविहीनता की एक बुनियादी वजह बताई गई है.
मगर, 24 सरकारें अब भी पुरुषों के विपरीत, महिलाओं को उनके बच्चों को राष्ट्रीयता मिलने के समान अधिकार को नकारती हैं.
साथ ही, राष्ट्रविहीनता का अन्त करने के प्रयासों में प्रगति को अन्य अवरोधों का भी सामना करना पड़ता है, जोकि अक्सर नस्ल, धर्म और जातीयता पर आधारित भेदभाव के कारण होते हैं.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि राष्ट्रविहीनता एक वैश्विक समस्या है, जिसकी अनेक वजहें हैं. मगर यह उ समस्याओं में से भी है, जिसे सरल, स्थानीय समाधानों से सुधारा जा सकता है.
फ़िलिपो ग्रैंडी ने विश्व भर में सरकारों और क़ानून निर्माताओं से आग्रह किया है कि इस मुहिम के अगले दो वर्षों में कार्रवाई को तेज़ करना होगा, और उन क़ानूनी व नीतिगत खामियों को दूर करना होगा, जिनकी वजह से लाखों लोगों का पीछे छूटना जारी है.