मौजूदा जलवायु कार्रवाई योजनाएँ, वैश्विक तापमान में 'विनाशकारी वृद्धि टालने के लिये अपर्याप्त'

जलवायु परिवर्तन मामलों के लिये यूएन संस्था (UNFCCC) ने बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी भरे शब्दों में कहा है कि पेरिस जलवायु समझौते के अधिकांश हस्तारक्षरकर्ता देशों द्वारा प्रस्तुत की योजनाओं से, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी अवश्य आएगी, लेकिन ये योजनाएंँ इस सदी के अन्त तक, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये पर्याप्त नहीं हैं.
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कमी लाने और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर किये जा रहे प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (National Determined Contributions) कहा जाता है.
इन मौजूदा राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं को लागू किये जाने से पृथ्वी के औसत तापमान में कम से कम 2.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने की आशंका है.
जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी आयोग (IPCC) के वैज्ञानिकों ने तापमान वृद्धि के इस स्तर को विनाशकारी क़रार दिया है.
आईपीसीसी ने वर्ष 2019 में संकेत दिया था कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को रोकने के लिये, वर्ष 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 2010 की तुलना में 43 प्रतिशत की कटौती लाने की आवश्यकता होगी.
मगर, मौजूदा जलवायु योजनाओं व संकल्पों के तहत फ़िलहाल CO2 उत्सर्जनों में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि होने की सम्भावना है.
इसके बावजूद, यह पिछले वर्ष की रिपोर्ट की तुलना में बेहतरी को दर्शाती है, जिसमें वर्ष 2030 तक उत्सर्जनों में 13.7 प्रतिशत की वृद्धि की बात कही गई थी, और 2030 के बाद भी उत्सर्जनों का बढ़ना जारी रहने की आशंका थी.
यूएन जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव सिमोन स्टीयल ने कहा, “वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में गिरावट का अपेक्षित रुझान दर्शाता है कि इस वर्ष देशों ने कुछ प्रगति दर्ज की है.”
“लेकिन विज्ञान स्पष्ट है और पेरिस समझौते के अन्तर्गत हमारे जलवायु लक्ष्य भी. हम उत्सर्जन कटौती के उस स्तर या गति के नज़दीक भी नहीं हैं, जिसकी हमें 1.5 डिग्री सेल्सियस के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिये ज़रूरत है.”
यूएन संस्था प्रमुख ने कहा कि देशों की सरकारों को अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं को मज़बूती देनी होगी और फिर उन्हें अगले आठ वर्षों में लागू किया जाना होगा.
सभी देशों ने वर्ष 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन के दौरान, अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं की समीक्षा करने और उन्हें मज़बूत बनाने पर सहमति व्यक्त की थी.
लेकिन अभी तक 193 में से केवल 24 देशों ने ही अपनी योजनाओं में संशोधन किये हैं.
UNFCCC प्रमुख ने कहा, “...यह निराशाजनक है. सरकारों के निर्णय व कार्रवाई को तात्कालिकता के स्तर; हमारे समक्ष मौजूद ख़तरों की गम्भीरता और तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी नतीजों से बचने के लिये बीते जा रहे समय को परिलक्षित करना होगा.”
रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों ने अपनी नई योजनाएँ पेश की हैं, उनमें संकल्पों को मज़बूत बनाया गया है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये व अधिक महत्वाकांक्षा दर्शाई गई है, जोकि आशा का परिचायक है.
यूएन जलवायु संस्था की एक अन्य समीक्षा बुधवार को प्रकाशित हुई है, जिसमें दीर्घकालीन नैट-शून्य (कार्बन तटस्थता) रणनीतियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.
विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 93 प्रतिशत योगदानकर्ता 62 देशों ने, इस सिलसिले में अपनी योजनाएँ तैयार कर ली हैं.
ये देश विश्व आबादी के 47 प्रतिशत और कुल ऊर्जा खपत का 69 प्रतिशत प्रदर्शित करते हैं. यूएन एजेंसी ने कहा कि यह एक मज़बूत संकेत है कि दुनिया अब नैट-शून्य उत्सर्जनों का लक्ष्य साधने की शुरुआत कर रही है.
इसके बावजूद, विशेषज्ञों का मानना है कि अनेक नैट-शून्य उत्सर्जन अनिश्चित हैं और जो अहम उपाय अभी अपनाए जाने चाहिये, उन्हें भविष्य के लिये टाला जा रहा है.
दो सप्ताह से भी कम समय में, मिस्र के शर्म-अल-शेख़ में संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप27) आयोजित होगा.
UNFCCC प्रमुख सिमोन स्टीयल ने देशों की सरकारों से अपनी जलवायु योजनाओं की समीक्षा करने और उन्हें मज़बूत करने की पुकार लगाई है.
इस क्रम में, विज्ञान के नज़रिये से वैश्विक उत्सर्जन में ज़रूरी गिरावट और मौजूदा वास्तविकताओं के बीच की खाई को पाटा जाना होगा.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि कॉप27 एक ऐसा क्षण है जब वैश्विक नेता, जलवायु परिवर्तन से निपटने की कार्रवाई में तेज़ी ला सकते हैं, वार्ताओं से आगे बढ़कर उपाय लागू किये जाने पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं और ऐसे रूपान्तरकारी बदलाव अपना सकते हैं, जोकि जलवायु आपात स्थिति से मुक़ाबले के लिये ज़रूरी हैं.
सिमोन स्टीयल ने राष्ट्रीय सरकारों से आग्रह किया है कि उन्हें कॉप27 के दौरान यह दर्शाना होगा कि पेरिस समझौते को किस तरह क़ानूनों, नीतियों व कार्यक्रमों में समाहित किया जाएगा, और उपाय लागू किये जाने में सहयोग व समर्थन किस तरह सुनिश्चित किया जाएगा.
उन्होंने इन चार प्राथमिकता क्षेत्रों में प्रगति दर्ज किये जाने की अहमियत को रेखांकित किया है: कार्बन उत्सर्जन में कटौती, अनुकूलन, हानि व क्षति, और वित्त पोषण.