बहुआयामी निर्धनता पर यूएन की नई रिपोर्ट, लक्षित सहायता उपायों में निवेश पर ज़ोर

संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार, 17 अक्टूबर, को 'अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस' पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार निर्धनता का शिकार लोगों की संख्या में कमी लाना सम्भव है. विश्लेषण के अनुसार, इसके लिये यह ज़रूरी है कि समस्या को मापने के लिये नए तौर-तरीक़ों का सहारा लिया जाए ताकि मानवीय राहत संगठन और देशों की सरकारें बेहतर, लक्षित ढँग से सहायता उपायों को लागू कर सकें.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में ‘निर्धनता व मानव विकास पहल’ (OPHI) ने मिलकर बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (Multidimensional Poverty Index/MPI) पर यह साझा विश्लेषण तैयार किया है.
इस अध्ययन में निर्धनता को केवल निर्धनता को मापने से परे जाकर, अन्य संकेतकों, जैसेकि शिक्षा व स्वास्थ्य, और घर, पेयजल, साफ़-सफ़ाई और बिजली समेत जीवन स्तर के अन्य मानकों को परखा गया है.
Poverty is more than income & jobs.
It's access to affordable healthcare, nutritious food, decent wages, quality education, clean water, energy & more.
We can't #EndPoverty & achieve the #SDGs w/out addressing the root causes of #MultidimensionalPoverty. https://t.co/YZeCArOpBD https://t.co/tq2nmBvhEk
UNDP
इसके ज़रिये, यह अध्ययन दर्शाता है कि कोविड-19 महामारी और गुज़र-बसर की बढ़ती क़ीमतों के मौजूदा संकट के प्रभावों से इतर भी, 111 विकासशील देशों में एक अरब 20 करोड़ लोग बहुआयामी निर्धनता में रहने के लिये मजबूर हैं.
निर्धनता आंकने के लिये इस्तेमाल में लाये जाने वाले आँकड़े, यानि प्रति दिन 1.90 डॉलर पर जीवन गुज़ारने वाले लोगों की संख्या की तुलना में यह निर्धनों की दोगुनी संख्या है.
विभिन्न क्षेत्रों में निर्धनता के भिन्न-भिन्न पहलुओं की शिनाख़्त की गई है.
साथ ही, अध्ययन में ऐसी रणनीतियों को विकसित किये जाने का आग्रह किया गया है, जिससे विशिष्ट देशों व क्षेत्रों की विशिष्ट ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए क़दम उठाये जा सकें.
रिपोर्ट में उन रुझानों का भी ज़िक्र किया गया है, जोकि लोगों को बार-बार निर्धनता में जीवन गुज़ारने के लिये मजबूर करते हैं.
उदाहरणस्वरूप, निर्धनता में रहने वाली आधी आबादी उन लोगों की है, जिन्हें बिजली और खाना पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन सुलभ नहीं है.
वहीं, एक-तिहाई आबादी पोषण, खाना पकाने के ईंधन, साफ़-सफ़ाई, व आवास से वंचित बताई गई है.
लाओ पीडीर में रहने वाले परिवारों का अनुभव दर्शाता है कि ग़रीबी में जीवन गुज़ारने वाले के लिये हालात में बेहतरी लाना किस तरह कठिन है.
खाना पकाने के लिये ईंधन उपलब्ध ना होने की वजह से बच्चों को लकड़ी जुटाने के लिये भेजा जाता है, जिसके कारण उनके लिये स्कूल जा पाना सम्भव नहीं है.
इसलिये, स्कूल निर्माण के लिये केवल सहायता धनराशि उपलब्ध कराने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा, चूँकि इससे पहले ईंधन उपलब्धता की समस्या से निपटा जाना होगा.
मौजूदा चुनौती की विकरालता के बावजूद, निर्धनता घटाने के प्रयासों में कुछ हद तक सफलता भी मिली है.
भारत में, 15 वर्ष की अवधि में 41 करोड़ 50 लाख लोगों को बहुआयामी निर्धनता से बाहर निकाल पाना सम्भव हुआ है, जोकि स्थिति में एक ऐतिहासिक सुधार को दर्शाता है.
कोविड-19 महामारी से पहले जुटाये गए आँकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में 72 देशों में निर्धनता में कमी लाने में ठोस प्रगति दर्ज की गई है.
रिपोर्ट में उन देशों से सफलता प्राप्त होने के अनुभवों को भी साझा किया गया है, जिन्होंने निर्धनता में कमी लाने के लिये एकीकृत रणनीति का सहारा लिया है.
जैसेकि, नेपाल में साफ़-सफ़ाई में निवेश के ज़रिये पेयजल उपलब्धता, बाल पोषण में सुधार आया है, और दस्त से पीड़ितों की संख्या में कमी आई है व बाल मृत्यु में गिरावट आई है.
यूएन विकास कार्यक्रम के प्रमुख एखिम स्टाइनर ने कहा कि एक ऐसे समय मे जब सरकारी बजट का आकार घटता जा रहा है, सटीक आँकड़ों व विश्लेषण के ज़रिये उन क्षेत्रों को चिन्हित किया जा सकता है, जहाँ निवेश किये जाने से सर्वाधिक लाभ होगा.
उन्होंने रिपोर्ट के एक उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि कार्बन पर निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा की सुलभता में विस्तार के ज़रिये, जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाया जा सकता है.
इसके अलावा, यह बहुआयामी निर्धनता का शिकार उन 60 करोड़ लोगों के लिये भी अहम है, जिनकी बिजली व स्वच्छ ईंधन तक पहुँच नहीं है.
उन्होंने बताया कि वर्ष 2025 तक 10 करोड़ लोगों को बहुआयामी निर्धनता से बाहर निकालने के साहसिक लक्ष्य को साकार करने के लिये, यूएन विकास कार्यक्रम व साझेदार संगठनों द्वारा दुनिया भर में किये जा रहे प्रयासों के लिये ये अध्ययन एक बेहद अहम कड़ी है.