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लीबिया: प्रवासियों के मानवाधिकारों का गम्भीर उल्लंघन, OHCHR ने जताया गहरा क्षोभ

लीबिया के त्रिपोली शहर में टीबी से पीड़ित एक सूडानी शरणार्थी.
UNOCHA/Giles Clarke
लीबिया के त्रिपोली शहर में टीबी से पीड़ित एक सूडानी शरणार्थी.

लीबिया: प्रवासियों के मानवाधिकारों का गम्भीर उल्लंघन, OHCHR ने जताया गहरा क्षोभ

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि लीबिया में प्रवासियों के मानवाधिकारों का व्यापक व व्यवस्थागत उल्लंघन, देश के भीतर व बाहर उपलब्ध संरक्षण उपायों के अभाव में और अधिक गहरा हुआ है. इस वजह से, प्रवासियों को ऐसी परिस्थितियों में अक्सर अपने मूल देश लौटने के लिये सहायता स्वीकार करने के लिये मजबूर होना पड़ता है, जोकि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों व मानकों के अनुरूप नहीं हैं.

लीबिया में, वर्ष 2015 से अब तक तक 60 हज़ार से अधिक प्रवासियों को ‘वापसी सहायता’ कार्यक्रम के तहत अफ़्रीका व एशिया में उनके मूल देशों में वापिस भेजा गया है.

इनमें गाम्बिया के तीन हज़ार 300 नागरिक भी हैं, जोकि लीबिया से वर्ष 2017 के बाद से अपने देश लौटे हैं.

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मानवाधिकार मामलों के लिये कार्यवाहक उच्चायुक्त नडा अल-नशीफ़ ने कहा कि यह हताशा भरी स्थिति है और सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी प्रवासी को अपने देश में असुरक्षित परिस्थितियों में लौटने के लिये मजबूर ना किया जाए.

रिपोर्ट बताती है कि प्रवासियों को अक्सर वापसी सहायता कार्यक्रम स्वीकार करने के लिये मजबूर होना पड़ता है, ताकि वे बदतरीन हिरासत परिस्थितियों, यातना की धमकियों, बुरे बर्ताव, यौन हिंसा, जबरन गुमशुदगी, फ़िरौती और अन्य मानवाधिकार उल्लंघन व दुर्व्यवहार से बच सकें.

“सामूहिक तौर पर, इन परिस्थितियों ने एक ऐसा दबाव का माहौल तैयार किया है, जोकि स्वतंत्र चयन के साथ अक्सर मेल नहीं खाती है.”

सैद्धान्तिक रूप से वापसी सहायता को स्वैच्छिक बताया गया है. मगर, रिपोर्ट के अनुसार असलियत में लीबिया में अनेक प्रवासी, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून और मानकों के अनुरूप अपने घर लौटने में असमर्थ हैं.

विकल्पों का अभाव

इन हालात में अनेक प्रवासियों के पास उन्हीं हालात में वापिस लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता, जिनकी वजह से वे अपना देश छोड़कर बाहर आए थे.

इसके अलावा, वापिस लौटने वाले प्रवासियों को अतिरिक्त निजी, वित्तीय व मनोसामाजिक बोझ का भी सामना करना पड़ता है, जोकि लीबिया में उनके गम्भीर अनुभव का परिणाम होते हैं.

इन समस्याओं का कोई सतत समाधान ना होने की स्थिति में, प्रवासियों को फिर से, पहले से भी अधिक गम्भीर हालात में लौटने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने उन 65 आप्रवासियों के साथ इंटरव्यू के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है, जिन्हें हाल ही में गाम्बिया वापिस भेजा गया था.

‘पशुओं जैसा बर्ताव’

एक प्रवासी ने बताया कि, “वे मुझे एक जेल में लाए. लेकिन उस समय तक मुझे गाम्बिया वापिस जाने के बारे में नहीं मालूम था.”

“फिर वे जेल में एक डंटे के साथ आए और लोगों को जानवरों की तरह पीटना शुरू कर दिया. कभी-कभी वे आपका धन और अच्छे कपड़े ले लेते हैं. उन्होंने मेरा दाँत तोड़ दिया. इसलिये, मैंने वापसी स्वीकार कर ली.”

प्रवासी ने बताया कि उनके पास लीबिया या कहीं ओर जाने का कोई अवसर नहीं था, और उन्हें केवल घर वापिस भेजे जाने के लिये ही कहा गया.

कार्यवाहक उच्चायुक्त ने कहा कि ये स्थिति जारी नहीं रह सकती है और इसलिये लीबिया व सम्बद्ध पक्षों को प्रवासियों के अधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिये तत्काल क़दम उठाने होंगे.

नडा अल-नशीफ़ ने कहा कि अन्य पक्षों की भी इसमें ज़िम्मेदारी है कि वे लीबिया में फँसे प्रवासियों को संरक्षण मुहैया कराएँ.

इस क्रम में, उन्हें अपने क्षेत्रों में प्रवेश की अनुमति देने के लिये सुरक्षित व नियमित रास्ते उपलब्ध कराने होंगे.