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जलवायु परिवर्तन, महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का जोखिम बढ़ने की एक वजह

इक्वाडोर की राजधानी क्वीटो में एक महिला, लैंगिक हिंसा के विरोध में निकाले गये मार्च में हिस्सा ले रही है.
© UN Women/Johis Alarcón
इक्वाडोर की राजधानी क्वीटो में एक महिला, लैंगिक हिंसा के विरोध में निकाले गये मार्च में हिस्सा ले रही है.

जलवायु परिवर्तन, महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का जोखिम बढ़ने की एक वजह

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने बुधवार को चेतावनी जारी की है कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के कारण, विश्व भर में महिलाओं व लड़कियों के प्रति हिंसा का जोखिम बढ़ रहा है.

महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर रीम अलसालेम ने यूएन महासभा में इस विषय में अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है.

रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन, महिलाओं व लड़कियों के लिये ख़तरे बढ़ाने वाला सबसे बड़ा कारक है, जिससे नए और पहले से व्याप्त लैंगिक विषमताओं की रूपों के और असर होने की आशंका है.

उन्होंने सचेत किया कि जलवायु परिवर्तन और उससे उपजने वाली लैंगिक चुनौतियाँ, महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों के सभी आयामों पर असर डाल रही हैं.

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जलवायु असमानता

यूएन रैपोर्टेयर ने सचेत किया कि महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध होने वाली हिंसा, सामाजिक-राजनैतिक और आर्थिक वजहों का भी नतीजा होती है, जैसेकि सशस्त्र संघर्ष, विस्थापन और संसाधनों की क़िल्लत.

और जब ये जलवायु परिवर्तन से जुड़ती है, तो ये इस सम्वेदनशीलता को और अधिक गहरा कर सकती है.

“जलवायु परिवर्तन ना केवल एक पारिस्थितिक संकट है, बल्कि मूल रूप से यह न्याय, समृद्धि व लैंगिक समानता का सवाल है. और यह ढाँचागत असमानता व भेदभाव से जुड़ी हुई और उससे प्रभावित भी होती है.”

कठिन विकल्प

तथ्य दर्शाते हैं कि विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक असर, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक, लिंग-आधारित हिंसा के सभी रूपों को गम्भीर बनाते हैं. जबकि इनसे रक्षा उपायों व तंत्रों की उपलब्धता व प्रभावशीलता में रुकावट आती है और हिंसा की रोकथाम करने की सम्भावना कमज़ोर होती है.

“जब धीमे-धीमे या तेज़ी से कोई आपदा आकर आजीविकाओं के लिये ख़तरा बनती है, तो समुदाय हालात का सामना करने के लिये नकारात्मक उपायों का सहारा ले सकते हैं.”

जैसेकि तस्करी, यौन शोषण और बाल विवाह और स्कूली पढ़ाई में ही छोड़ना. इनमें से सभी में महिलाओं व लड़कियों को जीवित रहने के लिये जोखिम भरे विकल्पों को चुनना होता है.

सर्वाधिक निर्बल

रीम अलसालेम ने बताया कि महिला पर्यावरणीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, आदिवासी महिलाओं व लड़कियों, विविधि लैंगिक पहचान व यौन रुझान की महिलाओं, बुज़ुर्ग, विकलांग, निर्धन व जबरन विस्थापन का शिकार महिलाओं पर विशेष जोखिम है.

वे अक्सर संरक्षण उपायों की पहुँच के दायरे से बाहर होते हैं.

“महिलाओं व लड़कियों के कल्याण को पहुँचने वाली बड़ी और अपूरणीय क्षति के बावजूद, जलवायु परिवर्तन और महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के बीच आपसी सम्बन्ध को समझने के लिये और अधिक प्रयासों व संसाधनों की आवश्यकता है.”

स्वतंत्र विशेषज्ञ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि लैंगिक समानता के प्रति संकल्प को मज़बूती प्रदान किये जाने की आवश्यकता है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम में कमी लाने के लिये कार्रवाई को मानवाधिकारों पर केन्द्रित बनाना होगा.

सबल हितधारक

रीम अलसालेम के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध समन्वित प्रयासों को लैंगिक रूप से सम्वेदनशील व रूपान्तरकारी बनाना होगा.

उनका मानना है कि महिलाएँ व लड़कियाँ जिन निर्बलताओं का सामना करती हैं, उनका सामना करने के लिये की जाने वाली कार्रवाई में महिलाओं की भूमिका व निर्णय अधिकार को जगह देनी होगी – नीति जगत में एक शक्तिशाली हितधारक के रूप में.  

“महिलाओं व लड़कियों के अधिकार व कल्याण, बाद में किया गया विचार नहीं होना चाहिये, और उसे नीतियों व जवाबी कार्रवाई के केन्द्र में रखा जाना होगा.”

यूएन की विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि यदि उपायों को स्फूर्त ढँग से, लैंगिक परिप्रेक्ष्यों को ध्यान में रखकर तैयार व लागू किया जाता है, तो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण से निपटने की कार्रवाई वास्तव में रूपान्तरकारी हो सकती है.

यूएन विशेष रैपोर्टेयर्स की नियुक्ति, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी देश की स्थिति या किसी अन्य विषयों की जाँच करने और रिपोर्ट करने के लिये करती है.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ अपनी व्यक्तिगत हैसियत में काम करते हैं, वो ना तो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.