विश्व शिक्षक दिवस: शिक्षा में रूपान्तरकारी बदलाव किये जाने की आवश्यकता पर बल

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और एक साझीदार संगठन ने बुधवार, 5 अक्टूबर, को ‘विश्व शिक्षक दिवस’ के अवसर पर जारी अपने साझा वक्तव्य में ध्यान दिलाया है कि शिक्षा में अध्यापकों की केन्द्रीय भूमिका है, और शिक्षकों के मूल्यवान कार्य के अनुरूप, उनके लिये बेहतर वेतन व कामकाजी परिस्थितियों की भी व्यवस्था की जानी होगी.
यह वक्तव्य संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले, अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के महानिदेशक गिलबर्ट हूंगबो, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNIECF) की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल और एजुकेशन इण्टरनेशनल के प्रमुख डेविड एडवर्ड्स की ओर से जारी किया गया है.
उन्होंने कहा, “आज, विश्व शिक्षक दिवस पर, हम छात्रों में निहित सम्भावनाओं की कायापलट कर देने में शिक्षकों की अहम भूमिका को रेखांकित करते हैं, यह सुनिश्चित करके कि उनके पास अपनी, अन्य लोगों की, और पृथ्वी के लिये ज़िम्मेदारी लेने के सभी आवश्यक साधन हैं.”
More qualified teachers = more quality education = better future for all!
What is your message for teachers around the world?
5 October is #WorldTeachersDay https://t.co/id7cU1XzWm https://t.co/u5uAA6OyOg
UNESCO
यूएन एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने देशों से यह सुनिश्चित करने का आहवान किया है कि शिक्षकों पर ज्ञान निर्माता व नीति साझीदार के तौर पर भरोसा किया जाए.
वक्तव्य के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने यह उजागर किया है कि वैश्विक शिक्षा प्रणालियों की बुनियाद में शिक्षक हैं, और उनके बिना समावेशी, न्यायोचित व गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करना असम्भव है.
साथ ही, वैश्विक महामारी से उबरने और छात्रों को भविष्य के लिये तैयार करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है.
“इसके बावजूद, यदि हम शिक्षकों के लिये हालात में रूपान्तरकारी बदलाव नहीं लाते हैं, तो सर्वाधिक ज़रूरतमन्दों के लिये शिक्षा का वादा, उनकी पहुँच से दूर ही रहेगा.”
यूएन एजेंसियों व साझीदार संगठन ने ध्यान दिलाया कि सितम्बर 2022 में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शिक्षा में कायापलट करने वाले बदलावों पर एक शिखर बैठक का आयोजन किया गया था.
इस बैठक में ज़ोर दिया गया कि शिक्षा व्यवस्था में रूपान्तरकारी बदलावों के लिये सशक्त, उत्साही व योग्य शिक्षकों व शिक्षाकर्मियों की आवश्यकता है.
मगर, विश्व के अनेक हिस्सों में कक्षाओं में भारी भीड़ है, शिक्षकों की संख्या कम है और उन पर काम का अत्यधिक बोझ है, वे निरुत्साहित हैं और उन्हें ज़रूरी समर्थन भी प्राप्त नहीं है.
इसके परिणामस्वरूप, अभूतपूर्व संख्या में शिक्षक अपना पेशा छोड़ रहे हैं, और शिक्षक बनने की तैयारियों मे जुटे लोगों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई है.
शीर्ष अधिकारियों ने सचेत किया कि यदि इन चुनौतियों से नहीं निपटा गया तो टिकाऊ विकास के चौथे लक्ष्य को हासिल करने के प्रयासों को धक्का पहुँचेगा, जिसके तहत सर्वजन के लिये वर्ष 2030 तक गुणवत्तापरक शिक्षा सुनिश्चित किये जाने का लक्ष्य रखा गया है.
शिक्षकों के अभाव का सबसे अधिक असर दूरदराज़ के और निर्धन इलाक़ों में रहने वाली आबादी पर होता है, विशेष रूप से महिलाओं व लड़कियों, और निर्बल व हाशिये पर धकेल दिये गए समुदायों पर.
साझीदार संगठनों का कहना है कि विश्व भर में इस दशक के अन्त तक, सार्वभौमिक आधारभूत शिक्षा के लिये प्राथमिक स्कूलों में दो करोड़ 44 लाख शिक्षकों और माध्यमिक स्कूलों में चार करोड़ 44 लाख शिक्षकों की आवश्यकता होगी.
सब-सहारा अफ़्रीका और दक्षिणी एशिया में क़रीब ढाई करोड़ अतिरिक्त शिक्षकों की ज़रूरत होगी, जोकि विकासशील देशों में कुल आवश्यक शिक्षकों की लगभग आधी संख्या है.
इन क्षेत्रों में स्थित स्कूलों की कक्षाओं में छात्रों की संख्या बहुत अधिक है, शिक्षकों पर भीषण बोझ है और शिक्षा प्रणालियों में कर्मचारियों की भी कमी है.
90 फ़ीसदी माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
इसके मद्देनज़र, साझीदार संगठनों ने ज़ोर देकर कहा है कि योग्य, समर्थन-प्राप्त और उत्साही शिक्षकों को कक्षाओं में लाना और वहाँ उनकी मौजूदगी बनाए रखना, पढ़ाई-लिखाई में सुधार के लिये सबसे अहम उपाय है, जिससे छात्रों व समुदायों का कल्याण होगा.