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ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी, यूएन महासभा के 77वें सत्र की उच्च स्तरीय जनरल डिबेट को सम्बोधित करते हुए. (21 सितम्बर 2022)

ईरान: परमाणु कार्यक्रम पर पश्चिम के 'दोहरे मानकों' की निन्दा

UN Photo/Cia Pak
ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी, यूएन महासभा के 77वें सत्र की उच्च स्तरीय जनरल डिबेट को सम्बोधित करते हुए. (21 सितम्बर 2022)

ईरान: परमाणु कार्यक्रम पर पश्चिम के 'दोहरे मानकों' की निन्दा

यूएन मामले

ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहीम रईसी ने बुधवार को यूएन महासभा के 77वें सत्र की उच्चस्तरीय जनरल डिबेट को सम्बोधित करते हुए, देश के परमाणु कार्यक्रम के बारे में पश्चिमी देशों के “दोहरे मानकों” को एक महान अन्याय क़रार देते हुए उसकी कड़ी निन्दा की है. उन्होंने अपने देश के परमाणु कार्यक्रम को शान्तिपूर्ण गतिविधियों के लिये बताया है.

ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहीम रईसी ने यूएन महासभा में मौजूद देशों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “मैं स्पष्ट रूप से घोषित करता हूँ कि ईरान इस्लामी गणराज्य, परमाणु हथियार विकसित करने की इच्छा नहीं रखता है, और ऐसे हथ्यार हमारे रक्षा सिद्धान्त में कोई स्थान नहीं रखते हैं.”

उन्होंने कहा कि ईरान का ऐसा रुख़ इस तथ्य के बावजूद है कि कुछ देशों की सरकारें परमाणु हथियारों का उत्पादन और प्रयोग जारी रखे हुए हैं, व अन्य देशों को उपहार के रूप में भेंट करते रहे हैं. उन्होंने अपने देश ईरान की परमाणु गतिविधियों के प्रति पश्चिमी देशों के इस रवैये को दोहरे मानकों वाला रुख़ क़रार देते हुए, अन्याय का प्रदर्शन बताया.

शान्तिपूर्ण कार्यक्रम

ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहीम रईसी ने कहा, “जिन देशों को निरस्त्र किया जाना चाहिये, उन्हें पुरस्कृत किया जाता है, और जिन देशों ने अपने संकल्पों पर अमल किया है, उन्हें तो परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) में वर्णित अधिकारों से भी वंचित किया जाता है.”

ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि उनके देश के शान्तिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम में, दुनिया के परमाणु कार्यक्रमों का केवल 2 प्रतिशत हिस्सा शामिल है, जबकि हमारी सुविधाओं का 35 प्रतिशत निरीक्षण किया जाता है.

उन्होंने कहा, “जो देश ईरान के परमाणु मुद्दे को एक ख़तरे के रूप में देखते हैं, वो इस वास्तविकता को नज़रअन्दाज़ कर रहे हैं कि उन्हें ख़ुद को क्या करना चाहिये: परमाणु विहीनता.”

वर्ष 2015 में ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन के दरम्यान एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था जिसे संयुक्त वृहद कार्रवाई योजना (JCPOA) कहा जाता है. इस समझौते में, ईरान ने अन्तरराष्ट्रीय प्रतिबन्धों में राहत के बदले में, अपने परमाणु कार्यक्रम के अधिकतर हिस्से को नष्ट करने और अपनी सुविधाएँ अन्तरराष्ट्रीय निरीक्षणों के लिये खोलने पर सहमति व्यक्त की थी.

परमाणु समझौता

वर्ष 2018 में, संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने अपने देश को इस समझौते से हटा लिया था और ईरान पर प्रतिबन्ध फिर से लागू कर दिये थे.

हालाँकि कुछ समय से उस कार्रवाई योजना को बहाल करने के प्रयास जारी हैं, अमेरिका और अन्य प्रतिभागियों को अभी इस समझौते का पूर्ण और प्रभावकारी क्रियान्वयन करना बाक़ी है.

ईरानी राष्ट्रपति ने बुधवार को यूएन महासभा को अपने सम्बोधन में कहा, “समझौते से पीछे, अमेरिका हटा है, ईरान नहीं. अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने अपनी रिपोर्ट में 15 बार लिखा है कि ईरान ने समझौते का पूरी तरह पालन किया है.”

उन्होंने कहा, “ईरान को अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने की क़ीमत अदा करनी पड़ी है, मगर अमेरिका की तरफ़ से अपना वादा तोड़ने और योरोपीय पक्ष की तरफ़ से भी प्रावधनों पर अमल नहीं करने के कारण, ईरान इस समझौते के फ़ायदों का आनन्द नहीं उठा सका है.”

उन्होंने मानवाधिकारों के सम्बन्ध में, कुछ निश्चित देशों की सरकारों के दोहरा मानकों को रद्द किया और इकतरफ़ा कार्रवाई को एक ऐसा उपकरण क़रार दिया जिसे कुछ देशों को पीछे धकेलने के लिये प्रयोग किया गया है.

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका चयनित आधार पर ये स्वीकार नहीं कर सकता कि कुछ देशों को अपने ख़ुद के पैरों पर खड़े होने का अधिकार हासिल है.

उन्होंने इसराइल पर, फ़लस्तीनी क्षेत्र ग़ाज़ा पट्टी की आर्थिक नाकाबन्दी के ज़रिये, “दुनिया की सबसे विशाल जेल” बनाने का आरोप भी लगाया.

इसके अलावा उन्होंने कैनेडा में आदिवासी जन की सामूहिक क़ब्रें पाए जाने और अमेरिका ने अपनी दक्षिणी सीमा पर जिस तरह प्रवासियों और शरणार्थियों को बन्दी बनाया, उसकी भी निन्दा की.