‘समावेशी, न्यायोचित और शान्तिपूर्ण’ विश्व के लिये, शिक्षा में रूपान्तरकारी बदलाव की दरकार
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने शिक्षा में रूपान्तरकारी बदलाव लाने पर केन्द्रित शिखर बैठक के समापन दिवस पर अपने सम्बोधन में आगाह किया है कि शिक्षा एक गहरे संकट से जूझ रही है, जिससे निपटने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणालियों को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप और समावेशी व न्यायसंगत बनाया जाना होगा.
महासचिव गुटेरेश ने महासभागार में प्रतिनिधियों को अपने सम्बोधन में कहा कि वह स्वयं को जीवन-पर्यन्त छात्र के रूप में देखते हैं. “शिक्षा के बिना, मैं कहाँ होता? हम में से कोई भी कहाँ होता.”
शिक्षा से ज़िन्दगियों, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों में रूपान्तरकारी बदलाव आता है, और इसलिये शिक्षा की भी कायापलट की जानी होगी.
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में शिक्षा, व्यक्तियों को सामर्थ्यवान बनाने के बजाय एक बड़े विभाजन का कारक बनती जा रही है.
यूएन प्रमुख ने संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के उस चिन्ताजनक आँकड़े का ज़िक्र किया, जिसके अनुसार निर्धन देशों में 10 वर्ष की आयु के लगभग 70 प्रतिशत बच्चे आसान सी कहानी को भी पढ़ या समझ पाने में सक्षम नहीं हैं.
सर्वोत्तम संसाधनों, स्कूलों व विश्वविद्यालयों की सुलभता के कारण, धनी वर्ग को सर्वोत्तम रोज़गार प्राप्त होते हैं.
मगर, निर्धन समुदायों, विशेष रूप से लड़कियाँ, विस्थापितों और विकलाँग छात्रों को जीवन में तब्दीली ला देने की क्षमता रखने वाली योग्यताओं को प्राप्त करने में विशाल बाधाओं से जूझना पड़ता है.
वैश्विक महामारी कोविड-19 ने टिकाऊ विकास लक्ष्य के चौथे लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में अवरोध पैदा कर दिये हैं. यह लक्ष्य सर्वजन के लिये न्यायसंगत, गुणवत्तापरक शिक्षा सुनिश्चित करने पर लक्षित है.
“लेकिन, शिक्षा संकट पहले ही शुरू हो गया था, और यह गहराई तक व्याप्त है.”
पढ़ाई-लिखाई के पुराने तौर-तरीक़े
उन्होंने शिक्षा के भविष्य पर अन्तरराष्ट्रीय कमीशन की रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्टता से कहा गया है कि मौजूदा शिक्षा प्रणालियाँ फ़िलहाल परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होती हैं.
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि मौजूदा पाठ्यक्रम, पुराने ढर्रों पर आधारित है. शिक्षक अल्प-प्रशिक्षित हैं और उन्हें कम वेतन मिलता है, जबकि पाठ को रटने पर ज़ोर दिया जाता है.
“शिक्षा, छात्रों और समाजों के लिये विफल साबित हो रही है.”
इसके अलावा, मौजूदा डिजिटल दरार का ख़ामियाज़ा निर्धन छात्रों को भुगतना पड़ता है और शिक्षा वित्त पोषण में खाई चौड़ी होती जा रही है.
इस पृष्ठभूमि में यूएन प्रमुख ने कहा, “यह समय शिक्षा व्यवस्थाओं की काया पलट कर देने का है.”
21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप
एंतोनियो गुटेरेश के अनुसार, 21वीं सदी की ज़रूरतों के अनुरूप शिक्षा के लिये एक दूरदृष्टि आकार ले रही है. गुणवत्तापरक शिक्षा के ज़रिये, छात्रों को जीवन-पर्यन्त सीखने-सिखाने के लिये तैयार किया जाना होगा.
उन्होंने कहा यह ग़लत व भ्रामक सूचनाओं का दौर है, जब जलवायु परिवर्तन को सिरे से नकार दिया जाता है और मानवाधिकारों पर हमले होते हैं.
इन हालात में ऐसी शिक्षा प्रणालियों की आवश्यकता है, जिसमें तथ्य और साज़िश के बीच का भेद स्पष्ट हो, विज्ञान के लिये आदर स्थापित किया जाए, और मानवता में विविधता का उत्सव हो.
दृष्टि से वास्तविकता तक
यूएन प्रमुख ने अपनी दृष्टि को वास्तविकता में बदलने के लिये पाँच क्षेत्रों में संकल्प लिये जाने की अहमियत को रेखांकित किया है.
पहला, सर्वजन के लिये हर स्थान पर गुणवत्तापरक शिक्षा के अधिकार की रक्षा की जानी होगी, विशेष रूप से लड़कियों और हिंसक संघर्ष से ग्रस्त क्षेत्रों में.
दूसरा, शिक्षा प्रणालियों की आधारशिला, अध्यापकों की भूमिका व कौशल को निखारना होगा, ताकि वे केवल सवाल-जवाब के बजाय, सीखने-समझने की प्रक्रिया को प्रोत्साहन दे सकें.
तीसरा, स्कूलों को सुरक्षित, स्वस्थ स्थल बनाया जाना होगा, जहाँ हिंसा, कथित कलंक या डराये-धमकाये जाने की कोई सम्भावना ना हो.
चौथा, डिजिटल क्षेत्र में क्राँति का लाभ हर किसी तक पहुँचाया जाना होगा.
इस क्रम में, उन्होंने देशों की सरकारों से निजी सैक्टर के साझीदार संगठनों के साथ मिलकर डिजिटल पढ़ाई-लिखाई की सामग्री को बढ़ावा देने का आग्रह किया है.
पाँचवा, इन सभी प्राथमिकताओं को सुचारू रूप से अमल में लाने के लिये शिक्षा वित्त पोषण और वैश्विक एकजुटता की दरकार होगी.
यूएन महासचिव ने देशों से आग्रह किया है कि शिक्षा बजट की रक्षा की जानी होगी और इसके लिये वित्त पोषण सरकारों के लिये पहली प्राथमिकता होनी चाहिये.
उन्होंने अपने सम्बोधन को समाप्त करते हुए कहा कि न्यूयॉर्क में आयोजित शिखर बैठक, वैश्विक लामबन्दी में सहायक होगी, जिनसे इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है.
युद्ध, बीमारी, आर्थिक विकास
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने युद्ध से बाल शिक्षा पर होने वाले प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने सरकारों से आग्रह किया कि हर बच्चे के लिये पढ़ाई-लिखाई सुनिश्चित की जानी ज़रूरी है, चाहे वे कहीं पर भी हों.
एचआईवी/एड्स से निपटने के लिये यूएन एजेंसी (UNAIDS) की कार्यकारी निदेशक एचआईवी से अफ़्रीका में किशोर लड़कियों व युवतियों पर होने वाले विनाशकारी असर का उल्लेख किया.
उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि सब-सहारा अफ़्रीका में पिछले वर्ष हर सप्ताह चार हज़ार लड़कियाँ संक्रमण का शिकार हुई हैं.
“यह एक संकट है. चूँकि जब एक लड़की शुरुआती आयु में ही संक्रमित हो जाती है, तो फिर एचआईवी का कोई इलाज नहीं है. यह उनके शेष जीवन, उनके अवसरों को प्रभावित करता है.”
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की प्रमुख ऑड्री अज़ूले ने ध्यान दिलाया कि शिक्षा के अभाव में आर्थिक विकास या फिर शान्ति सम्भव नहीं है.
यूएन शान्ति दूत मलाला युसूफ़ज़ई, अफ़ग़ान लड़कियों की रोबोटिक्स टीम की पूर्व कप्तान सोमाया फ़ारूक़ी और यूनीसेफ़ की सदभावना दूत वैनेसा नाकाटे समेत अन्य वक्ताओं ने भी बैठक को सम्बोधित किया.
130 देशों ने लिया संकल्प
बैठक में हिस्सा ले रहे 130 देशों ने अपनी शिक्षा प्रणालियों में नए सिरे से स्फूर्ति भरने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, ताकि पढ़ाई-लिखाई के संकट का अन्त करने के लिये कार्रवाई में तेज़ी लाई जा सके.
इससे पहले, राष्ट्रीय स्तर पर 115 चर्चाओं का आयोजन किया गया था, जिसमें नेताओं, शिक्षकों, छात्रों, नागरिक समाज और अन्य साझीदारों ने हिस्सा लिया और इसके बाद प्राथमिकताएँ व सामूहिक अनुशन्साएँ तय की गईं.
क़रीब आधी संख्या में देशों ने पढ़ाई-लिखाई की हानि को दूर करने के लिये उपायों को प्राथमिकता देने की घोषणा की है, जबकि एक-तिहाई देशों ने छात्रों व शिक्षकों के मनोसामाजिक कल्याण को अहम माना है.
हर तीन में से दो देशों ने आर्थिक रूप से निर्बल समुदायों के लिये शिक्षा की प्रत्यक्ष व परोक्ष क़ीमतों के मामले में राहत देने के उपायों का उल्लेख किया है.
75 प्रतिशत देशों ने अपने संकल्पों में लैंगिक ज़रूरतों के अनुरूप शिक्षा नीतियों को तैयार करने की अहमियता को माना है.