वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

UNGA77: देशों और अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था में भरोसे की बहाली ज़रूरी, नए महासभा प्रमुख

यूएन महासभा के 77वें सत्र के लिये अध्यक्ष कसाबा कोरोसी. उनकी बाईं ओर हैं महासचिव एंतोनियो गुटेरेश, और दाईं और हैं, महासभा व सम्मेलन प्रबन्धन के लिये अवर महासचिव मोवसेस एबेलियन.
UN Photo/Evan Schneider
यूएन महासभा के 77वें सत्र के लिये अध्यक्ष कसाबा कोरोसी. उनकी बाईं ओर हैं महासचिव एंतोनियो गुटेरेश, और दाईं और हैं, महासभा व सम्मेलन प्रबन्धन के लिये अवर महासचिव मोवसेस एबेलियन.

UNGA77: देशों और अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था में भरोसे की बहाली ज़रूरी, नए महासभा प्रमुख

यूएन मामले

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिये नवनिर्वाचित अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने कहा है कि दुनिया, भरोसे के विशाल अभाव से जूझ रही है. इस पृष्ठभूमि में, उन्होंने कहा है कि अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए उनका ध्यान जलवायु संकट से लेकर यूक्रेन में युद्ध तक और उससे उपजी खाद्य क़िल्लत तक, वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये सदस्य देशों के बीच और अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था में विश्वास को मज़बूती देने पर होगा.

महासभा प्रमुख ने यूएन न्यूज़ के साथ एक विशेष बातचीत में बताया कि, “हम बेहद गम्भीर स्थिति में हैं. और हमें यह मानना होगा कि संयुक्त राष्ट्र, वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को ही परिलक्षित करता है.”

“मगर, यूएन का एक और पहलू रहा है. इसने समाधान दर्शाए हैं. इसने अवसरों को दर्शाया है.”

Tweet URL

महासभा अध्यक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि जनरल ऐसेम्बली, सम्वाद के लिये एक वैश्विक मंच है और आम सहमति के निर्माण में संयुक्त राष्ट्र की वृहद भूमिका का भी लाभ उठाया जाना होगा.

महासभा में रिकॉर्ड किये गए इस इण्टरव्यू के दौरान, उन्होंने प्रतिष्ठित जनरल ऐसेम्बली सभागार की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि, “यहाँ पक्षकारों में भरोसे के निर्माण के लिये अवसर मौजूद हैं, इसी चैम्बर में.”

हंगरी के राजनयिक कसाबा कोरोसी ने कहा कि अन्य पहल के साथ-साथ, उनका ज़ोर, यूएन राजनयिकों के साथ मुक्त अन्दाज़ में अनौपचारिक विचार-विमर्श आयोजित करने पर होगा, जिसमें कठिन विषयों पर चर्चा होगी.

नए महासभा प्रमुख ने यूएन न्यूज़ को बताया कि 77वें सत्र की थीम है: एकजुटता, सततता और विज्ञान के ज़रिये समाधान, जिसमें विज्ञान की भूमिका को बढ़ावा दिया जाएगा.  

“हमारा काम तथ्यों पर आधारित समाधान ढूंढना है; मज़बूत तथ्य, जिनसे हमें आगे बढ़ने में मदद मिल सके. विज्ञान हमें विज्ञान-आधारित तथ्य प्रदान कर सकता है.”

“यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है: हम वैज्ञानिकों से यह नहीं कह रहे हैं कि वो हमें बताएँ कि हम क्या करें.”  

“हम वैज्ञानिकों से कह रहे हैं कि वे हमें विकल्प दिखाएँ और ये दर्शाएँ कि हमारे क़दमों से या हाथ पर हाथ धर कर बैठने के के परिणामस्वरूप क्या नतीजे हो सकते हैं.” 

“विज्ञान को सहायता के रूप में आमंत्रित करना चाहिये. विज्ञान को एक समर्थन के रूप में आमंत्रित करना चाहिये. लेकिन अन्तत: राजनैतिक निर्णय निर्धारण सदस्य देशों के पास ही रहेगा. और ज़िम्मेदारी भी फिर सदस्य देशों के हाथ में होगी.”

यह इण्टरव्यू स्पष्टता व संक्षिप्तता के लिये सम्पादित किया गया है. 

यूएन न्यूज़: हर महासभा का नया सत्र आरम्भ होने पर नवनिर्वाचित महासभा अध्यक्ष को प्रतीकात्मक रूप से एक हथौड़ा सौंपा जाता है. यह हथौड़ा और इसमें निहित ज़िम्मेदारी आपको कितनी भारी महसूस हो रही है. और आपके विचार में, महासभा के 77वें सत्र में आपकी अध्यक्षता के दौरान, वो कौन से अहम निर्णय व प्रस्ताव पारित होंगे, जिन्हें इस हथौड़े की चोट से पारित किया जाएगा?

महासभा प्रमुख: इस हथौड़े का वज़न बहुत ही साधारण सा है. इसके दैवीय उदभव के बावजूद. मगर, इसमें निहित राजनैतिक व आध्यात्मिक वज़न उससे कहीं अधिक होगा, चूँकि दुनिया एक बेहद जटिल संकट में है. 

संयुक्त राष्ट्र, विश्व में वर्तमान हालात को ही परिलक्षित करता है. जितनी दरारें दुनिया में है, संयुक्त राष्ट्र भी उतना ही बँटा हुआ है. 

इसलिये, हमें मूलत: विभाजित करने वाले बड़े मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना होगा. इसका अर्थ है, संकट प्रबन्धन और संयुक्त राष्ट्र का दायित्व अपने सदस्य देशों को सहायता प्रदान करना है. इसका अर्थ है, रूपान्तरकारी परिवर्तन. 

संकट प्रबन्धन और रूपान्तरकारी परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य से होने वाले सभी बड़े निर्णय, इसी हथौड़े की चोट से पारित होंगे.  

यूएन न्यूज़: आपने एकजुटता, सततता और विज्ञान के ज़रिये समाधानों का सुझाव दिया है और महासभा के नए सत्र के लिये यही मूलमंत्र भी है. जहाँ एकजुटता और सततता, जाने पहचाने से हैं, वहीँ विज्ञान एक नया घटक है. आप इसे महासभा के इस सत्र के कामकाज में किस प्रकार से हिस्सा बनाना चाहेंगे?

महासभा प्रमुख: अगर आप अन्यथा ना लें, तो मैं इन सभी बिन्दुओं की विस्तार से व्याख्या करना चाहूँगा.

समाधान. चूँकि हमारे पास इतनी सन्धियाँ, इतने समझौते, लक्ष्य, उद्देश्य, कार्ययोजनाएँ हैं. मगर उन्हें लागू करने के विषय में हम काफ़ी हद तक कमज़ोर हैं, और यह समय उन्हें अमल में लाने का है. यह समय केवल कार्रवाई करने का नहीं बल्कि और अधिक रूपान्तरकारी कार्रवाई का है.   
 
एकजुटता. विश्व में अनेक वर्षों से विषमताएँ बढ़ती जा रही हैं. देशों के भीतर और देशों के बीच. और यदि हम, इन विषमताओं को अनन्त रूप से बढ़ने देते हैं, इससे टकराव, तनाव, हिंसक संघर्ष व संकट और अधिक बढ़ेंगे. हमें इसके बारे में कुछ करना होगा. 

और सबसे महत्वपूर्ण बात हमारे संकल्पों का सम्मान करना है – हमारे संकल्प हमारे देशों के भीतर, और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में सभी देशों के बीच. 

यदि हम अपने समुदायों को निराश करते हैं, तो इससे पूरी दुनिया पीड़ित होगी. हमें यह कभी ना भूलना होगा: हम या तो एक साथ मिलकर खड़े होंगे, नहीं तो दरक जाएंगे. 

सततता. यह रूपान्तरकारी बदलावों के बारे में हैं. यह ज़िम्मेदारी के बारे में हैं. यह आगे की ओर देखने के बारे में हैं. 

हम आज किस तरह की दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं? कल? हम अपने बच्चों और नाती-पोतों के लिये किस तरह की दुनिया छोड़ कर जा रहे हैं? और यह ज़िम्मेदारी अभी यहीं तय होगी.

सततता का अर्थ है कि हमें बेहद जटिल मुद्दों पर एकीकृत रुख़ अपनाना होगा. रूपान्तरकारी बदलाव तभी सम्भव है जब इस एकीकरण को वास्तविकता में बदला जाए. 

यूएन महासभा के 76वें सत्र के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद, 77वें सत्र के अध्यक्ष कसाबा कोरोसी को ज़िम्मेदारियाँ सौंपते हुए. बाईं तरफ़, यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश खड़े हैं.
UN Photo/Evan Schneider
यूएन महासभा के 76वें सत्र के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद, 77वें सत्र के अध्यक्ष कसाबा कोरोसी को ज़िम्मेदारियाँ सौंपते हुए. बाईं तरफ़, यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश खड़े हैं.

यूएन न्यूज़: विज्ञान इन प्रयासों को किस तरह मज़बूती प्रदान करता है?

महासभा प्रमुख: सदस्य देश आपसी भरोसे में आई कमी, देशों व समुदायों के बीच दरार के कारण संघर्ष कर रहे हैं.

और निश्चित रूप से, विचारधारात्मक समाधानों की ओर देखना कठिन होगा. और यह हमारा काम नहीं है. हमारा काम तथ्यों पर आधारित समाधान को ढूँढना है; मज़बूत तथ्य, जिनसे हमें आगे बढ़ने में मदद मिल सके.   

विज्ञान हमें विज्ञान-आधारित तथ्य प्रदान कर सकता है.

मगर, यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है: हम वैज्ञानिकों से यह नहीं कह रहे हैं कि वो हमें बताएँ कि हम क्या करें.  

हम वैज्ञानिकों से कह रहे हैं कि वे हमें विकल्प दिखाएं और ये दर्शाएं कि हमारे द्वारा उठाये जाने वाले क़दमों से या हाथ पर हाथ धर कर बैठने के क्या नतीजे हो सकते हैं. 

विज्ञान को सहायता के रूप में आमंत्रित करना चाहिये. विज्ञान को एक समर्थन के रूप में आमंत्रित करना चाहिये. लेकिन अन्तत: राजनैतिक निर्णय निर्धारण सदस्य देशों के पास ही रहेगा. और ज़िम्मेदारी भी फिर सदस्य देशों के हाथ में होगी. 

यूएन न्यूज़: आप मोटे तौर पर यूएन प्रणाली के अनुभव का उपयोग करना चाहते हैं, जैसेकि WHO और अन्य संगठन, और वैश्विक समुदाय भी. क्या यह सही है? 

महासभा प्रमुख: हाँ, निसन्देह. हम यूएन एजेंसियों के ज्ञान और परामर्श का लाभ उठाना चाहेंगे, जो बहुत गहराई से विज्ञान पर केन्द्रित काम कर रहे हैं. 

मगर, इस बार यह शायद पर्याप्त ना हो. 

हम विज्ञान-आधारित संस्थाओं, आस्था-आधारित संस्थाओं, व्यावसायिक समुदायों, वित्तीय संस्थाओं के साथ नियमित विचार-विमर्श करना चाहेंगे, ताकि वे हमें बता पाएँ कि वे किस तरह उन बेहद जटिल प्रश्नों से निपटेंगे, जोकि सदस्य देशों के एजेण्डा पर उभर रहे हैं. 

और यह सुनिश्चित करने के लिये कि उनकी सलाह सदस्य देशों तक पहुँच सके, और उसे पहुँचना चाहिये.  

हम एक नियमित विचार-विमर्श प्रक्रिया भी आयोजित करना चाहेंगे. इसे पहले सुबह की चर्चा, सुबह की कॉफ़ी या सुबह का सम्वाद कहा जाता था, जोकि सदस्यों और राजदूतों के छोटे समूह के साथ होता था. तसल्ली भरे, अनौपचारिक माहौल में.  

यह देखने के लिये कि विज्ञान समुदाय ने क्या परामर्श प्रदान किया है, या फिर व्यावसायिक समुदाय ने, सदस्य देशों के क्या हित हैं, ज़मीनी वास्तविकता क्या है...और हम साथ मिलकर क्या कर सकते हैं. [यह चर्चा] बिना किसी बाध्यता के होगी. 

इसलिये यह एक तरह से निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया की तैयारी करने का है, जोकि फिर महासभा में आयोजित होगी.

यूएन न्यूज़: समाधानों की बात करें तो शपथ ग्रहण के बाद मीडिया से बात करते हुए, यूक्रेन के बारे में पूछे गये सवाल का जवाब देते हुए, आपने कहा कि युद्ध, समृद्धि नहीं ला सकता, यह सिर्फ़ पीड़ा लाता है, और इस युद्ध को रोका जाना होगा. आप समाधान को ढूँढने के लिये अपने कार्यालय का इस्तेमाल किस तरह करना चाहेंगे. उच्चस्तरीय सप्ताह के दौरान और उससे परे भी इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये. 

महासभा प्रमुख: इसका उल्लेख करने के लिये धन्यवाद. मेरे विचार में आक्रमण, जैसाकि महासभा के एक प्रस्ताव में व्याख्यित किया गया है, अनेक देशों की सोच में बदलाव लाने वाला एक पड़ाव था. 

सदस्य देशों के एक बड़े बहुमत ने इस मुद्दे पर बात की है. उन्होंने समझा कि हम इतिहास में एक नये युग की दहलीज पर हैं. 

इस युद्ध, इस आक्रामकता से यूक्रेन, रूस, पड़ोसी देशों और असल में हिंसक टकराव से हज़ारों मील दूर स्थित अनेक देशों में लाखों लोगों के लिये पीड़ा उभरी है. 

खाद्य श्रृंखला, खाद्य आपूर्ति, ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान के ज़रिये, मुद्रास्फीति दर जिस स्तर पर है, वो पिछले कुछ दशकों में अभूतपूर्व है.  

और इस वजह से अनिश्चितता और अविश्वास पनपा है. और सबसे अहम बात यह है कि इससे विश्वास व समझौते पर निर्मित सहयोग प्रणाली को नुक़सान पहुँचना शुरू हो गया.

इसलिये, हमें इसे फिर से खड़ा करना है. मैं नासमझ नहीं हूँ. मेरा सुझाव यह नहीं है कि इसे एक वर्ष के भीतर पूरा कर लिया जाएगा, मगर हमारे पास खोने के लिये एक भी दिन नहीं है. चूँकि पीड़ाओं को दूर किया जाना होगा.  

मानवीय सहायता को पीड़ितों तक पहुँचने की अनुमति दी जानी होगी. विशाल स्तर पर सुरक्षा के विषय में उथल-पुथल से उपजे ख़तरों को जल्द से जल्द ख़त्म करना होगा. 

इसलिये, मैं हम सभी से तत्काल एक युद्धविराम के लिये कह रहा हूँ, यह सुनिश्चित करने के लिये कि मानव पीड़ा को दूर किया जाए. 

यूएन महासभा का 11वाँ आपात सत्र अभी चल रहा है. अगर सदस्य देश कहें, तो इसे किसी भी समय फिर से बुलाया जा सकता है.

सदस्य देशों के निवेदन पर, और परिस्थितियों के आधार पर, इसे 24 घण्टों के भीतर बुलाया जा सकता है, और मैं ऐसा करने के लिये तैयार हूँ. 

यूएन महासभा के विशेष आपात सत्रों के विषय में अधिक जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें. 

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिये अध्यक्ष कसाबा कोरोसी पत्रकारों से बातचीत के दौरान.
UN Photo/Manuel Elias
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिये अध्यक्ष कसाबा कोरोसी पत्रकारों से बातचीत के दौरान.

यूएन न्यूज़: आपने कहा कि विश्व में अनेक अनिश्चितताएँ हैं और हिंसक संघर्ष से इतर अन्य संकट भी हैं. जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि, खाद्य असुरक्षा और अन्य संकट. विभिन्न अवसरों पर, आपने जल संकट का भी उल्लेख किया है, और आपने उस विषय में ख़तरे की घण्टी भी बजाई. क्या आप इस सत्र के दौरान इस विषयों को अपने एजेण्डा में ऊपर रखेंगे.

महासभा प्रमुख: हाँ, बिलकुल ऐसा ही. चूँकि यह सम्भवत: अगली बड़ी चुनौती है, जिसका हमें सामना करना है.

असल में यह चुनौती पहले से ही शुरू हो चुकी है. पाकिस्तान को देखिये, विभिन्न महाद्वीपों पर विशाल स्तर पर सूखे की घटनाओं को देखिये.   

हमारे सामने मुख्यत: जल सम्बन्धी तीन समस्याएँ हैं: बहुत कम जल, बहुत अधिक जल, या बहुत प्रदूषित जल. 

और विभिन्न क्षेत्रों में अधिकाँश देश एक ही समय में इन तीनों समस्याओं से जूझ रहे हैं. और यह एक जटिल समस्या है जोकि टिकाऊ विकास को प्रभावित कर सकती है.

यह अनेकानेक क्षेत्रों में प्रगति को बर्बाद कर सकती है – निर्धनता उन्मूलन से लेकर खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा उत्पादन और आर्थिक क्षेत्र में रूपान्तरकारी बदलावों तक.

यह एक बेहद जटिल मुद्दा है, जिसका असर राजनैतिक जीवन, सुरक्षा, मानव व आर्थिक जीवन के विभिन्न आयामों और हमारे पर्यावरण की मौजूदा स्थिति पर पड़ेगा. यह एक केन्द्रीय मुद्दा है. 
और अब तक 50 वर्ष बीत चुके हैं जब अन्तिम बार यूएन ने जल के विषय अपना पूर्ण सम्मेलन आयोजित किया था...1977 के बाद से अब तक.

यूएन के आगामी जल सम्मेलन में सदस्य देशों के पास रूपान्तरकारी बदलावों के लिये उपाय अपनाने का अवसर होगा.     

हम जानते हैं कि समस्याएँ क्या हैं. समस्याओं को अनेक बार परिभाषित किया गया है. अब यह समय समाधानों का है. यह समय कायापलट कर देने वाले समाधानों का है.

यूएन न्यूज़: एकता के विषय में... यूएन महासभा अध्यक्ष के तौर पर आपके मैण्डेट के तहत, आपसे आशा की जाती है कि आप प्रतिनिधियों को आम सहमति तक पहुँचने में सहायता करें, और एक प्रकार से दुनिया को एकजुट करें. देशों के बीच भरोसे का निर्माण करने और सहयोग की भावना को फिर से स्थापित करने के लिये आप और आपका कार्यालय किस तरह प्रयास करेगा? 

महासभा प्रमुख: अगर सवाल यह है कि क्या मैं चमत्कार कर पाऊँगा या नहीं, क्या मैं सभी बड़े मुद्दों को एक साल के भीतर सुलझा पाऊँगा या नहीं, तो मेरा उत्तर है, नहीं, यह यथार्थवादी नहीं है. लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि हमारे पास खोने के लिये समय नहीं है, एक दिन भी नहीं.

हम एक बहुत कठिन स्थिति में हैं. भरोसे का निर्माण. हमें यह मानना होगा कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व में मौजूदा स्थिति को ही परिलक्षित करता है. मगर, यूएन का एक अन्य पहलू भी है. यह पहलू हमेशा से रहा है. यूएन ने समाधान दर्शाये हैं. इसने अवसरों को दर्शाया है. और मेरा मानना है कि उनका लाभ उठाया जाना चाहिये. वे अवसर मुख्य पक्षकारों के बीच भरोसे के निर्माण के लिये हैं, इस चैम्बर में.  

और जैसा मैंने कहा, मैं नियमित रूप से, मुक्त माहौल में, कठिन विषयों पर दिलचस्प व प्रेरणादायी चर्चाओं का आयोजन करना चाहूँगा. आइये कल्पना करें, 20 राजदूत एक दूसरे के नज़दीक बैठकर ऐसे विषयों पर चर्चा कर रहे हों, जिनका सीधा असर जनरल असेम्बली में विचार-विमर्श पर हो. कोई औपचारिकता, कोई रिकॉर्ड नहीं.

बस ज़मीनी तथ्यों की पड़ताल, कि किन वैज्ञानिक तथ्यों पर विचार किया जाना चाहिये, और कुछ देशों की किस तरह की चिन्ताएँ हो सकती हैं. मुझ महसूस होता है कि इससे कुछ हद तक भरोसा पनप सकता है. 

और मेरा मानना है कि इस चैम्बर के बाहर के लोगों की बात सुनी जाए, तो भी हम भरोसा क़ायम कर सकते हैं. वो लाखों, करोड़ों लोग, जिन्हें यूएन से आशाएँ हैं. 

यही उनकी उम्मीद है. इस संस्था के लिये, इस संगठन के लिये आशा. उनकी आवश्यकताएँ हैं, और उनके पास ज़मीन सच्चाई का अनुभव और ज्ञान भी है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिये नव नियुक्त अध्यक्ष क्साबा कॉरोसी, महासभा को सम्बोधित करते हुए.
UN Photo/Eskinder Debebe
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिये नव नियुक्त अध्यक्ष क्साबा कॉरोसी, महासभा को सम्बोधित करते हुए.

यूएन न्यूज़: यूएन और महासभा में फिर से स्फूर्ति भरने के विषय में चर्चा करते हुए, क्या आप विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचना और अन्तर्दृष्टि का भी इस्तेमाल करेंगे, जिनका उल्लेख आपने वक्तव्य में भी किया है? और क्या इसका इस्तेमाल आप सुरक्षा परिषद में सुधार समेत ऐसे अन्य विषयों पर चर्चा के दौरान भी करेंगे.

महासभा प्रमुख: हाँ, काफ़ी हद तक. यह मानना होगा कि दुनिया बदल रही है. विश्व में वास्तविकताएँ बदल रही हैं. जो चुनौतियाँ हमारे समक्ष मौजूद हैं, उनकी जटिलताएँ भी बदल रही हैं. और फिर हमारे संगठन को भी बदलना होगा. 

इसलिये हमारी संस्थाओं को भी बदलना होगा. संस्थाओं को इसलिये स्थापित किया गया है कि हम अपनी समस्याओं पर ध्यान दे सकें और उनसे निपट सकें. 

और यदि मौजूदा चुनौतियाँ व समस्याएँ, संगठन की स्थापना के समय की तुलना में बेहद अलग हैं, तो संगठन में सुधार की आवश्यकता है. और हम, महासभा समेत संयुक्त राष्ट्र में सुधार प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं. और मैं सुधार का पुरज़ोर समर्थन करता हूँ, और महासभा के कामकाज में नई स्फूर्ति भर देने के लिये भी. 

और मुझे महसूस होता है कि सदस्य देशों ने जिस दिशा में चलना शुरू किया है, उससे बहुत प्रोत्साहन मिलता है. 

सुरक्षा परिषद में सुधार पर...मैं इन चर्चाओं, वार्ताओं और अन्तरसरकारी वार्ताओं को पिछले 20 से अधिक साल से नज़र रख रहा हूँ. और मैंने सभी तर्कों को सुना है, पक्ष और विपक्ष दोनों, और मैंने नतीजों और उनके अभाव को भी देखा है.

वैसे तो दुनिया बदल रही है, चुनौतियाँ भी बदल रही हैं और पहले से कहीं अधिक जटिल होती जा रही हैं. यह स्पष्ट है कि समुदाय ये आशा करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र उनकी सुरक्षा व सलामती के लिये पहले से कहीं अधिक प्रयास करे. 

और मेरा मानना है कि सुरक्षा परिषद की इसमें एक बड़ी, एक विशेष भूमिका है. 

इसलिये, मेरा सोचना है कि अन्तर-सरकारी वार्ताओं को आगे जारी रखना चाहिये, और उन्हें प्रभावशाली व नतीजों पर केन्द्रित होना चाहिये. और निश्चित रूप से, मैं इन वार्ताओं को आगे बढ़ाने में मदद करने वालों को नामांकित करूँगा और मैं उनसे उद्देश्य व नतीजों पर केन्द्रित होने का आग्रह करूँगा. 

लेकिन आप मेरे से कहीं बेहतर ढँग से जानते हैं कि यह सदस्य देशों द्वारा आगे बढ़ाई जाने वाली प्रक्रिया है. यह महासभा प्रमुख के ऊपर नहीं है कि वार्ताओं का क्या नतीजा निकलेगा और हम वार्ताओं के परिणाम को कब प्राप्त कर सकते हैं. मैं वार्ता को आगे बढ़ाने वाले प्रमुखों की मदद करूँगा, और ज़रूरत हुई तो मैं अपनी क्षमता अनुरूप, जितना सम्भव हो सके, मदद करूँगा.  

यूएन न्यूज़: आपने वायदा किया है कि आपका कार्यालय बहुसंस्कृतिवाद और बहुभाषावाद के मूल्यों को बढ़ावा देगा. आप किस प्रकार से ऐसा करेंगे?

महासभा प्रमुख: बहुसंस्कृतिवाद, हम सभी के लिये एक साझा मूल्य, एक साझा विरासत है. हम बिलकुल अलग परम्पराओं वाले, बिलकुल अलग संस्कृतियों वाले भिन्न-भिन्न देशों से हैं. एक साथ मिलकर, हम मानवता की साझा विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं. 

मौजूदा विरासत के किसी भी अंश को खोना, हम सभी के लिये नुक़सान होगा. इसलिये, मैं अनेक अवसरों पर इस दिशा में बढ़ने का प्रयास करूँगा. चाहे प्रदर्शनी हो, या विशेष कार्यक्रम, मैं सदस्य देशों को प्रोत्साहित करूँगा: अपनी विरासत लाइये, अपने मूल्य लाइये, अन्य सदस्य देशों के साथ साझा कीजिये.  

बहुभाषावाद के बारे में कहूँ, तो हम सभी जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाएँ हैं. हम ये भी जानते हैं कि इन भाषाओं को इस्तेमाल करने के क्या नियम हैं. 

हम ये भी जानते हैं कि यह बेहद ख़र्चीला काम है. लेकिन जहाँ तक सम्भव हो सके, मैं इन सभी छह भाषाओं को समान स्तर पर उपयोग में लाने का प्रयास करूँगा. और यदि सम्भव हो, तो आइये, विश्व की अन्य बड़ी भाषाओं पर भी ध्यान दें, चूँकि वे हमारी संस्कृति और साझा सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखती हैं.