यूएन वैश्विक कांग्रेस, आतंकवाद पीड़ितों की स्मृति व उनके लिये समर्थन का अवसर
आतंकवाद के पीड़ितों के अधिकारों को बढ़ावा देने व आवश्यकताओं को पूरा करने और उनके लिये हर सम्भव समर्थन सुनिश्चित किये जाने के इरादे से, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गुरूवार को दो-दिवसीय वैश्विक कांग्रेस शुरू हुई है.
यह पहली बार है जब आतंकवाद के पीड़ितों की वैश्विक कांग्रेस आयोजित की गई है, जिसमें संरक्षण, स्मृति, न्याय की सुलभता, समर्थन व सहायता समेत अन्य अहम मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा.
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इस बैठक में 600 से अधिक प्रतिभागियों के हिस्सा लेने की उम्मीद है, जिनमें आतंकवाद के पीड़ित, राजनयिक, विशेषज्ञ और नागरिक समाज, शिक्षा जगत व निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं.
आतंकवाद निरोधक यूएन कार्यालय के प्रमुख व्लादीमीर वोरोनकोव ने अपने सम्बोधन में कहा कि आतंकवाद हर किसी को प्रभावित कर सकता है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह कांग्रेस एक अवसर है जिससे आतंकवादियों व हिंसक चरमपंथियों द्वारा अपने पक्ष में जुटाए जाने वाले समर्थन को छीनकर, उसे पीड़ितों व जीवित बच गए लोगों को लौटाया जाए.
आतंकवाद पर यूएन कार्यालय के प्रमुख ने इस क्रम में कुछ उपायों का ख़ाका पेश किया है, ताकि पीड़ितों के लिये समर्थन का दायरा व स्तर बढ़ाया जा सके.
इसके तहत, आतंकवाद के पीड़ितों के हितों को सर्वोपरि मानते हुए उनका ध्यान रखा जाना होगा.
व्लादीमीर वोरोनकोव के अनुसार, पीड़ितों के लिये व्यापक समर्थन सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है.
चुनौती के अनुरूप उपाय
“आगे जाकर, हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि सदस्य देश पीड़ितों की शारीरिक, मेडिकल और मनोसामाजिक आवश्यकताएँ पूरी कर पाएँ, और उनके मानवाधिकारों की शिनाख़्त व रक्षा हो.”
देशों को राष्ट्रीय स्तर पर क़ानूनी फ़्रेमवर्क स्थापित करके और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा व उन्हें बढ़ावा देते हुए, अपने संकल्पों को मज़बूती देनी होगी.
यूएन कार्यालय प्रमुख ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी विशाल संकल्प की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
“आतंकवाद के पीड़ितों को श्रृद्धांजलि व उनकी स्मृति के पाँचवे अन्तरराष्ट्रीय दिवस को हाल ही में मनाए जाने के बाद, हमारे संकल्प को ठोस कार्रवाई में बदला जाना जारी रखना चाहिये.”
“इस कांग्रेस जैसी ये बैठकें, हमें और अधिक प्रयास करने के लिये प्रेरित करती रहेंगी.”
कार्रवाई की पुकार
उदघाटन समारोह के दौरान, दुनिया भर से 10 लोगों ने अपनी आपबीतियाँ साझा करते हुए बताया कि आतंकवाद ने किस तरह उनके जीवन को बदल कर रख दिया है.
पीड़ितों व आतंकी घटनाओं में जीवित बच गए लोगों ने अपने दर्दनाक अनुभव साझा करते हुए, न्याय, मुआवज़े और पीड़ितों के लिये स्मृति स्थल समेत कार्रवाई का आहवान किया है.
पीड़ितों का मानना है कि उनकी ज़रूरतें और अधिकार अलग हैं, और उन्हें अलग तरीक़ों से ही पूरा किया जाना होगा.
उनके अनुसार, ज़रूरतों के मुताबिक़ समर्थन की दरकार होगी, चाहे फिर वो वित्तीय समर्थन हो, स्वास्थ्य ज़रूरतें हों, या फिर मनोसामाजिक समर्थन.
आतंकवाद पीड़ितों ने प्रतिभागियों से एक आन्दोलन का हिस्सा बनने का आहवान किया, ताकि उनके बच्चों को वैसे अनुभवों से ना गुज़रना पड़े, जिनका सामने उन्होंने स्वयं अतीत में किया है.