निवेश नहीं हुआ तो, लैंगिक समानता प्राप्ति में लग सकते हैं 300 साल
महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत यूएन संस्था (UN Women) और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (UN DESA) ने बुधवार को एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो दर्शाती है कि यदि पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में प्रगति की मौजूदा रफ़्तार ही जारी रही, तो इस लक्ष्य को पाने में क़रीब 300 साल लग सकते हैं.
अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 महामारी, हिंसक संघर्ष और जलवायु परिवर्तन समेत सिलसिलेवार वैश्विक संकटों की पृष्ठभूमि में लैंगिक विषमताएँ बद से बदतर हो रही हैं.
इसके साथ-साथ, महिलाओं के यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर प्रहार से हालात और चुनौतीपूर्ण हुए हैं.
इसके परिणामस्वरूप, देशों के लिये 2030 की समय सीमा के भीतर टिकाऊ विकास के पाँचवे लक्ष्य को पूरा कर पाना सम्भव नहीं होगा.
8 years. That's the time we still have to achieve the #GlobalGoals by 2030, and gender equality cuts across all 17 of them.Do you think we can still make it?Check the brand new @UN_Women & @UNDESA 2022 Gender Snapshot report: https://t.co/CEAUazTV9J#SDG5 #GenderData
UN_Women
रुझान पलटने पर बल
यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशिका सीमा बहाउस ने कहा, "हम जैसे-जैसे 2030 के आधे रास्ते के क़रीब पहुँच रहे हैं, यह महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के लिये एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.”
"यह महत्वपूर्ण है कि हम एकजुट होकर महिलाओं और लड़कियों के लिये प्रगति में तेज़ी लाने के लिये निवेश करें.”
“आँकड़े उनके जीवन में फिर से आए ढलान को दर्शाते हैं, जिसे वैश्विक संकटों ने बद से बदतर बना दिया है, ख़ासतौर से आय, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य में."
“हम इस रुझान को बदलने में जितना अधिक समय लेंगे, हम सभी को इसकी क़ीमत उतनी ही चुकानी पड़ेगी."
बुधवार को जारी ‘The Gender Snapshot 2022’ रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया को सही रास्ते पर लाने के लिये किस तरह सहयोग, साझेदारी और निवेश की आवश्यकता है.
जल्द कार्रवाई के अभाव में, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर प्रतिबन्ध ना लगाने वाली या विवाह और परिवार में उनके अधिकारों की रक्षा नहीं करने वाली क़ानूनी प्रणालियाँ आने वाली अनेक पीढ़ियों तक जारी रह सकती हैं.
रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई है कि प्रगति की मौजूदा दर पर, क़ानूनी संरक्षण में व्याप्त कमियों को दूर करने और भेदभावपूर्ण क़ानूनों को हटाने में 286 साल तक का समय लगेगा.
सर्वाधिक निर्बल प्रभावित
रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं को कार्यस्थलों पर नेतृत्व के पदों पर समान प्रतिनिधित्व हासिल करने में 140 साल लगेंगे, और राष्ट्रीय संसदों में ऐसा होने में 40 साल लग सकते हैं.
इस बीच, वर्ष 2030 तक बाल विवाह को जड़ से ख़त्म करने के लिये, पिछले दशक की तुलना में प्रगति में 17 गुना तेज़ी लानी होगी.
ग़रीब ग्रामीण परिवारों और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियों को सबसे अधिक पीड़ा झेलनी पड़ती है.
यूएन आयोग में सहायक महासचिव मारिया-फ्रांसेस्का स्पैटोलिसानो ने कहा, “सिलसिलेवार वैश्विक संकट, एसडीजी की उपलब्धियों को जोखिम में डाल रहे हैं, और विश्व के सबसे निर्बल जनसंख्या समूहों पर विषमतापूर्ण रूप से प्रभाव पड़ा है, मुख्य रूप से महिलाओं और लड़कियों पर.”
“लैंगिक समानता सभी एसडीजी को हासिल करने की नींव है और बेहतर पुनर्निर्माण के लिये महत्वपूर्ण है.”
अत्यधिक निर्धनता में उभार
रिपोर्ट में ग़रीबी उन्मूलन प्रयासों को धक्का पहुँचने पर भी चिन्ता व्यक्त की गई है, बढ़ती क़ीमतों के कारण स्थिति और अधिक बिगड़ने की आशंका है.

वर्ष 2022 के अन्त तक, 36 करोड़ 80 लाख पुरुषों और लड़कों की तुलना में लगभग 38 करोड़ 30 लाख महिलाएँ व लड़कियाँ अत्यधिक ग़रीबी में जीवन गुज़ार रही होंगी.
दुनिया के अधिकांश हिस्सों में लोगों के पास भोजन, कपड़े और आश्रय जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर पाने के लिये पर्याप्त आय नहीं होगी.
रिपोर्ट के अनुसार, यदि मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो सब-सहारा अफ़्रीका क्षेत्र में, आज की तुलना में अधिक संख्या में महिलाएँ और लड़कियाँ, 2030 तक अत्यधिक ग़रीबी में रहने के लिये मजबूर होंगी.
फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, और फ़िलहाल वहाँ जारी युद्ध से खाद्य असुरक्षा व भूख की स्थिति बद से बदतर हो रही है, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिये.
युद्ध के कारण मुद्रास्फीति में उछाल आया है और गेहूँ, उर्वरक व ईंधन की आपूर्ति सीमित हो गई है.
शिक्षा की शक्ति
रिपोर्ट के अन्य चुनौतीपूर्ण तथ्य बताते हैं कि महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर महिलाओं की आय में लगभग 800 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है.
हालात में आए सुधार के बावजूद, रोज़गार बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी, वर्ष 2021 में 51.8 फ़ीसदी की तुलना में, इस साल घटकर 50.8 फ़ीसदी रह जाने का अनुमान है.
यह रिपोर्ट ‘Transforming Education’ शिखर बैठक से पहले जारी की गई है, जोकि इसी महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान आयोजित की जा रही है.
लड़कियों के लिये सार्वभौमिक शिक्षा की प्राप्ति, अपने आप में पर्याप्त नहीं है, मगर इससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा.
स्कूली शिक्षा के प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के कारण लड़कियों के लिये उनकी भावी आय में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है.
साथ ही, इससे ग़रीबी में कमी लाने, बेहतर मातृत्व स्वास्थ्य सुनिश्चित करने, बाल मृत्यु दर में कमी लाने, एचआईवी की ज़्यादा रोकथाम कर पाने और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में कमी लाने में भी मदद मिलेगी.