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चीन: शिंजियांग में गम्भीर मानवाधिकार उल्लंघनों का हल निकालने का आग्रह

चीन की राजधानी बीजिंग का एक दृश्य.
Unsplash/Li Yang
चीन की राजधानी बीजिंग का एक दृश्य.

चीन: शिंजियांग में गम्भीर मानवाधिकार उल्लंघनों का हल निकालने का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के 40 से अधिक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बुधवार को कहा है कि चीन को अपने शिंजियांग उवीगर स्वायत्र क्षेत्र (XUAR) में मानवाधिकारों के गम्भीर उल्लंघनों का समाधान निकालना होगा, और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय भी इस मुद्दे पर अपनी आँखें बन्द नहीं कर सकता.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों का ये वक्तव्य, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय - OHCHR की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के सन्दर्भ में आया है जिसमें कहा गया है कि शिंजियांग प्रान्त में उवीगर और वहाँ के अन्य मुख्यतः मुस्लिम समुदायों के विरुद्ध, मानवाधिकारों के गम्भीर उल्लंघन हुए हैं.

यूएन रिपोर्ट के लिये समर्थन

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने उस रिपोर्ट के आकलन का समर्थन करते हुए, निष्कर्ष को रेखांकित किया है, जिसमें कहा गया है, “उवीगर और अन्य मुख्यतः मुस्लिम अल्पसंख्यकों के सदस्यों को मनमाने और भेदभावपूर्ण तरीक़े से बन्दी बनाए जाने के मामले... अन्तरराष्ट्रीय अपराध कहे जा सकते हैं, विशेष रूप से मानवता के विरुद्ध अपराध.”

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मानवाधिकार विशेषज्ञों ने रिपोर्ट के इन निष्कर्षों की तरफ़ भी ध्यान आकृष्ट किया है जिनमें उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के चलन के विश्वसनीय आरोप सामने आए हैं.

इनमें, जबरन चिकित्सा उपचार और प्रतिकूल बन्दीकरण परिस्थितियों के आरोप भी शामिल हैं. साथ ही, यौन व लिंग आधारित हिंसा के आरोप भी हैं – मसलन महिलाओं की निजता का हनन करने वाली प्रजनन जाँच कराया जाना. इनके अलावा परिवार नियोजन को जबरन लागू करने और जन्म को नियंत्रित करने वाली नीतियाँ लागू करने के संकेत भी शामिल हैं.

यून मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आतंकवाद-निरोधक और अतिवाद का मुक़ाबला करने के लिये क़ानूनों, नीतियों और कार्रवाइयों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किये जाने की तरफ़ आकर्षित किये गए ध्यान का भी स्वागत किया है.

अधिकारों को सीमित करने वाली नीतियाँ

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है कि संयुक्त राष्ट्र की दोनों मानवाधिकार प्रणालियों ने दिखाया है कि चीन की नीतियों और कार्रवाइयों ने अनेक मानवाधिकारों के वैध प्रयोग को सीमित कर दिया है, और यही बात रिपोर्ट में भी कही गई है.

उनमें धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यकों के अपनी संस्कृति का आनन्द लेने, अपने धर्म का प्रचार व पालन करने, या अपनी ख़ुद की भाषा का प्रयोग करने का अधिकार भी शामिल है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि वो यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट में प्रस्तुत तमाम सिफ़ारिशों की हिमायत करते हैं. उन्होंने वो सिफ़ारिशें लागू करने में आसानी के लिये अपना समर्थन देने की पेशकश भी की है.

मानवाधिकार परिषद सत्र

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चीन सरकार से, यूएन मानवाधिकार शासनादेश रखने वालों को, देश की यात्रा करने के लिये आमंत्रित करने और उनकी इस यात्रा के लिये उनकी उपलब्धता की पुष्टि करने का आहवान किया है.

विशेषज्ञों ने, यूएन मानवाधिकार परिषद से, चीन के मुद्दे पर एक विशेष सत्र आयोजित करने की अपनी पुकार भी दोहराई है, जो, उन्होंने सबसे पहले जून 2020 के वक्तव्य में की थी.

उन्होंने कहा है कि ये सत्र इसलिये भी बुलाया जाना चाहिये क्योंकि लोगों को मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाया जाना, जबरन गुमशुदगी, आवागमन पर पाबन्दी, निजता, धार्मिक स्वतंत्रता, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन जैसे गम्भीर चिन्ता के मामले, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर देश के अन्य हिस्सों में भी हो रहे हैं. 

उनका कहना है कि यूएन मानवाधिकार परिषद को, चीन में मानवाधिकार स्थिति की निगरानी और विश्लेषण करके रिपोर्ट सौंपने के लिये, तुरन्त शासनादेश या विशेषज्ञों का एक पैनल गठित करना चाहिये. 

उन्होंने साथ ही ये भी कहा है कि यूएन महासभा या महासचिव को, इस मुद्दे पर एक विशेष दूत की नियुक्ति करनी चाहिये.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सदस्य देशों, यूएन एजेंसियों और कारोबारों से भी ये मांग उठाने का आग्रह किया है कि चीन अपनी मानवाधिकार ज़िम्मेदारियाँ पूरी करे, जिनमें चीन सरकार के साथ उनके जारी संवादों के दौरान ये मांग उठाना भी शामिल है.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ

इस वक्तव्य पर जिन यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने हस्ताक्षर किये हैं, उनमें वो विशेष रैपोर्टेयर और कार्यकारी समूह के सदस्य शामिल हैं जिनकी नियुक्ति, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद ने की है.

इन विशेषज्ञों को दुनिया भर में मानवाधिकारों से सम्बन्धित चिन्ताओं के विभिन्न मुद्दों की निगरानी करने और रिपोर्ट सौंपने का शासनादेश मिला हुआ है.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ अपनी निजी क्षमता में काम करते हैं, वो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं; और ना ही उन्हें, उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.