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भारत: महिलाओं के लिये ‘21वीं सदी कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम’

यूएनडीपी के 21वीं सदी कौशल विकास कार्यक्रम में करियर मार्गदर्शन, परामर्श और नियुक्ति के बाद सहायता भी दी जाती है.
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यूएनडीपी के 21वीं सदी कौशल विकास कार्यक्रम में करियर मार्गदर्शन, परामर्श और नियुक्ति के बाद सहायता भी दी जाती है.

भारत: महिलाओं के लिये ‘21वीं सदी कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम’

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), भारत के पश्चिमी प्रदेश गुजरात में एक ऐसे कार्यक्रम को समर्थन दे रहा है, जिसके माध्यम से, ऐसे युवाओं, ख़ासतौर महिलाओं का कौशल विकास करके उन्हें भविष्य के लिये तैयार किया जा रहा है, जिन्हें रोज़गार की तलाश है.

15 लोगों के संयुक्त परिवार में छह भाई-बहनों में सबसे छोटी, नज़मा यूनुसभाई का सपना था - अपनी शिक्षा पूरी करके शिक्षिका बनना. लेकिन गुजरात के देवभूमि द्वारका के अपेक्षाकृत रूढ़िवादी और ग्रामीण हिस्से में पली-बढ़ी, नज़मा की शिक्षा, हमेशा उनके परिवार व समुदाय को खटकती थी. 

समुदाय के लोग, उनके माता-पिता को नज़मा को तालीम दिलाने की अनुमति देने के लिये बुरा-भला कहते थे, "लड़कियाँ केवल 'चूल्हे' जलाने के लिये होती हैं. अगर आप अपनी बेटी को तालीम दिलाओगे, तो एक दिन वह उस परिवार में आग लगा देगी, जिसमें उसकी शादी होगी."

लेकिन नज़मा एक अलग अलख़ जलाना चाहती थीं. वह अपनी शिक्षा पूरी करने के लिये प्रतिबद्ध थीं. हर बार जब उसके पिता उन्हें स्कूल से निकालते, तो वो वापिस दाख़िला लेने का कोई-न-कोई तरीक़ा ढूंढ लेतीं. वो बताती हैं, “लेकिन मेरा स्कूल ख़त्म होने के बाद, मेरे पिता ने मुझे आगे पढ़ाने से इनकार कर दिया. वो मेरे जीवन के सबसे काले दिन थे." 

हो सकता है कि इससे वो बार-बार निराशा हुई हों, लेकिन अपनी लड़ाई जारी रखने का उनका दृढ़ संकल्प कभी कम नहीं हुआ. 2011 में, उन्होंने हिन्दी में मास्टर डिग्री प्राप्त की और 2017 में उन्होंने शिक्षण में स्नातक की डिग्री पूरी की.

मंज़िल की ओर बढ़ते क़दम

श्रद्धा ने प्रोजेक्ट PROGRESS के हिस्से के रूप में, जामनगर में महीने भर का 21वीं सदी कौशल प्रशिक्षण पूरा किया.
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श्रद्धा ने प्रोजेक्ट PROGRESS के हिस्से के रूप में, जामनगर में महीने भर का 21वीं सदी कौशल प्रशिक्षण पूरा किया.

कुछ ऐसी ही कहानी है, गुजरात के जामनगर में श्रृद्धा गोस्वामी की. उन्होंने भी शिक्षिका बनने का सपना देखा था, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंज़ूर था. शिक्षा का ख़र्च उठाने में सक्षम नहीं होने के कारण, उन्हें कक्षा 8 के बाद स्कूल छोड़ने के लिये कहा गया. लेकिन उन्होंने अपनी कोशिशें जारी रखीं और भारत सरकार के स्वायत्त संस्थान, ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग’ में दाखिला लिया, जो आसान तरीक़ों से गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा एवं कौशल विकास तक पहुँच प्रदान करता है.श्रृद्धा ने, साल 2022 के शुरू में माध्यमिक विद्यालय की शिक्षा पूर्ण की.

नज़मा भी, एक स्कूल शिक्षिका के रूप में, युवा लड़कियों व महिलाओं के जीवन तथा अवसरों को प्रभावित करने वाले सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये, अपनी आवाज़ बुलन्द रही हैं. 

वो कहती हैं, “मैं युवा माताओं से अपने बच्चों, विशेषकर अपनी बेटियों को शिक्षित करने का आग्रह करती हूँ. जब मैं किसी परिवार को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर पाती हूँ, तो मुझे बेहद गर्व होता है. लेकिन जब मैं कम उम्र की लड़कियों को स्कूल छोड़ते या बच्चों को गोद में लिये देखती हूँ - तो मेरा यह अहसास प्रबल हो जाता है कि मुझे महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की हिमायत जारी रखने की ज़रूरत है.”

श्रृद्धा और नज़मा दोनों का दृढ़ विश्वास है कि एक बच्चे के जीवन में शुरुआती सहायता व समर्थन महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं और वो चाहती हैं कि यूएनडीपी के ‘21वीं सदी के पाठ्यक्रम’ को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाय. लेकिन तब तक, वे बालिकाओं की शिक्षा के अधिकार की हिमायत करने और युवाओं को आत्मविश्वासी, ज़िम्मेदार व कुशल बनाने के लिये उचित शिक्षा देने के लिये प्रतिबद्ध हैं.

इक्कीसवीं सदी पाठ्यक्रम

नज़मा ने अपने करियर की कमान सम्भाली और यूएनडीपी के 21वीं सदी कौशल विकास कार्यक्रम में दाखिला लिया ताकि उनकी रोज़गार क्षमता में सुधार हो और वह आवश्यक कौशल सीख सकें.
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नज़मा ने अपने करियर की कमान सम्भाली और यूएनडीपी के 21वीं सदी कौशल विकास कार्यक्रम में दाखिला लिया ताकि उनकी रोज़गार क्षमता में सुधार हो और वह आवश्यक कौशल सीख सकें.

फिर भी कुछ कमी थी. नज़मा और श्रृद्धा, दोनों ही जानती थीं कि पेशेवर बनने के लिये उन्हें डिग्री से कुछ अधिक की आवश्यकता होगी. 

महामारी के बाद की दुनिया में, कामकाज चाहने वाले और नियोक्ता दोनों के बीच सीखने की चाह तेज़ी से बढ़ रही है. सघन हुनर व निपुणताओं के साथ-साथ, गम्भीर मुद्दों की समझ, निर्णय लेने की क्षमता, आपसी सहयोग, परस्पर संचार जैसी कुशलताएँ भी काफ़ी मांग में हैं.

नज़मा और श्रृद्धा ने अपने करियर की बागडोर अपने हाथों में ली और अपनी रोज़गार क्षमता में सुधार लाने और आवश्यक कुशलताएँ सीखने के लिये, यूएनडीपी के 21वीं सदी के कौशल विकास कार्यक्रम में दाखिला लिया.

नज़मा, गुजरात के वाडिनार में, एक YES Centre में 21वीं सदी कार्यक्रम में शामिल हुईं, जो युवाओं को करियर मार्गदर्शन, रोज़गार क्षमता कौशल और उद्योगों से सम्पर्क करने में मदद देता है. उन्होंने साथ ही, सार्वजनिक भाषण, सकारात्मक शारीरिक भाषा, संघर्ष प्रबन्धन, सम्वाद, तनाव एवं समय प्रबन्धन, गम्भीर मुद्दों पर सोच तथा डिजिटल व वित्तीय साक्षरता जैसे आवश्यक कौशल सीखे.

यूएनडीपी के 21वीं सदी कौशल विकास कार्यक्रम में, करियर मार्गदर्शन, परामर्श और नियुक्ति के बाद सहायता भी दी जाती है. यह कौशल प्रशिक्षण महाविद्यालयों एवं औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में नामांकित विद्यार्थियों तथा ज़िला रोज़गार केन्द्रों के युवाओं एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदाताओं के लिये उपलब्ध है.

भारत में यूएनडीपी की समावेशी विकास टीम के सदस्य मिथुन क्रिस्टी और दिव्या जैन ने बताया कि इस कार्यक्रम के माध्यम से अब तक 900 युवाओं तक पहुँच बनाई जा चुकी है और अगले दो वर्षों में पूरे भारत में 6,000 युवाओं तक पहुँचने का लक्ष्य है.

कार्यक्रम का प्रभाव

आज नज़मा न केवल अधिक कुशल पेशेवर हैं, बल्कि उनमें ग़ज़ब का आत्मविश्वास भी विकसित हुआ है. वो यूएनडीपी के कौशल विकास कार्यक्रम का शुक्रिया करते हुए कहती हैं, "मैं अधिक मुखर हो गई हूँ और कामकाज व जीवन में बारे में स्वतंत्र रूप से अपनी राय रखती हूँ." 

नज़मा कहती हैं, "जब मैं केन्द्र में युवा लड़कियों को देखती हूँ तो मुझे यह जानकर बहुत ख़ुशी होती है कि वे ख़ुद को घर के कामों तक सीमित रखने की बजाय, कौशल विकास एवं सूचित करियर विकल्प बनाने के बारे में जानने के लिये उत्सुक हैं."

इसी तरह, श्रद्धृ ने प्रोजेक्ट PROGRESS के हिस्से के रूप में मिठोई, जामनगर में एक YES केन्द्र से एक महीने का 21वीं सदी का कौशल प्रशिक्षण पूरा किया है. 

श्रृद्धा भले ही अभी कॉलेज में नहीं हैं, लेकिन वह यह सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक क़दम उठा रही हैं कि वह बी .एड की डिग्री हासिल करके, एक शिक्षिका बन सकें. वह एक ज़मीनी स्तर के विकास संगठन के साथ काम करती हैं, जहाँ वह प्राथमिक छात्रों को गणित पढ़ाती हैं और प्रतिमाह दो हज़ार रुपये तक अर्जित करती हैं. यह धनराशि वो कॉलेज की शिक्षा का ख़र्च उठाने के लिये बचा रही हैं.

भारत सरकार के कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय एवं यूएनडीपी के नेतृत्व में, इस परियोजना का लक्ष्य हाशिये पर जीने के लिये मजबूर 10 हज़ार परिवारों को, उनके जीवन व आजीविका में सुधार के लिये समर्थन देना है. 

इस परियोजना के तहत 21वीं सदी के पाठ्यक्रम के माध्यम से 6 हज़ार युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा और कम से कम साढ़े तीन हज़ार परिवारों को कामकाज से जोड़ा जाएगा.