
अभूतपूर्व मौसमी व्यवधानों से उपजी चिन्ताओं के बीच, मिस्र में अहम जलवायु सम्मेलन की तैयारी
वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP27) के मेज़बान देश, मिस्र में, क्षेत्रीय प्रशासन देश की पर्यावरणीय साख में सुधार करने और कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव को गति देने पर केन्द्रित योजनाओं को तेज़ी से लागू करने में जुटा है. यह सम्मेलन, मिस्र के शहर, शर्म अल-शेख में 4 नवम्बर को आरम्भ होगा.
मिस्र में COP27 से सम्बन्धित कई पहलों पर काम जारी है: जिसमें स्थाई परिवहन, अपशिष्ट री-सायक्लिंग, महिला स्वास्थ्य, स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन, टिकाऊ शहर, पानी व कृषि क्षेत्र में अनुकूलन उपाय और शान्ति एवं जलवायु के बीच की कड़ी से सम्बन्धित परियोजनाएँ शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ, डॉक्टर समीर तांतावी कहते हैं, "मिस्र की सरकार एक सफल सम्मेलन के आयोजन की बड़ी ज़िम्मेदारी को समझती है. यह ज़रूरी है कि शिखर सम्मेलन के ज़रिये, जलवायु संकट से हुई हानि उजागर हो, विशेष रूप से विकासशील देशों में."
"उदाहरण के लिये, दक्षिणी मिस्र के असवान प्रांत में पहली बार तूफ़ान, हिमपात और भारी बारिश हुई है. इसके लिये, विकासशील देशों को उचित क्षतिपूर्ति की जानी आवश्यक है."
COP27 से परे, मिस्र एक 2050 राष्ट्रीय जलवायु रणनीति पर भी काम कर रहा है, जो कृषि, जल संसाधन, तटीय क्षेत्रों और स्वास्थ्य जैसे सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन में कमी और जलवायु में सम्भावित परिवर्तनों के अनुकूलन पर आधारित है.

राष्ट्रीय रणनीति का उद्देश्य, स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर नागरिक समाज, सरकार व नागरिकों को एकजुट करना है. शिखर सम्मेलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये, कई नागरिक समाज संगठन इस उम्मीद से कार्यशालाओं और संगोष्ठियों में भाग ले रहे हैं कि इससे मिस्र को अपने जलवायु रणनीति लक्ष्यों हासिल करने में मदद मिलेगी.
जलवायु शिखर सम्मेलन की तैयारी में, लाल सागर प्रशासन के क्षेत्रीय अधिकारी, कई अन्य राज्यों के संगठनों के सहयोग से, पर्यावरण और स्थिरता सम्बन्धी चिन्ताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से, कई कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. ये कार्यशालाएँ नवम्बर में, सम्मेलन के उद्घाटन तक जारी रहेंगी.
शर्म अल-शेख में COP27 की मिस्र की मेज़बानी को अन्तरराष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने, और वित्त पोषण के मुद्दों व जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन जैसे मुद्दों पर, अफ़्रीकी एवं विकासशील देशों की मांगों को एकजुट करने के एक विशाल अवसर के रूप में देखा जा रहा है.