श्रीलंका: आसमान छूती महंगाई से गर्भवती महिलाओं का जीवन अस्त-व्यस्त

श्रीलंका गम्भीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है - खाद्य क़ीमतों में 90 प्रतिशत का उछाल आया है और ईंधन की कमी से आजीविका एवं प्रमुख सुरक्षा-जाल कार्यक्रम बाधित हुए हैं, जिससे खाद्य-असुरक्षा के शिकार लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है. ख़ासतौर पर, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, पाँच साल से कम उम्र के बच्चों और विकलांगों पर इसका सबसे गहरा असर पड़ा है...
श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में, एक सरकारी क्लीनिक के बाहर महिलाओं की क़तार लगातार बढ़ती जा रही है. महज़ आधे घण्टे में यह संख्या बढ़कर 200 के क़रीब पहुँच जाती है. गर्भवती महिलाएँ, जिनमें से कुछ अपने बच्चों के साथ आईं हैं, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) से खाद्य वाउचर प्राप्त करने के लिये अपनी बारी का इन्तज़ार कर रही हैं.
ये खाद्य वाउचर, WFP की आपातकालीन खाद्य सहायता कार्रवाई का हिस्सा है.
लगातार जारी आर्थिक संकट और राजनैतिक उथल-पुथल ने खाद्य मुद्रास्फीति को 90 प्रतिशत से ऊपर धकेल दिया है, ईंधन की कमी के कारण आवाजाही में होने वाले व्यवधान से, आजीविका और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे लाखों लोग खाद्य असुरक्षा की चपेट में आ गए हैं.
जैसे ही भोजन के वाउचर का वितरण शुरू होता है, महिलाएँ अपनी बारी का इन्तज़ार करने के लिये, सीढ़ी से चढ़कर पहली मंज़िल के हॉल तक जाती हैं. उनमें से अनेक युवावस्था में हैं और यह उनकी पहली गर्भावस्था है. आनन-फ़ानन में वहाँ भीड़ इकट्ठी हो जाती है, हालाँकि कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिये सभी ने मास्क भी पहना हुआ है.
वैसे तो अधिकांश चेहरे मास्क से ढके हुए हैं, मगर उनकी आँखों में चिन्ता और निराशा स्पष्ट नज़र आ रही है.
तीन साल के बच्चे की माँ, बत्तीस वर्षीय गृहणी दुशान्ति, गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में हैं. वे उन महिलाओं में से हैं, जिन्हें खाद्य वाउचर मिला है, जिसके बदले वो 15,000 श्रीलंकाई रुपए (यानि 40 अमरीकी डालर से कुछ अधिक) के मूल्य के खाद्य पदार्थ ख़रीद सकती हैं.
अन्य महिलाओं के साथ सीमेंट की पीढ़ी पर बैठी दुशान्ति बताती हैं, "हमारा जीवन इन दिनों और भी कठिन हो गया है. ईंधन की कमी और ऊँची क़ीमतों के कारण हर कोई आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लेकिन हम (गर्भवती महिलाएँ) इससे ज़्यादा त्रस्त हैं.”
ये बात वो जिस धैर्य के साथ बताती है कि यह वाउचर उनके लिये क्या मायने रखता है, इससे उनकी विशाल सहनक्षमता झलकती है, “यह मेरे जैसी गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत मददगार है. यह न केवल मेरी, बल्कि मेरे अजन्मे बच्चे की भी मदद करेगा. मैं इस वाउचर को अपने और अपने बच्चे के लिये दाल, फल जैसे स्वस्थ भोजन ख़रीदने के लिये ख़र्च करना चाहूंगी.”
हालाँकि ये वाउचर विशेष रूप से गम्भीर पोषण अन्तराल का सामना कर रही गर्भवती महिलाओं की मदद के लिये हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इसका उपयोग पूरे परिवार का पेट भरने के लिये किया जाएगा, क्योंकि ज़रूरतें बहुत अधिक हैं. जैसेकि काफ़ी समय से आय के साधन बन्द होने के कारण, दुशान्ति के घर में उनका बच्चा, माता-पिता और पति, सभी इस पर निर्भर होंगे.
1948 में आज़ादी के बाद, देश के सबसे ख़राब आर्थिक संकट के बीच, 10 में से तीन श्रीलंकाई लोग, खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, पाँच साल से कम उम्र के बच्चों और विकलांगों पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ा है.
महत्वपूर्ण सहायता सेवाएँ जारी रखने के सरकार के प्रयास, आर्थिक संकट से गम्भीर रूप से बाधित हैं. राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम से लाभान्वित महिलाएँ और बच्चे, इस महत्वपूर्ण जीवन रेखा के बिना जीवन जी रहे हैं और गम्भीर पोषण व स्वास्थ्य जोखिम में हैं.
गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं और छोटे बच्चों के लिये प्रमुख ‘त्रिपोष’ पोषण सहायता कार्यक्रम ठप हो चुका है. कम आमदनी और मुद्रास्फीति के कारण, महिलाओं व उनके बच्चों की कुपोषण दर बढ़ सकती है.
एक मातृ स्वास्थ्य क्लीनिक में विशेष प्रमुख नर्स, उडनी देमातापक्षा, इन माताओं के संघर्ष से अच्छी तरह अवगत हैं, और उनकी आवाज़ की निराशा तुरन्त भाँप लेती हैं.
वो बताती हैं, “अतीत में, हम गर्भवती महिलाओं और नर्सिंग माताओं को त्रिपोष सहायता देते थे.,लेकिन जनवरी के बाद से उन्हें यह नहीं मिल पा रही है. आज हम गर्भवती माताओं को वाउचर बाँट रहे हैं, और यह उनके लिये बहुमूल्य हैं.”
एक युवा दाई, तरनी को भी हर रोज़ अजीब विडम्बना का सामना करना पड़ता हैं. उनका काम है, पौष्टिक भोजन और फलों की सूची बनाना, जो गर्भवती महिलाओं को अपने और अपने अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य के लिये खाने ज़रूरी है. वो यह जानते हुए भी यह सब करती हैं कि उनमें से अधिकतर खाद्य पदार्थ, इन महिलाओं की पहुँच से बाहर हैं.
वो बताती हैं, “बहुत से परिवार अब खाना नहीं बना पाते और अलग-अलग जगहों से ख़राब गुणवत्ता वाले भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं, क्योंकि वे इतनी ही रक़म ख़र्च कर पाते हैं. ये मुश्किल समय है, और हम माताओं के लिये चिन्तित हैं.”
इस संकट के शुरू होने और कोविड-19 महामारी से पहले भी, श्रीलंका की महिलाएँ और बच्चे, अन्य मध्यम आय वाले देशों की तुलना में कुपोषण की उच्च दर से पीड़ित थे: 5 वर्ष से कम उम्र के 17 प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से बहुत बौने थे (अविकसित) और 15 प्रतिशत अपनी ऊँचाई के मुक़ाबले बेहद पतले थे. इन आँकड़ों को WHO वर्गीकरण में 'बहुत उच्च दर' का माना जाता है.
श्रीलंका में WFP के एक्टिविटी मैनेजर, इन्दु अबेरत्ने कहते हैं, "मानवीय संकट टालने के लिये कमज़ोर वर्गों और समुदायों पर ध्यान केन्द्रित करना हमारी प्राथमिकता है."
खाद्य वितरण लेने वाली प्रत्येक महिला को इस बात का अन्दाज़ा होता है कि वे वाउचर का उपयोग किस लिये करना चाहते हैं. सामान्य हालात में ख़रीदी जाने वाली चीज़ों में ज़्यादातर बुनियादी भोजन ही प्रमुख होता है, लेकिन अभी वो पहुँच से बाहर है. उदाहरण के लिये, एक युवा गर्भवती महिला ने अपनी ख़रीद सूची में सबसे पहले पपीता डाला है, क्योंकि वह इसे खाने के लिये तरस रही हैं.
इन्दु अबेरत्ने कहते हैं, "यह खाद्य वाउचर पहली पोषण सम्बन्धी सहायता है, जो इन महिलाओं को दी जा रही है. लेकिन यह वाउचर उनमें उम्मीद जगाता है.”
WFP - भोजन, नक़दी या वाउचर के ज़रिये, आपातकालीन खाद्य सहायता की ज़रूरत वाले, लगभग 15 लाख लोगों तक पहुँचेगा. मौजूदा सामाजिक सुरक्षा जाल कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर, राष्ट्रीय स्कूल भोजन कार्यक्रम के माध्यम से दस लाख बच्चों की सहायता के अलावा, माताओं और बच्चों को पोषण से भरपूर भोजन प्रदान करने वाले एक सरकारी कार्यक्रम के तहत, दस लाख लोगों को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य है.
देश में लगभग 63 लाख लोग खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं और उन्हें राहत की आवश्यकता है.
हाल ही में WFP के सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि 61 प्रतिशत परिवार, कम खाने, कम पौष्टिक भोजन और यहाँ तक कि पूरी तरह से भोजन छोड़ने जैसे उपायों का सहारा लेकर, जीवन जीने को विवश हैं.