अफ़ग़ानिस्तान में लोगों की मदद जारी रखने पर ज़ोर

अफ़ग़ानिस्तान की आधी से ज़्यादा आबादी, जीवित रहने के लिये, मानवीय सहायता पर निर्भर है, और उनके मानवाधिकारों पर भी जोखिम मंडरा रहा है.
IOM 2021/Paula Bonstein
अफ़ग़ानिस्तान की आधी से ज़्यादा आबादी, जीवित रहने के लिये, मानवीय सहायता पर निर्भर है, और उनके मानवाधिकारों पर भी जोखिम मंडरा रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान में लोगों की मदद जारी रखने पर ज़ोर

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यों के समन्वयक मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने सुरक्षा परिषद को बताया है कि अफ़ग़ानिस्तान में अगस्त 2021 में सत्ता पर तालेबान का क़ब्ज़ा होने के बाद से ही, मानवीय सहायताकर्मी वहीं ठहरे हैं और सहायता अभियान जारी रखे हैं.

उन्होंने ये भी कहा कि ये भी बहुत ज़रूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय भी ऐसा करना जारी रखे, साथ ही सत्ता पर क़ाबिज़ तालेबान भी अपनी भूमिका निभाए.

मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने राजदूतों ताज़ा हालात के बारे में अवगत कराते हुए, अफ़ग़ान लोगों के सामने दरपेश कठिनाइयों व अन अनिश्चितता के बारे में भी जानकारी दी, जहाँ देश के कुल लगभग 2 करोड़ 40 लोगों में आधी आबादी को जीवित रहने के लिये, सहायता की आवश्यकता है.

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उन्होंने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान का संकट एक मानवीय संकट है, मगर केवल इतनी सी बात भी नहीं है. ये एक आर्थिक संकट भी है. ये एक जलवायु संकट है. ये एक भुखमरी का संकट है. ये एक वित्तीय संकट है. मगर ये कोई आशाहीन संकट भी नहीं है.”

एक संकटपूर्ण स्थिति

वैसे तो अफ़ग़ानिस्तान के लिये युद्ध, निर्धनता, जलवायु झटके और खाद्य असुरक्षा, लम्बे समय से एक वास्तविकता रही है, मगर मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने कहा कि मौजूदा स्थिति किस तरह बहुत नाज़ुक और संकटपूर्ण है.

पहली बात तो ये कि देश में व्यापक पैमाने वाली विकास सहायता, लगभग एक वर्ष से ठप पड़ी है, जबकि देश पहले से ही खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के गम्भीर स्तर का सामना कर रहा था, और ये हालात ज़्यादा बदतर ही हुए हैं.

मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने बताया कि मानवीय सहायताकर्मियों को भी अपने अभियान जारी रखने के लिये, बेहद चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि सत्ता पर क़ाबिज़ अधिकारियों के साथ बहुत मुश्किल काम है.

नक़दी संकट, अधिकारों का हनन

उससे भी ज़्यादा, देश के बैंकिंग क्षेत्र में कोई भरोसा नज़र नहीं आ रहा है जिसके कारण नक़दी का संकट उत्पन्न हो गया है, जिसने देश में सहायता कार्यों को भी प्रभावित किया है. 

मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने कहा कि इस बीच महिलाओं व लड़कियों को, हाशिये पर धकेल दिया गया है. मानवाधिकारों के क्षेत्र में हासिल की गई प्रगति उलट गई है, और किशोर लड़कियों को एक साल से स्कूल जाने की इजाज़त नहीं मिली है.

उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में, हमें ये बताने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिये कि लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं का सशक्तिकरण उनके लिये, उनके समुदायों के लिये और उनके देश के लिये, क्यों अहम है, और दरअसल हम सभी के लिये.