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फ़लस्तीनी मानवाधिकार संगठनों पर इसराइली दमन 'अवैध और अस्वीकार्य'

फ़लस्तीनी क्षेत्र - पश्चिमी तट में रामल्लाह के निकट एक इसराइली अवरोधक दीवार के निकट से गुज़रते हुए कुछ महिलाएँ.
IRIN/Shabtai Gold
फ़लस्तीनी क्षेत्र - पश्चिमी तट में रामल्लाह के निकट एक इसराइली अवरोधक दीवार के निकट से गुज़रते हुए कुछ महिलाएँ.

फ़लस्तीनी मानवाधिकार संगठनों पर इसराइली दमन 'अवैध और अस्वीकार्य'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के 24 स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इसराइल द्वारा उसके क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी इलाक़ों – पश्चिमी तट में फ़लस्तीनी सिविल सोसायटी के विरुद्ध इसराइली हमलों में बढ़ोत्तरी की निन्दा करते हुए, उन्हें "अवैध और अस्वीकार्य" क़रार दिया है.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों का ये वक्तव्य ऐसे समय में आया है जब इसराइली सेना ने गत सप्ताह रामल्ला में सक्रिय सात फ़लस्तीनी मानवाधिकार और मानवीय सहायता संगठनों के दफ़्तरों में ज़बरदस्ती दाख़िल हो गए और उन्हें बन्द कर दिया.

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संयुक्त राष्ट्र के इन मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है, “ये कार्रवाइयाँ मानवाधिकार पैरोकारों का गम्भीर दमन करती हैं और अवैध हैं, साथ ही अस्वीकार्य भी.”

उन्होंने इन दुर्व्यवहारों को रोके जाने के लिये, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत, असरदार उपाय करने का भी आग्रह किया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में बताया है कि इसराइली बलों ने, 18 अगस्त के तड़के एक छापे में फ़लस्तीनी मानवाधिकार समूहों की सम्पत्ति को भारी नुक़सान पहुँचाया और सात फ़लस्तीनी मानवाधिकार समूहों के दफ़्तर बन्द करने वाले सैनिक आदेश भी जारी किये.

इसराइल इससे पहले, इन फ़लस्तीनी मानवाधिकार संगठनों को आतंकवादी और अवैध घोषित कर चुका है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि ये घोषणाएँ अवैध और निराधार हैं और इसराइल द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में अभी तक कोई ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं उपलब्ध कराए गए हैं.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि इसराइली सरकार ने सिविल सोसायटी संगठनों को कमज़ोर करने के लिये अनेक उपाय किये हैं, जिनमें मानवाधिकार पैरोकारों की जायज़ गतिविधियों को सीमित करना और उन्हें दबाना शामिल हैं. इन गतिविधियों का महिला मानवाधिकार पैरोकारों पर भी अनुपात से अधिक प्रभाव हुआ है.

हनन गतिविधियाँ

उनका कहना है कि इन गतिविधियों के परिणाम, दरअसल संगठन बनाने, विचारों व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक व सांस्कृतिक मामलों में भागेदारी करने के अधिकार का हनन हैं, जिनकी पूर्ति, सम्मान और संरक्षण की पूरी ज़िम्मेदारी इसराइल पर है.

“सिविल सोसायटी ही फ़लस्तीनी लोगों के न्यूनतम संरक्षण के लिये बाक़ी बची है. इस महत्वपूर्ण स्थान और संसाधन को भी समेट दिया जाना अवैध और अनैतिक है.”

यूएन विशेषज्ञों ने कहा कि इसराइल ने फ़लस्तीनी मानवाधिकार संगठनों को आतंकवादी संगठन बताकर उन्हें काली सूची में डालने के निर्णय के समर्थन में जो सूचना उपलब्ध कराई है, वो दानदाता देशों की सरकारों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को विश्वास दिलाने में नाकाम रही है.

विशेषज्ञों ने रेखांकित करते हुए कहा कि योरोपीय संघ के धोखाधड़ी निरोधक कार्यालय द्वारा अल हक़ नामक संगठन की समीक्षा करने के बाद पुष्टि की है कि, “योरोपीय धन को प्रभावित करने वाली कोई धोखाधड़ी या अनिमियतताएँ नहीं पाई गई हैं.”

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने योरोपीय संघ, सुरक्षा परिषद के सभी पाँच स्थाई सदस्यों, और तमाम सदस्य देशों का आहवान किया है कि वो फ़लस्तीनी संगठनों और जिन संगठनों के दफ़्तरों पर छापे मारे गए हैं और उन्हें बन्द किया गया है, उनके स्टाफ़ को भी संरक्षण मुहैया कराने के लिये ठोस उपाय करें.

मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपायों में ये शामिल होगा कि इसराइल इन मानवाधिकार संगठनों को आतंकवादी व अवैध क़रार देने वाले तमाम आदेश व घोषणाएँ सदैव के लिये रद्द करे.

“विशेष रूप से योरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों को सिविल सोसायटी पर हो रहे इन आक्रामक हमलों को रोकने के लिये अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना होगा, जोकि मानवाधिकार पैरोकारों और नागरिक स्थान को संरक्षण मुहैया कराने की उनकी ज़िम्मेदारियों व संकल्पों से भी मेल खाता है.”

यूएन मानवाधिकार विशेषक्षों ने कहा, “एक बार फिर ये स्पष्ट है कि इसराइल के अवैध उपायों की निन्दा करने वाले और उन पर अफ़सोस व्यक्त करने वाले वक्तव्य पर्याप्त नहीं हैं – ज़रूरी है ये कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा कथनी को तेज़ी से करनी में तब्दील करते हुए, इसराइल पर, अपने क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्रों में, क़ानून का शासन, न्याय और मानवाधिकार बहाल करने के लिये, कूटनैतिक दबाव बनाया जाए.”

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति, यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी देश की स्थिति या किसी मानवाधिकार मुद्दे की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और विशेषज्ञ अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं, उन्हें उनके कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.