
जिराफ़, तोते और बाँज के पेड़ जैसी अनेक प्रजातियाँ विलुप्ति के निकट
संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित एक स्वतंत्र, अन्तर-सरकारी विज्ञान और नीति निकाय, IPBES की रिपोर्ट के अनुसार, पशु, पक्षियों और पेड़ों की लगभग दस लाख प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं.
यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि जिराफ़, तोते और बाँज के पेड़ और नागफ़नी व समुद्री शैवाल भी, विलुप्ति के ख़तरे वाली प्रजातियों की सूची में शामिल हैं.
पृथ्वी पर कठिन परिस्थितियों में भी जीवित बचे रहने की क्षमता में, समुद्री शैवाल का नाम सबसे आगे आता है, और कुछ आधुनिक समुद्री शैवाल की क़िस्में, लगभग 1.6 अरब साल पुरानी हैं.
समुद्री शैवाल, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, समुद्री जीवों के लिये आवास और भोजन प्रदान करते हैं, जबकि बड़ी क़िस्में - जैसे केल्प - पानी के नीचे मछलियों के लिये , नर्सरी के रूप में कार्य करती हैं. हालाँकि, मशीनी हस्तक्षेप, बढ़ते समुदी तापमान और तटों पर बुनियादी ढाँचों के निर्माण से, प्रजातियाँ ख़त्म होती जा रही हैं.
दुनियाभर के पेड़ों को विभिन्न स्रोतों से ख़तरा है, जिनमें लॉगिंग, उद्योग और कृषि के लिये वनों की कटाई, शरीर गर्म रखने व खाना पकाने हेतु जलाने वाली लकड़ी एवं जंगलों में आग लगने जैसे जलवायु सम्बन्धित ख़तरे शामिल हैं.
प्रकृति के संरक्षण के लिये अन्तरराष्ट्रीय संघ (IUCN) की जोखिम वाली प्रजातियों की अनुमानित लाल सूची के अनुसार, दुनिया के 430 प्रकार के बाँज (Oak) के पेड़ों में से 31 प्रतिशत के विलुप्त होने का ख़तरा है. इसके अलावा, कृषि के लिये वनों की कटाई और खाना पकाने के लिये ईंधन के कारण, 41 प्रतिशत के "संरक्षण को लेकर चिन्ता" जताई गई है.
जिराफ़ का शिकार किया जाता है उसके माँस के लिये. साथ ही, लकड़ी की निरन्तर कटाई, और कृषि भूमि की बढ़ती मांग के कारण, उनके आवासों का क्षरण होता जा रहा है; अनुमान है कि जंगलों में अब केवल 600 पश्चिम अफ़्रीकी जिराफ़ ही बचे हैं.

मानवता के लिये विनाशकारी परिणाम
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक मानव प्रकृति के साथ अधिक स्थाई तरीक़े से सामंजस्य स्थापित नहीं करेगा, तब तक वर्तमान जैव विविधता संकट बढ़ता जाएगा व मानवता के लिये इसके परिणाम विनाशकारी होंगे.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP). में पारिस्थितिक तंत्र विभाग की निदेशक, सूज़न गार्डनर कहती हैं, "IPBES रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि जंगली प्रजातियाँ, दुनिया भर में सैकड़ों लाखों लोगों के लिये भोजन, आश्रय एवं आय का एक अनिवार्य स्रोत हैं."
“सतत उपयोग तब होता है जब मानव कल्याण के कार्यों में, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखा जाए. इन संसाधनों का असतत तरीक़े से उपयोग करने से, हम न केवल इन प्रजातियों का नुक़सान कर रहे हैं; बल्कि हम अपने स्वास्थ्य व कल्याण एवं आने वाली पीढ़ी का स्वास्थ्य भी जोखिम में डाल रहे हैं.”

स्थानीय ज्ञान
इस रिपोर्ट में, स्थानीय लोगों का अपनी भूमि पर अधिकार प्राप्त करने को भी महत्व दिया गया है, क्योंकि वे बहुत पहले ही जंगली प्रजातियों के मूल्य को समझ चुके हैं और उनका स्थाई उपयोग करना जानते हैं.
जैव विविधता का नुक़सान कम करने के लिये जो आवश्यक बदलाव लाने ज़रूरी हैं, उनके उदाहरणों में - लागत और लाभ का समान वितरण, सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन और प्रभावी शासन प्रणाली शामिल हैं.
वर्तमान में, दुनिया भर की सरकारें, जैव विविधता को नुक़सान पहुँचाने वाले क़दमों जैसेकि, जीवाश्म ईंधन, कृषि और मत्स्य पालन जैसे उद्योगों का समर्थन करने में, हर साल 500 अरब डॉलर से अधिक ख़र्च करती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस धनराशि को बेहतर कृषि, टिकाऊ खाद्य प्रणालियों और प्रकृति-सकारात्मक नवाचारों को प्रोत्साहित करने की दिशा में मोड़ देना चाहिये.
संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन
- जारी प्रयासों के बावजूद, दुनिया भर में जैव विविधता की क्षति हो रही है, और आगे भी इसी तरह काम चलते रहने से इस परिदृश्य के और ख़राब होने का अनुमान है.
- 2020 की रूपरेखा प्रक्रिया के बाद की कार्यप्रणाली में, जैविक विविधता कन्वेनशन के तहत, अगले दशक के लिये प्रकृति के नए लक्ष्यों पर सहमत होने के लिये दुनिया भर की सरकारों को, संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन का निमंत्रण दिया गया है.
- यह फ़्रेमवर्क, जैव विविधता के साथ सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन लाने के लिये व्यापक कार्रवाई लागू करने की एक महत्वाकांक्षी योजना निर्धारित करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि 2050 तक, प्रकृति के साथ सदभाव से रहने के साझा दृष्टिकोण का पालन हो.