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बांग्लादेश: शरणार्थियों की शिक्षा बाधाओं से निपटने के लिये, रोहिंज्या और बांग्लादेशी शिक्षक एकजुट

मिनहर बेगम और शाह आलम पिछले दो वर्षों से कुटुपलोंग शिविर के एक शिक्षण केन्द्र में, शिक्षण सहायक के रूप में एक साथ काम कर रहे हैं.
यूएनएचसीआर
मिनहर बेगम और शाह आलम पिछले दो वर्षों से कुटुपलोंग शिविर के एक शिक्षण केन्द्र में, शिक्षण सहायक के रूप में एक साथ काम कर रहे हैं.

बांग्लादेश: शरणार्थियों की शिक्षा बाधाओं से निपटने के लिये, रोहिंज्या और बांग्लादेशी शिक्षक एकजुट

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी - UNHCR के बांग्लादेश में एक कार्यक्रम के तहत, रोहिंज्या शरणार्थी बच्चों की औपचारिक शिक्षा तक पहुँच बनाने के लिये, रोहिंज़्या शिक्षकों को मेज़बान समुदाय के शिक्षकों के साथ जोड़ा जा रहा है. इससे दोनों समुदायों के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने में मदद मिल रही है और बच्चों के लिये औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के रास्ते खुल रहे हैं.

शाह आलम को जहाँ तक याद है, उनका सपना हमेशा से शिक्षक बनने का था. लेकिन उनकी शिक्षा, हाई स्कूल स्तर पूरा होने से पहले ही, अकस्मात समाप्त हो गई जब उन्हें अपना मूल देश म्याँमार छोड़कर भागने के लिये मजबूर होना पड़ा.

उन्हें और उनके परिवार को, सीमा पार बांग्लादेश में एक शिविर में शरण मिली, जो उस समय कॉक्सेस  बाज़ार के रूप में आकार ले रहा था. लेकिन वहाँ शाह आलम के पास विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल करना तो दूर, हाई स्कूल पूरा करने का भी कोई साधन नहीं था.

22 वर्ष के हो चुके शाह आलम फिर भी, आज लगभग पाँच साल बाद - कुटुपलोंग शिविर में बाँस से बनी कक्षा में, लगभग 40 रोहिंज्या बच्चों को पढ़ा रहे हैं. कुटुपलोंग शिविर में लगभग 7 लाख 50 हज़ार रोहिंज़्या शरणार्थी रहते हैं.

जब शाह आलम कक्षा में बच्चों को म्याँमार की भाषा पढ़ा रहे होते हैं, तो कॉक्सेस बाज़ार ज़िले में बांग्लादेशी समुदाय की 24 वर्षीय मिनहर बेगम, कक्षा में घूमकर सुनिश्चित करती रहती हैं कि हर कोई उनके सहयोगी शिक्षक के निर्देशों का पालन कर रहा है.

जब हम एक साथ पढ़ाते हैं, तो कक्षा को सम्भालना आसान हो जाता है."

हालाँकि शाह आलम और मिनहर पिछले दो वर्षों से इस शिक्षण केन्द्र में शिक्षण सहायक के रूप में साथ काम कर रहे हैं, लेकिन उनमें से कोई भी प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक नहीं हैं.

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी - UNHCR से प्रशिक्षण प्राप्त किया है जिसके तहत वो एक अनौपचारिक पाठ्यक्रम कवर करते हैं, जिसमें मुख्य रूप से बुनियादी साक्षरता और गिनती, व म्याँमार भाषा एवं जीवन कौशल की शिक्षा दी जाती है.

आसान तालमेल

शाह आलम कहते हैं, ''जब हम एक साथ पढ़ाते हैं, तो कक्षा में तालमेल बैठाना, समन्वय बैठाना, आसान हो जाता है. "वह आगे कुछ समझा रही होती हैं और मैं सबसे पीछे बैठ जाता हूँ. इस तरह हम हर छात्र पर समान रूप से ध्यान दे सकते हैं."

यूएनएचसीआर के वरिष्ठ सुरक्षा समन्वयक, हारुनो नकाशिबा बताते हैं कि ज़रूरत पड़ने पर, कॉक्सेस बाज़ार के शिविरों के 5 हज़ार 600 शिक्षण केन्द्रों में पढ़ाने हेतु, रोहिंज्या शरणार्थियों को स्थानीय बांग्लादेशियों के साथ जोड़ने का निर्णय लिया गया था.

उनका कहना है कि शरणार्थियों के बीच शिक्षकों की कमी है क्योंकि सामान्य गतिविधि और अन्य अधिकारों पर प्रतिबन्ध के कारण, बहुत कम रोहिंज्या ही म्याँमार में उच्च शिक्षा पूरी कर पाए थे.

“इसलिये, अंग्रेज़ी या गणित जैसे कुछ विषयों के लिये, हमने बांग्लादेशी शिक्षकों को नियुक्त करने का फ़ैसला किया. इसका मतलब यह भी है कि हम उनके लिये रोज़गार पैदा कर रहे हैं."

चूँकि रोहिंज्या ज़्यादातर शिविरों तक ही सीमित हैं, इसलिये इन शिक्षण साझेदारियों से, शरणार्थियों और स्थानीय बांग्लादेशियों को एक साथ आने का एक नया अवसर मिला है.

मिनहर के साथ अपने सम्बन्ध के बारे में शाह आलम कहते हैं, "हम भाई-बहन की तरह हैं, हम एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझते हैं. पहले, हम ज़्यादा बात नहीं करते थे, लेकिन अब हम अपने गुणों और कमज़ोरियों के बारे में बात करते हैं और उन्हें हम कैसे सुधार सकते हैं, इसपर भी मन्थन करते हैं."

एक दूसरे के सहयोग के बावजूद, शिक्षण केन्द्रों पर अध्यापन करना, चुनौती-रहित नहीं है. बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों के प्रवेश के बाद, 2017 में एक आपातकालीन उपाय के रूप में अनौपचारिक पाठ्यक्रम विकसित किया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे कुछ पढ़ना-लिखना व गिनती सीख सकें. 

लेकिन यह औपचारिक, मानकीकृत शिक्षा का विकल्प बिल्कुल नहीं है और इसके चार स्तर, केवल 4 से 14 वर्ष की आयु के छोटे बच्चों के लिये बने हैं, जिससे बड़े बच्चों की शिक्षा में बड़ा अन्तराल रह जाता है.

शाह आलम कहते हैं, "जहाँ मैं बच्चों की चुनौतियों की बात कर रहा हूँ, तो ऐसी अनेक चुनौतियाँ मेरे सामने भी हैं. यहाँ शिक्षा के लिये कोई निश्चित रास्ता नहीं है.  स्तर 2 पास करने के बाद, कुछ छात्र वापस नहीं आते क्योंकि यहाँ प्रमाण-पत्र हासिल करने का कोई प्रावधान नहीं है."

शाह आलम 40 रोहिंग्या बच्चों की एक कक्षा को म्याँमार भाषा पढ़ाते हैं.
UNHCR
शाह आलम 40 रोहिंग्या बच्चों की एक कक्षा को म्याँमार भाषा पढ़ाते हैं.

उनका कहना है कि शिविरों में प्राथमिक आयु वर्ग के कई बच्चे भी शिक्षण केन्द्रों पर नहीं जाते, और मानसून आने पर उपस्थिति और भी कम हो जाती है, क्योंकि शिविरों के रास्ते कीचड़ भरे और ख़तरनाक हो जाते हैं. “इनमें से बहुत से छात्र, अपने माता-पिता की मदद करने के लिये काम करते हैं; और कुछ अपना दिन, बिना कुछ किये, बेकार ही बिता देते हैं.”

यूएनएचसीआर के हारुनो नकाशिबा ने कहा कि एजेंसी लम्बे समय से, शिविरों में औपचारिक शिक्षा की कमी के बारे में चिन्ता जताती रही है और यूनीसेफ़ व अन्य भागीदारों के साथ मिलकर मौजूदा प्रणाली की बजाय, म्याँमार का राष्ट्रीय पाठ्यक्रम अपनाने की वकालत करती रही है.

जनवरी 2020 में, बांग्लादेशी सरकार ने मौजूदा पाठ्यक्रम को म्याँमार के पाठ्यक्रम में बदलने की मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षण केन्द्रों को बन्द करना पड़ा और इसे लागू करने में लगभग दो साल की देरी हो गई.

नए पाठ्यक्रम का पायलट चरण आख़िरकार, पिछले साल के अन्तिम महीनों में शुरू हुआ, जिसमें शुरुआत में कक्षा छह से नौ में 10 हज़ार बच्चों ने दाख़िला लिया. पहली व दूसरी कक्षा के लिये दूसरा चरण, नए स्कूल वर्ष की शुरुआत से यानि जुलाई से शुरू होगा. वहीं, बाकी कक्षाओं के लिये बदलाव अगले साल से लाया जाएगा, ताकि शिविरों के सभी स्कूल जाने वाले बच्चे, जुलाई 2023 तक म्याँमार पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई कर सकें.

"हम म्याँमार पाठ्यक्रम चाहते हैं."

हालाँकि, इस नए पाठ्यक्रम को अभी भी औपचारिक शिक्षा नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह म्याँमार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रमाणीकृत नहीं है. लेकिन हारुनो इसे, म्याँमार में घर लौटने की इच्छा रखने वाले अनगिनत रोहिंज्या शरणार्थियों के लिये बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं.

शरणार्थियों का कहना है कि वे यह साबित करना चाहते हैं कि वे म्याँमार के मूल निवासी हैं. वे कहते हैं, “जब हमारे बच्चे बर्मी भाषा में पढ़ना-लिखना सीखेंगे, तो हमारे बच्चों की पहचान भी वहीं की होगी.'

शाह आलम भी कुछ ऐसी ही वजह बताते हुए,जल्द से जल्द नया पाठ्यक्रम पढ़ाना शुरू करने के लिये अपनी अधीरता जताते हैं. वो कहते हैं, "हम म्याँमार पाठ्यक्रम चाहते हैं ताकि बच्चे अपने देश वापस जाने पर अपनी शिक्षा जारी रख सकें."

मिनहर भी इमसे सहमत हैं, भले ही इसका मतलब यह है कि शाह के साथ उनकी साझेदारी जल्द ही समाप्त हो सकती है. फ़िलहाल, कुछ रोहिंज्या और बांग्लादेशी शिक्षक एक-साथ काम करना जारी रखेंगे.

रोहिंज्या शिक्षक अधिकांश विषयों को म्याँमार की भाषा में पढ़ाने का प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे, जबकि मिनहर जैसे मेज़बान समुदाय के शिक्षक, अंग्रेज़ी पढ़ाने व प्रशिक्षण में मदद देने पर ध्यान केन्द्रित करेंगे.

एक दिन योग्य शिक्षक बनने का शाह आलम का सपना अब उतना असम्भव नहीं रहा, जैसे कभी लगता था. यूएनएचसीआर (UNHCR) ने इस साल ढाई हज़ार शिक्षकों को शिक्षण का प्रशिक्षण देना शुरू किया है, जिनमें से अधिकांश रोहिंज्या हैं.

शाह आलम कहते हैं, ''मुझे जहाँ भी सीखने का अवसर मिलेगा, मैं वहाँ जाऊँगा. मुझे हर हाल में उच्च शिक्षा चाहिये."