स्तनपान: जीवन आरम्भ के लिये अभूतपूर्व रूप से अहम

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी – विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूएन बाल कोष – यूनीसेफ़ के प्रमुखों ने सोमवार को कहा है कि नवजात शिशुओं को माँ का दूध पिलाने के साथ, नवजीवन की शुरुआत करना, अभूतपूर्व रूप से महत्वपूर्ण है.
स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) के मुखिया डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस और यूनीसेफ़ (UNICEF) की कार्यकारी निदेशिका कैथरीन रसैल ने, सोमवार को स्तनपान सप्ताह शुरू होने के अवसर पर एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया है, जिसमें ऐसे वैश्विक संकटों, आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा, और असुरक्षा स्थितियों को रेखांकित किया गया है जिन्होंने अतीत से कहीं ज़्यादा, लाखों नवजात शिशुओं और बच्चों के स्वास्थ्य व पोषण को जोखिम में डाल दिया है.
As global crises keep threatening the health & nutrition of millions of children, #breastfeeding — the best possible start in life — is more critical than ever. @unicefchief & I call on governments to step up for breastfeeding: https://t.co/G9zH7n4LZZ #WorldBreastfeedingWeek pic.twitter.com/8cpdmufKRX
DrTedros
स्तनपान सप्ताह की थीम है - Step up for breastfeeding: Educate and Support.
इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के इन दोनों संगठनों ने तमाम देशों की सरकारों से स्तनपान को बढ़ावा देने और उसके समर्थन व संरक्षण के लिये नीतियों व कार्यक्रमों में और ज़्यादा संसाधन आबण्टित करने की पुकार लगाई है.
विशेष ध्यान आपदा परिस्थितियों में रहने वाले नाज़ुक हालात वाले परिवारों पर देने का भी आग्रह किया गया है.
दोनों यूएन एजेंसियों के प्रमुखों ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान, यमन, यूक्रेन, हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका, और अफ़्रीका के विशाल सहेल क्षेत्रों जैसे आपदाओं वाले इलाक़ों में, स्तनपान से नवजात शिशुओं और बच्चों के लिये सुरक्षित, पोषक और आसान खाद्य स्रोत तक पहुँच सुनिश्चित होती है.
एजेंसियों का कहना है कि माँ के दूध से शिशुओं और बच्चों के लिये बीमारियों और बाल कुपोषण के तमाम रूपों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित होती है.
माँ का दूध, शिशुओं में बचपन की आम बीमारियों से उनकी रक्षा करने वाली प्रथम वैक्सीन के रूप में भी काम करता है.
यूएन एजेंसियों के प्रमुखों के अनुसार, मगर फिर भी आपदा परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में, स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भावनात्मक दबाव, शारीरिक थकावट, निजता व निजी स्थान का अभाव, और ख़राब स्वच्छता के हालात का सामना करना पड़ता है.
इसका मतलब है कि बहुत से शिशुओं को, जीवित रहने में मदद के लिये, अपनी माँ के दूध के लाभ नहीं मिल पा रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में नवजात शिशुओं की आधी से भी कम संख्या को उनके जीवन के पहले घण्टे में माँ का दूध मिल पाता है, जिससे वो बीमारी और मौत की चपेट में आने के जोखिम में पहुँच जाते हैं.
केवल 44 प्रतिशत शिशुओं को उनके जीवन के पहले छह महीनों के दौरान माँ का दूध मिल पाता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली का लक्ष्य, वर्ष 2025 तक, ये संख्या बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का है.
ये ऐसेम्बली विश्व स्वास्थ्य संगठन संचालित करता है.
डॉक्टर टैड्रॉस और कैथरीन रसैल का कहना है, “स्तनपान की हिफ़ाज़त, प्रोत्साहन और समर्थन, अभूतपूर्व रूप से महत्वपूर्ण है, ना केवल अन्तिम प्राकृतिक, टिकाऊ और प्रथम खाद्य प्रणाली के रूप में हमारे ग्रह के संरक्षण के लिये, बल्कि लाखों शिशुओं के वजूद, उनकी बढ़वार और विकास क लिये भी अहम है.”
यूएन एजेंसियों के प्रमुखों का कहना है कि दुनिया भर के देशों की सरकारों, दानदाताओं, सिविल सोसायटी, और निजी क्षेत्र को, माँ का दूध पिलाए जाने वाले शिशुओं की संख्या बढ़ाने के लिये इन चार अहम क्षेत्रों पर काम करना होगा.
स्तनपान को समर्थन देने वाली नीतियों और कार्यक्रमों में संसाधन निवेश को प्राथमिकता देना, विशेष रूप में नाज़ुक और खाद्य असुरक्षा वाली परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में.
स्वास्थ्य और पोषण स्थलों में कामगारों और समुदायों में ऐसी कुशलताओं व निपुणताओं बढ़ाएँ जिनके माध्यम से वो स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गुणवत्ता परामर्श और व्यावहारिक समर्थन मुहैया करा सकें.
शिशुओं व बच्चों की देखबाल करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को, बेबी फ़ॉर्मूला उद्योग के अनैतिक बाज़ार प्रभाव से संरक्षण मुहैया कराएँ. इसके लिये माँ के दूध के विकल्पों के विपणन पर अन्तरराष्ट्रीय आचार संहिता को पूरी तरह से अपनाना और लागू करना भी शामिल है.
परिवार अनुकूल सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियाँ व कार्यक्रम लागू करें जिनमें, स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आवश्यक समय, स्थान और समर्थन मुहैया कराया जाए.