
स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण, एक सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषित
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गुरूवार को एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित करके, स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण तक पहुँच को एक सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषित किया है. इस प्रस्ताव के समर्थन में 161 मत पड़े जबकि आठ देश मतदान से अनुपस्थित रहे.
इसी तरह का एक प्रस्ताव, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद ने भी, अक्टूबर 2021 में पारित किया था.
महासभा का ये प्रस्ताव भी उसी पर आधारित है और इसमें देशों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों, और कारोबारी संस्थानों से, सर्वजन के लिये एक स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिये प्रयास बढ़ाने का आहवान किया गया है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने इस ऐतिहासिक प्रस्ताव के पारित होने का स्वागत किया है और कहा है कि ये ऐतिहासिक घटनाक्रम दिखाता है कि सदस्य देश, हमारे तिहरे पृथ्वी संकटों – जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता की हानि और प्रदूषण का सामना करने के लिये एकजुट हो सकते हैं.
यूएन प्रमुख ने अपने प्रवक्ता द्वारा जारी एक वक्तव्य में कहा है, “इस प्रस्ताव से पर्यावरणीय अन्यायों को कम करने, संरक्षण में व्याप्त खाइयों को पाटने और लोगों को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी, विशेष रूप से उन्हें जो निर्बल परिस्थ्तियों में हैं, इनमें पर्यावरणीय मानवाधिकार पैरोकार, बच्चे, युवजन, महिलाएँ और आदिवासी जन शामिल हैं.”
उन्होंने कहा कि इस निर्णय से देशों को उनके पर्यावणीय और मानवाधिकार उत्तरदायित्वों और प्रतिबद्धताओं के क्रियान्वयन में तेज़ी लाने में मदद मिलेगी.
“अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने इस अधिकार को सार्वभौमिक मान्यता दी है और हम सबके लिये, इसे एक वास्तविकता में तब्दील करने के और निकट पहुँचा दिया है.”
एंतोनियो गुटेरेश ने अलबत्ता ज़ोर देकर ये भी कहा कि ‘प्रस्ताव का पारित होना, केवल एक शुरुआत है’ और उन्होंने देशों से, इस नव मान्य अधिकार को, हर जगह हर किसी के लिये एक वास्तविकता बनाने का आग्रह भी किया.
समस्त ग्रह के लिये एक प्रस्ताव

यूएन महासभा में ये प्रस्ताव, मूल रूप से कोस्टा रीका, मालदीव्स, मोरक्को, स्लोवीनिया और स्विट्ज़रलैण्ड ने, जून 2022 में प्रस्तुत किया था, और अब इस प्रस्ताव को 100 से ज़्यादा सह-प्रायोजित कर चुके हैं.
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि एक स्वस्थ पर्यावरण (वातावरण) का अधिकार, मौजूदा अन्तरराष्ट्रीय क़ानून से सम्बन्धित है जिसमें पुष्टि की गई है कि इसके प्रोत्साहन के लिये, बहुकोणीय पर्यावणीय समझौतों को पूर्ण रूप में लागू किये जाने की आवश्यकता है.
प्रस्ताव में यह भी माना गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, प्राकृतिक संसाधनों के असतत प्रबन्धन व प्रयोग, वायु, भूमि और जन को प्रदूषित किया जाना, रसायनों व अपशिष्ट का कमज़ोर प्रबन्धन और परिणामस्वरूप जैव-विविधता की हानि से, इस अधिकार का आनन्द लेने में व्यवधान उत्पन्न होते हैं – और ये भी कि मानवाधिकारों के प्रभावशाली उपयोग के लिये, पर्यावरणीय हानि के परोक्ष और अपरोक्ष नकारात्मक नतीजे होते हैं.
मानवाधिकार और पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर डेविड बॉयड के अनुसार, यूएन महासभा का ये निर्णय, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून की मूल प्रवृत्ति ही बदल देगा.
उन्होंने हाल ही में, यूएन न्यूज़ को बताया, “देशों की सरकारों ने दशकों से पर्यावरण को स्वच्छ बनाने और जलवायु आपदा का सामना करने के वाद किये हैं, मगर एक स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता मिलने से, लोगों के नज़रिये में, सरकारों से भीख मांगने के बजाय, उनसे कार्रवाई की मांग करने के रूप में परिवर्तन होगा.”
5 दशकों की मेहनत का फल
वर्ष 1972 में, स्टॉकहोम में आयोजित हुआ - संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलन, ऐतिहासिक घोषणा-पत्र के साथ सम्पन्न हुआ था, जो पर्यावरणीय मुद्दों को अन्तरराष्ट्रीय चिन्ताओं के अग्रिम मोर्चे पर रखने वाला पहला ऐसा क़दम था.
उसने आर्थिक प्रगति, वायु, जल और समुद्र के प्रदूषण व दुनिया भर के लोगों के बीच सम्बन्ध पर, औद्योगिक व विकासशील देशों के दरम्यान सम्वाद की शुरुआत भी की.
उस समय सदस्य देशों ने घोषित किया कि लोगों को एक ऐसे पर्यावरण का बुनियादी अधिकार है जिसमें गरिमापूर्ण जीवन यापन और रहन-सहन सम्भ हो, साथ ही ठोस कार्रवाई और इस अधिकार की मान्यता की भी पुकार लगाई गई.
