बून्द-बून्द करके, बेहतर भविष्य की ओर क़दम

हमारी पृथ्वी के पेयजल संसाधन सर्वजन के लिये हैं. फिर भी दुनिया भर में लाखों महिलाएँ, पुरुष और बच्चे स्वच्छ पानी के अभाव में जीवनयापन करने को मजबूर हैं. भारत के उत्तरी क्षेत्र में 'संयुक्त राष्ट्र के परियोजना सेवाएँ कार्यालय' - UNOPS की एक परियोजना के तहत, साफ़ पानी और स्वच्छता सुविधाओं तक बेहतर पहुँच के ज़रिये, स्वस्थ समुदायों की नींव रखने में मदद मिल रही है.
जल सभी के जीवन के लिये बेहद अहम है. हमारा अस्तित्व इसी पर निर्भर करता है - हम इसे पीते हैं, इससे भोजन पकाते हैं, इसका उपयोग स्वच्छता के सबसे बुनियादी स्तरों को बनाए रखने के लिये भी करते हैं. हमें भोजन उगाने और अपने पशुओं के लिये भी इसकी आवश्यकता है.
भारत में, लगभग 90 करोड़ लोग देश के 6 लाख गाँवों में रहते हैं. इस आबादी के लगभग 45 प्रतिशत हिस्से को अब भी सुरक्षित तरीक़े से प्रबन्धित पेयजल तक पहुँच हासिल नहीं है. यानि लगभग 40 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनको इस महत्वपूर्ण संसाधन तक उचित पहुँच उपलब्ध नहीं है.
परिसर में स्थित स्रोतों से पीने का पानी, दूषण-मुक्त व ज़रूरत के समय उपलब्ध हो, और स्वच्छ शौचालयों का उपयोग, जहाँ से कूड़े का सुरक्षित रूप से निपटान किया जाता हो.
भारत सरकार ने इस सोच के साथ 2019 में, कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन की स्थापना के ज़रिये, 2024 तक भारत के सभी ग्रामीण परिवारों को पर्याप्त, सुरक्षित और विश्वसनीय पेयजल उपलब्ध कराने के लिये ‘जल जीवन मिशन’ शुरू किया.
इस जल जीवन मिशन रणनैतिक तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता प्रदान करने के लिये, भारत में UNOPS ने डेनमार्क सरकार के साथ हाथ मिलाया है.
यह परियोजना, भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त में 137 गाँवों पर केन्द्रित है, जहाँ लोग अत्यधिक ग़रीबी का जीवन जीते हैं और पानी की कमी व प्रदूषण के गम्भीर मसलों का सामना करते हैं.
पानी, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई (WASH) सेवाओं में लैंगिक असमानता सबसे अधिक व्याप्त है. उचित WASH सेवाओं के बिना, महिलाओं और लड़कियों को स्वस्थ, सुरक्षित व उत्पादक जीवन जीने में अनन्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है.
भारत में, पानी इकट्ठा करने का भारी बोझ ज़्यादातर महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है, जो कि पूर्णत: अवैतनिक कार्य है. यह एक ऐसा कार्य है जिसमें दिन के कई घण्टे बर्बाद होते हैं - ऐसे घण्टे जिनका उपयोग, शिक्षा, कौशल विकास, व आर्थिक अवसरों तक पहुँच विकसित करने के लिये किया जा सकता है.
23 साल की मालती देवी, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में रहती हैं. वह अपने पैतृक घर और अपने छोटे से बेटे की देखभाल करती हैं, जबकि उनका पति खेतों में काम करता है.
वह बताती हैं, “हमारे घरों में नल नहीं थे. हम एक हाथनल से निकालकर पानी लाते थे, जो कि बहुत दूर था. वहाँ पहुँचने में बहुत समय लगता था.”
अठारह वर्षीय कल्पना भी इन चुनौतियों को अच्छी तरह समझती है. उसे अपने गाँव के बाहरी इलाक़े में स्थित, साझा कुँओं से पानी भरने के लिये लम्बा रास्ता तय करना पड़ता था. कल्पना अपने परिवार के लिये पानी इकट्ठा करने के सिलसिले में, अक्सर समय पर स्कूल नहीं पहुँच पाती थी. सीमित संसाधनों के लिये जद्दोजहद करती भीड़ के बीच, उसे अक्सर कुँओं पर लम्बा इन्तेज़ार करना पड़ता था.
भारत सरकार ने लैंगिक असमानता के मुद्दों से निपटने के लिये, ग्राम जल और स्वच्छता समिति में, कम से कम आधी सदस्यता महिलाओं की होने का प्रावधान किया है. ये समितियाँ, गाँव में जलापूर्ति प्रणालियों के रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार होती हैं.
परियोजना के एक सामुदायिक सलाहकार, सन्तोष सोनी बताते हैं, "मेरा मानना है कि जल प्रबन्धन का मामला महिलाओं से जुड़ा हुआ है [...] जिन्हें अपने परिवारों के लिये पानी इकट्ठा करने में लगभग ढाई से तीन घण्टे का समय लगाना पड़ता है. इस मामले में महिलाओं की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है."
UNOPS का काम है, समुदायों को - उनकी महिलाओं के नेतृत्व में – एकजुट करना. स्थिति का अवलोकन करके, जीवन के अनुभवों के आधार पर ज़रूरतों का आकलन किया जाता है, जिससे आगे बढ़ने की प्रक्रिया के बारे में निर्णय लिये जाते हैं.
सन्तोष सोनी बताते हैं, "जब हमने गाँव आकर ‘कम्युनिटी लीव्स नो वन बिहाइण्ड (CLNOB) मैपिंग शुरू की, तो महिलाएँ अपने घरों से बाहर निकलने में भी झिझकती थीं."
“हमने CLNOB के तहत तीन तरह की मैपिंग की. सबसे पहले, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई का मानचित्रण. दूसरा, पीने के पानी की मैपिंग. और तीसरा, ग्रे पानी का मानचित्रण, जिसे अपशिष्ट जल के रूप में भी जाना जाता है. आज, स्थिति यह है कि हम पीछे हट गए हैं और महिलाएँ स्वयं इस प्रक्रिया को आगे ले जा रही हैं."
दीर्घकालिक स्थिरता का समर्थन करने के लिये, ज्ञान और कौशल के ज़रिये, स्थानीय समुदायों को अपने गाँवों में पानी के कनेक्शन की ज़िम्मेदारी लेने के लिये प्रेरित किया जाता है. स्थानीय क्षमता का निर्माण किया जा रहा है ताकि समुदाय अपना रखरखाव, निगरानी, पानी की गुणवत्ता की निगरानी और ग्रे वाटर प्रबन्धन कर सकें.
निवासियों को यह भी दिखाया जाता है कि कैसे नए ढाँचों के ज़रिये, उनके गाँवों को एक स्वच्छ और हरित दृष्टिकोण दिलाने में मदद मिलेगी. UNOPS ने लगभग 700 महिलाओं को जल परीक्षण तकनीकों में प्रशिक्षित किया है ताकि वे अपने गाँवों में पेयजल स्रोतों की जाँच कर सकें.
उषा देवी ने भी UNOPS के नेतृत्व वाले जल परीक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया.
उत्तर प्रदेश के रामगुलाम गाँव की उषा की शादी कम उम्र में ही हो गई थी और उसे अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं मिली. वह अपने समुदाय की मदद के लिये, इस कर्यक्रम का प्रशिक्षण लेने के लिये बेहद उत्सुक दिखीं.
वह कहती हैं, "आज मैं सशक्त महसूस करती हूँ कि मेरी सीमित औपचारिक शिक्षा के बावजूद, मैं अन्य लोगों को पानी के बारे में शिक्षित करने में सक्षम हूँ. मुझमें एक नए विश्वास का संचार हुआ है, मैं अपने घर की बेहतर देखभाल करती हूँ, सूचित निर्णय लेती हूँ, जल संरक्षण तकनीकों को साझा करती हूँ और दिखाती हूँ कि कैसे अपशिष्ट जल को कुशलता से प्रबन्धित किया जा सकता है.”
पड़ोसी गाँव की सविता कौशिक भी कुछ ऐसी ही भावना थी.
वह कहती हैं, “हमने महसूस किया कि हम प्रतिदिन कितना पानी बर्बाद करते हैं, जिसे बचाया जा सकता है और किचन गार्डन में पुन: उपयोग किया जा सकता है. अब हम पानी बचाते हैं और हमने अपशिष्ट जल का अधिक कुशलता से उपयोग करना शुरू कर दिया है.”
जल जीवन मिशन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक गाँव को 100 प्रतिशत कवरेज मिले, और कोई भी पीछे न छूट जाए. अभी तक, इस पहल का लगभग 50 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया गया है.
जब WASH की बात आती है, तो हर शहर, क़स्बा और छोटे गाँव मायने रखते हैं, अगर हम सतत विकास लक्ष्य 6 हासिल करने की उम्मीद करते हैं: 2030 तक सभी के लिये पानी व स्वच्छता की उपलब्धता और टिकाऊ प्रबन्धन सुनिश्चित करना.
विश्व स्तर पर, प्रगति के वर्तमान स्तर पर दुनिया उस लक्ष्य से बहुत पीछे है – और वो भी अरबों की संख्या में.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनीसेफ़ के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम के नए आँकड़े बताते हैं कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये, सुरक्षित पानी और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच में सुधार के मौजूदा प्रयासों को चौगुना करने की ज़रूरत है. ऐसा करने के लिये सभी की शिरक की आवश्यकता है - उच्चतम नीति निर्माताओं से लेकर व्यक्ति विशेष समुदायों तक.