अल्पकालिक मुनाफ़े के बजाय, प्रकृति के मूल्य पर ध्यान दिये जाने पर बल

संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक नई रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि राजनैतिक व आर्थिक निर्णयों में जिस प्रकार से प्रकृति के मूल्य का कमतर आकलन किया जाता है, वह मौजूदा जैवविविधता संकट का एक मुख्य कारक है. रिपोर्ट के अनुसार प्रकृति के योगदान को प्राकृतिक जगत पर आधारित नीतिगत निर्णयों में भी परिलक्षित किया जाना होगा.
जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी सेवाओं पर अन्तरसरकारी विज्ञान-नीति प्लैटफ़ॉर्म (IPBES) की नई समीक्षा रिपोर्ट बताती है कि नीतिगत निर्णयों में अल्पकालिक मुनाफ़े और आर्थिक प्रगति पर ज़्यादा ध्यान केन्द्रित किया जाता है.
मगर, इस वजह से प्रकृति के मूल्य को कम करके आंका जाता है.
The values that we individually ascribe to nature are vital parts of our cultures, identities, economies, and ways of life. But how can we reflect these multiple values in decisions about nature?Check out @IPBES #ValuesAssessment report: https://t.co/Ben81NzJtR pic.twitter.com/LHAyTcix34
UNEP
IPBES, विज्ञान एवं नीतिगत मामलों के लिये एक स्वतंत्र, अन्तरसरकारी संस्था है जिसका सचिवालय, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रदत्त है.
'Diverse Values and Valuation of Nature' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को 139 सदस्य देशों ने स्वीकृत किया है.
रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम के सह-प्रमुख उना पास्कुअल, पैट्रिशिया बैलवेनेरा, माइक क्रिस्टी और ब्रिजिट बैपटिस्ट ने रिपोर्ट पर जानकारी देते हुए बताया कि नीतिगत निर्णयों में प्रकृति का समावेश कम ही हो पाता है.
आर्थिक व राजनैतिक निर्णयों में प्रकृति के बाज़ार-आधारित मूल्य को प्राथमिकता दी जाती है, जैसेकि गहन खाद्य उत्पादन में. मगर, यह ध्यान नहीं रखा जाता है कि प्राकृतिक जगत में होने वाले बदलावों से आमजन की जीवन गुणवत्ता किस तरह प्रभावित हो रही है.
इसके अलावा, नीतिनिर्माण में प्रकृति के उन अनेक मूल्यों को नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है, जोकि समुदायो में तो अहम योगदान देते हैं, लेकिन बाज़ार में उनकी विशेष अहमियत नहीं है – उदाहरणस्वरूप जलवायु नियमित करने में भूमिका और सांस्कृतिक पहचान.
रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि प्रकृति आधारित, उसके साथ और उसकी तरह जीवन जीने का अर्थ है – लोगों की आजीविकाओं, आवश्यकताओं व आकाँक्षाओं को पूरा करने वाले संसाधनों को प्रदान करना.
साथ ही, प्राकृतिक जगत को अपने ही एक शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक हिस्से के रूप में देखा जाना होगा और मानवता से परे जीवन पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाना होगा, जैसेकि किसी नदी में मछली के फलने-फूलने का अधिकार.
पैट्रिशिया बैलवेनेरा ने बताया कि मूल्य आकलन के ज़रिये निर्णय-निर्धारकों को ठोस उपाय व तौर-तरीक़े मुहैया कराये जाते हैं, ताकि व्यक्तियों व समुदायों में प्रकृति के लिये निहित मूल्यों को समझ सकें.
ब्रिजिट बैपटिस्ट ने स्पष्ट किया कि विविध परिप्रेक्ष्यों, मूल्यों, आदिवासी लोगों और स्थानीय समुदायों के पारम्परिक ज्ञान का सम्मान किया जाना होगा, जिससे नीतियों को समावेशी बनाने में मदद मिलती है और बेहतर नतीजे प्राप्त होते हैं.
रिपोर्ट के लेखकों ने मूल्य-आधारित चार अहम बिन्दुओं को प्रस्तुत किया है, ताकि सततता व न्याय पर केन्द्रित कायापलट कर देने वाले बदलावों के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ सृजित की जा सकें.
इनमें प्रकृति के विविध मूल्यों को पहचानने, नीति-निर्माण और नीतिगत सुधार में आकलन को जोड़ने, उसे वैश्विक सततता के अनुरूप बनाने और न्याय केन्द्रित लक्ष्यों को पाना है.
विशेषज्ञों का कहना है कि हर एक उपाय, स्वयं में दूसरे मूल्यों पर आधारित है, लेकिन सततता पर आधारित सिद्धान्तों को ही साझा करते हैं.
IPBES प्रमुख ऐना मारिया हर्नानण्डेज़ सालगार ने कहा कि जिस गति से जैवविविधता लुप्त हो रही है और आमजन के लिये प्रकृति का योगदान तेज़ी से क्षरण का शिकार हो रहा है, वैसा मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ.
उन्होंने कहा कि इसकी प्रमुख वजह ये है कि राजनैतिक व आर्थिक निर्णयों में प्रकृति के योगदान और उसकी विविधता के महत्व को पूर्ण रूप से नहीं समझा जाता.