हिंसक टकराव, कोविड और जलवायु संकट, वैश्विक लक्ष्यों के लिये जोखिम

आपस में गुंथे वैश्विक संकटों के कारण, यूएन 2030 एजेण्डा पर आधारित 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये ख़तरा पनप रहा है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा गुरूवार को जारी नई रिपोर्ट बताती है कि विश्व भर में खाद्य आपूर्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा हालत पर गम्भीर असर हुआ है.
‘The Sustainable Development Goals Report 2022’ हुआ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती हिंसा व टकराव, वैश्विक महामारी कोविड-19, और जलवायु संकट के कारण, इस वर्ष साढ़े सात से साढ़े नौ करोड़ अतिरिक्त लोगों के लिये चरम ग़रीबी का शिकार बनने का जोखिम है.
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साथ ही, सर्वजन के लिये पहले से कहीं अधिक सहनसक्षम, शान्तिपूर्ण व समानतापूर्ण समाजों के निर्माण के लिये ब्लूप्रिन्ट, 2030 एजेण्डा के समक्ष जोखिम खड़ा रहा है.
मौजूदा परिस्थितियों और वैश्विक महामारी से पहले के अनुमानों की तुलना के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया है.
यूएन में आर्थिक व सामाजिक मामलों के विभाग के प्रमुख लियु झेनमिन ने कहा, “टिकाऊ विकास लक्ष्यों में तय किया गया रोडमैप स्पष्ट है. जिस तरह आपसे में जुड़े होने से संकटों का असर गहरा जाता है, वैसे ही समाधानों का भी बढ़ता है.”
वैश्विक महामारी ने टिकाऊ विकास के महत्वाकाँक्षी लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों को कमज़ोर बनाया है, और यह प्रभाव अब भी बना हुआ है.
रिपोर्ट बताती है कि कोरोनावायरस के प्रत्यक्ष व परोक्ष कारणों से होने वाली मौतें, पिछले वर्ष के अन्त तक डेढ़ करोड़ तक पहुँच गई.
इसके मद्देनज़र, लोगों को निर्धनता से उबारने में चार वर्षों की प्रगति पर गम्भीर असर हुआ है, अति-आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में भीषण व्यवधान उत्पन्न हुआ है, और सर्वजन के स्वास्थ्य-कल्याण को बढ़ावा देने पर केन्द्रित लक्ष्य, एसडीजी3 के लिये चुनौती पैदा हो गई है.
वर्ष 2020 के बाद से, क़रीब 14 करोड़ 70 लाख छात्रों ने कक्षाओं में व्यक्तिगत रूप से जाकर होने वाली पढ़ाई के 50 फ़ीसदी से अधिक नुक़सान हुआ है.
इस बीच, दुनिया एक जलवायु आपात स्थिति से जूझ रही है और करोड़ों लोगों को वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि व चरम मौसम के प्रभावों को सहना पड़ रहा है.
ऊर्जा-सम्बन्धी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों में पिछले वर्ष छह फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जोकि उनका अधिकतम स्तर था.
वैश्विक महामारी के दौरान कार्बन उत्सर्जनों में दर्ज की गई गिरावट की गई थी, मगर अब यह फिर से रिकॉर्ड स्तर पर है.
यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के सबसे ख़राब प्रभावों से बचने के लिये, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों के अधिकतम स्तर को 2025 में छूने के बाद, 2030 तक उसमें 43 प्रतिशत की गिरावट लाई जानी ज़रूरी है.
वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता, यानि नैट शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को पाना अहम है.
फ़िलहाल देशों ने जलवायु कार्रवाई के लिये स्वैच्छिक रूप से जिन राष्ट्रीय संकल्पों को प्रस्तुत किया है, उनसे अगले एक दशक में उत्सर्जन में क़रीब 14 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है.
इस वर्ष, महासागरों में एक करोड़ 70 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक पहुँचने का अनुमान व्यक्त किया गया है – यह आँकड़ा 2040 तक दो गुना या तीन गुना होने की सम्भावना है.
रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन और अनेक अन्य देशों में युद्ध व दूसरे संकटों की वजह से हाल के दशकों में सबसे बड़ा शरणार्थी संकट उत्पन्न हुआ है.
इस वर्ष मई महीने तक, 10 करोड़ लोग अपने घर से जबरन विस्थापन के लिये मजबूर हुए हैं.
यूक्रेन में संकट के कारण, भोजन, ईंधन व उर्वरक की क़ीमतों में उछाल, सप्लाई चेन और वैश्विक व्यापार में व्यवधान आया है, वित्तीय बाज़ारों में उथल पुथल मची है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा व राहत अभियानों के लिये ख़तरा पैदा हुआ है.
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में सर्वाधिक सम्वेनशील हालात का सामना कर रहे देशों व आबादियों पर विषमतापूर्ण ढँग से असर हुआ है.
इनमें वो महिलाएं भी हैं, जिनके रोज़गार ख़त्म हो गए हैं और घर पर काम की जिम्मेदारी बढ़ी है.
वैश्विक महामारी के कारण महिलाओं व लडकियों के लिये हिंसा के मामले भी बढ़े हैं. सबसे कम विकसित देश कमज़ोर आर्थिक प्रगति, बढ़ती महंगाई, सप्लाई चेन में बड़े व्यवधान, विशाल कर्ज़ से जूझ रहे हैं.
इन हालात में प्रभावित देशों में युवजन के लिये रोज़गार के सीमित अवसर हैं, और बाल विवाह व बाल मज़दूरी के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि सर्वाधिक निर्बलों की सहायता सुनिश्चित करने और टिकाऊ विकाल लक्ष्यों पर 2030 तक अर्थपूर्ण प्रगति दर्ज करने के लिये, दुनिया को अपने संकल्प पूरे करने होंगे.
इस क्रम में, देशों से मौजूदा संकट से मज़बूत होकर उभरने और भविष्य में अनजान चुनौतियों से निपटने के लिये बेहतर तैयारी की पुकार लगाई गई है.
इसके तहत, राष्ट्रीय सरकारों और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया गया है कि डेटा व सूचना के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्राथमिकता के तौर पर लिया जाना होगा.