यूक्रेन में युद्ध के कारण बढ़ती महंगाई, निर्धनता के गर्त में धँसते लोग
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई है कि वैश्विक खाद्य व ऊर्जा क़ीमतों में आए तेज़ उछाल के कारण, मार्च 2022 के बाद के तीन महीनों में, विकासशील देशों में सात करोड़ 10 लाख से अधिक लोग निर्धनता के गर्त में समा गए हैं. यूएन एजेंसी के अनुसार, यूक्रेन में युद्ध के कारण, निर्धनता दर पर हुआ असर, कोविड-19 महामारी से उपजे व्यवधान से कहीं अधिक तेज़ी से हुआ है.
महंगाई से निपटने के उपाय के तौर पर ब्याज़ दरों में की जाने वाली वृद्धि से, मंदी और उसके कारण निर्धनता बढ़ने का जोखिम है, जोकि विश्व भर में मौजूदा संकट को और गहरा बना सकती है.
यूएन विकास कार्यक्रम का कहना है कि कर्ज़ के ऊँचे स्तर, ख़त्म हो रहे राजकोषीय साधनों, और वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में बढ़ती ब्याज़ दरों से विकासशील देशों के लिये कठिन चुनौतियाँ पनप रही हैं, जिनसे निपटने में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की सहायता ज़रूरी होगी.
The global cost-of-living crisis, catalyzed by the war in Ukraine, is sending tens of millions into poverty, warns our new report.71 million people in the developing world have fallen into poverty due to global food and energy price surges. https://t.co/fkDGbRJuzv#HLPF pic.twitter.com/y4VXS7487P
UNDP
यूएन विकास कार्यक्रम के प्रशासक एखिम स्टाइनर ने कर्ज़ संकट में दबे श्रीलंका का उल्लेख करते हुए कहा, “हम श्रीलंका में त्रासदीपूर्ण घटनाओं को घटित होते देख रहे हैं, जोकि हर उस एक व्यक्ति के लिये चेतावनी है, जिसका सोचना है कि यह देशों को अपने आप तय करना है कि इस संकट से किस तरह निपटा जाए.”
श्रीलंका के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब गहन आर्थिक संकटों में घिरा देश अपने कर्ज़ की क़िस्त चुकाने में विफल रहा है.
यूएन एजेंसी के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि इसका अर्थ है कि देश ना सिर्फ़ अपने कर्ज़ की क़िस्त का भुगतान कर पाने में सक्षम नहीं है, बल्कि उन बुनियादी वस्तुओं का आयात भी सम्भव नहीं है, जिससे अर्थव्यवस्था को जीवित रखा जाता है.
“चाहे ये पेट्रोल या डीज़ल हो, चाहे ईंधन हो, या फिर दवाएँ हों.”
गहराता संकट
इससे पहले, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की नई रिपोर्ट में चिन्ता जताई गई थी कि वर्ष 2021 में, दुनिया भर में भूख की मार झेलने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 82 करोड़ 80 लाख तक पहुँच गई है.
यूएन विकास कार्यक्रम के वरिष्ठ अर्थशास्त्री जॉर्ज ग्रे मोलिना ने जिनीवा में एक वर्चुअल पत्रकार वार्ता को सम्बोधित किया, जिसमें वैश्विक खाद्य, ईंधन व वित्त संकट से निपटने के लिये सिलसिलेवार नीतिगत अनुशंसाएं प्रस्तुत की गईं.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि अनेक देशों में पिछले 36 महीनों में एक झटके के बाद दूसरा, ऐसे झटके लगातार महसूस किये गए हैं.
“पहले कोविड-19, फिर 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर रूस का आक्रमण, जिसके बाद से वैश्विक खाद्य व ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान आया है और मुद्रास्फीति में तेज़ वृद्धि हुई है.”
“कोविड के मामले में हमने श्रम बाज़ारों, तालाबन्दियों और आय में ऐसे प्रभावों को देखा, जो धीरे-धीरे आए, लेकिन समय बीतने के साथ उनका असर मज़बूत होता चला गया. आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार पिछले 18 महीनों में साढ़े 12 करोड़ लोग निर्धनता के गर्त में धंस गए.”
“हम फ़िलहाल देखते हैं कि तीन महीने की महंगाई में क़रीब सात करोड़ 10 लाख लोग निर्धनता का शिकार हो चुके हैं.”
सामाजिक अशान्ति का जोखिम
यूएन एजेंसी प्रमुख एखिम स्टाइनर ने आगाह किया है कि देशों की सरकारों द्वारा निर्णायक व बड़ा बदलाव लाने वाली कार्रवाई के अभाव में व्यापक स्तर पर अशान्ति फैलने का जोखिम है.
159 विकासशील देशों के विश्लेषण में संकेत मिले हैं कि प्रमुख वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि होने से निर्धनतम घर-परिवारों पर विनाशकारी असर नज़र आने लगे हैं.
बाल्कन, कैस्पियन सागर और सब-सहारा अफ़्रीका, विशेष रूप से सहेल क्षेत्र में सर्वाधिक असर होने की आशंका है.
यूएन एजेंसी प्रशासक के अनुसार, जीवन-व्यापन के लिये क़ीमत संकट ने लाखों लोगों को निर्धनता के गर्त में धकेल दिया है और तेज़ रफ़्तार से भुखमरी भी बढ़ रही है, जिसके मद्देनज़र, सामाजिक अशान्ति का जोखिम दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है.
रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि वैश्विक खाद्य, ईंधन और वित्त संकट का निर्धनता पर असर, कोविड-19 महामारी के कारण हुए प्रभावों की तुलना में कहीं अधिक तेज़ी से हुआ है.
एखिम स्टाइनर ने ज़ोर देकर कहा कि कुछ देशों के लिये यह सम्भव हो सकता है कि ब्याज़ दरों को बढ़ाये बिना ही, महंगाई पर नियंत्रण पा लिया जाए.
सहायता उपाय
यूएनडीपी ने अपनी नई रिपोर्ट, Tackling The Cost-Of-Living Crisis: Policy Responses to Mitigate Poverty and Vulnerability around the World, में वित्त नीतियों के लिये कुछ सिफ़ारिशों का खाका पेश किया है.
एखिम स्टाइनर ने सचेत किया कि वैश्विक पुनर्बहाली के लिये यह हर किसी के हित में है कि ऊँचे कर्ज़ और वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में ऊँची ब्याज़ दरों का सामना करने वाले और वित्तीय संकट से जूझ रहे देशों को सहायता प्रदान की जाए.
यूएन एजेंसी की रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई है कि विकासशील देशों के समक्ष, वैश्विक अर्थव्यवस्था से स्थाई तौर पर अलग-थलग हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा है.
यूएन विकास कार्यक्रम का मानना है कि अन्तरराष्ट्रीय सहमति प्राप्त उपायों के ज़रिये, इस आर्थिक कुचक्र से निपटा जा सकता है और ज़िन्दगियों व आजीविकाओं की रक्षा सम्भव है.
इस क्रम में, यूएन एजेंसी ने लक्षित ढँग से ज़रूरतमदों के लिये नक़दी हस्तांतरण उपाय को ताबड़तोड़ ऊर्जा सब्सिडी दिये जाने से कहीं अधिक न्यायसंगत व किफ़ायती बताया है.
मगर, एखिम स्टाइनर ने स्पष्ट किया है कि निम्न- और मध्य-आय वाले देशों के उबरने के लिये अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन ज़रूरी होगा.