समुद्री खाद्य प्रणालियों में रूपान्तरकारी बदलावों पर केन्द्रित रणनीति पर बल

पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में दूसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में बुधवार को मत्स्य पालन व मछली उत्पादन के रिकॉर्ड स्तर और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में उसके योगदान पर चर्चा हुई.
सम्मेलन के तीसरे दिन यानि बुधवार को, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने अपनी नई रिपोर्ट भी State of World Fisheries and Aquaculture भी जारी की, जिसमें वैश्विक मत्स्य उद्योग और मछली पालन की सततता पर ध्यान केन्द्रित किया गया.
मछली और अन्य प्रकार के जलीय भोजन की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, जिससे इस सैक्टर में बदलाव आया है और खपत बढ़ने की आशा है.
What does the ideal aquatic food system look like? For starters, it would be able to provide sufficient aquatic food for our growing population in a sustainable way.Check out the new @FAO interactive story to learn more: https://t.co/YnEiC3V3LC#SOFIA2022 #BlueTransformation pic.twitter.com/QytMYeV0Ft
FAO
विश्व में बढ़ती आबादी के अलावा, पैदावार के बाद तौर-तरीक़ों व वितरण में बदलाव, और स्वास्थ्य व पोषण पर केन्द्रित आहार सम्बन्धी नए रुझान, इसके कुछ प्रमुख कारण बताए गए हैं.
खाद्य एवं कृषि संगठन का मानना है कि वैश्विक आबादी की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने से, खाद्य प्रणालियों पर दबाव बढ़ रहा है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन, कोविड-19, पर्यावरणीय क्षरण और हिंसक टकराव भी उनकी परीक्षा ले रहे हैं.
बुधवार को जारी रिपोर्ट में मत्स्य उद्योग, मछली पालन में उभर रहे रुझानों, वैश्विक व क्षेत्रीय स्तर पर उनकी उपलब्ध मात्रा का विश्लेषण किया गया है.
‘नील रूपान्तरकारी बदलाव’ (Blue Transformation) पर केन्द्रित एक नई रणनीति के ज़रिये जल के भीतर मौजूद खाद्य प्रणालियों में निहित सम्भावनाओं को साकार किये जाने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि वैश्विक आबादी की खाद्य ज़रूरतों को टिकाऊ ढंग से पूरा किया जा सके.
रूपान्तरकारी बदलाव से यहाँ तात्पर्य, जलीय भोजन के उत्पादन, प्रबन्धन, व्यापार और खपत के तौर-तरीक़ों में इस तरह से परिवर्तन लाना है, जिससे टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके.
यूएन एजेंसी के मत्स्य एवं मछली पालन विभाग में निदेशक मैनुएल बरांज ने प्रैस को जानकारी देते हुए कहा कि यह पहली बार है जब इस अहम रिपोर्ट को रोम में FAO मुख्यालय से बाहर जारी किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, मछली पालन में तेज़ प्रगति दर्ज की गई है, विशेष रूप से एशिया क्षेत्र में.
वर्ष 2020 में मछली पालन सैक्टर में कुल उत्पादन 21 करोड़ 40 लाख टन पहुँच गया, जोकि अब तक का सबसे ऊँचा स्तर है.
इनमें 17 करोड़ 80 लाख टन जलीय भोजन और तीन करोड़ 60 लाख शैवाल या जलीय पौधों का उत्पादन है.
वर्ष 2020 में यह उत्पादन 2000 के वर्षों के औसत से 30 प्रतिशत अधिक है, और 1990 के सालों के स्तर से यह 60 प्रतिशत ज़्यादा आँका गया है.
हालाँकि, यूएन एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी ने खाद्य वस्तुओं, विशेष रूप से मछली की बढ़ती क़ीमतों पर चिन्ता जताई है.
बताया गया है कि पिछले वर्ष दिसम्बर से इस साल अप्रैल तक मछली की क़ीमतों में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे उपभोक्ताओं पर दबाव बढ़ा है.
विश्व भर में 80 करोड़ से अधिक लोग भूख की मार झेल रहे हैं और दो अरब 40 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन की सीमित सुलभता है.
इन हालात में, बढ़ती आबादी की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना और मौजूदा संसाधनों का सतत रूप से इस्तेमाल, एक ऐसी चुनौती है जोकि निरन्तर बढ़ रही है.
इस पृष्ठभूमि में, जलीय भोजन प्रणाली पर हाल के सालों में ध्यान केन्द्रित किया गया है, चूँकि उनमें बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने की विशाल सम्भावना है.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक क्यू डोंगयू ने कहा, “मत्स्य एवं मछली पालन, वैश्विक भूख और कुपोषण का अन्त करने के प्रयासों में बेहद अहम हैं, लेकिन इन चुनौतियों से निपटने में और बड़े बदलाव लाने की ज़रूरत है.”
“हमें कृषि-खाद्य प्रणालियों की कायापलट कर देने वाले बदलाव लाने होंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जलीय भोजन की सतत पैदावार हो, आजीविकाओं की रक्षा की जा सके और जलीय पर्यावासों व जैवविविधता का संरक्षण हो सके.”
महासागर के लिये यूएन महासचिव के विशेष दूत पीटर थॉम्पसन ने एसडीजी मीडिया ज़ोन में मछली पालन को विश्व के लिये सबसे स्वस्थ पोषण का स्रोत क़रार दिया है, जिसमें आने वाली पीढ़ियों का पेट भरने की सम्भावना है.
वर्ष 2020 में पशु मत्स्य उत्पादन ने आठ करोड़ 75 लाख टन का आँकड़ा छुआ, जोकि वर्ष 2018 से छह प्रतिशत अधिक है, जबकि समुद्र से पकड़ी गई मात्रा घटकर नौ करोड़ टन ही रह गई.
बढ़ती मांग के कारण मत्स्य और मछली पालन सैक्टर में तेज़ी से बदलाव आ रहा है. वर्ष 2030 तक खपत में 15 प्रतिशत की वृद्धि होने की सम्भावना है और प्रति व्यक्ति 21.4 किलोग्राम की आपूर्ति हो सकेगी.
वर्ष 2030 तक जलीय भोजन का कुल उत्पादन 20 करोड़ 20 लाख टन होने की सम्भावना है, जिसकी एक बड़ी वजह मछली पालन में निरन्तर दर्ज की जा रही प्रगति बताई गई है.
निदेशक मैनुएल बरांज ने कहा कि विश्व भर में, मछुआरों और मछली किसानों समेत पाँच करोड़ 80 लाख से अधिक लोग सीधे तौर पर अपने भोजन व आजीविका के लिये मत्स्य व मछली पालन पर निर्भर हैं.
इतनी बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए, इस सैक्टर के न्यायसंगत व टिकाऊ विकास के लिये सहनक्षमता निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है.
यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि विश्व की बढ़ती आबादी की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने और मछली भण्डार व नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्रों की सततता बनाए रखने के लिये और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है.
समुद्री मत्स्य संसाधनों की सततता के सम्बन्ध में चिन्ताएँ व्यक्त की गई हैं. रिपोर्ट के अनुसार, टिकाऊ ढंग से पकड़े जाने वाली मछलियों की मात्रा में गिरावट आई है.
वर्ष 2019 में यह 64.6 प्रतिशत थी, जोकि 2017 से 1.2 प्रतिशत की कमी दर्शाता है.
यूएन महासचिव के विशेष दूत पीटर थॉम्पसन ने टिकाऊ विकास के 14वें लक्ष्य के लिये बेहतर वित्त पोषण, और उसे वैकल्पिक समाधानों के लिये उपलब्ध बनाने पर बल दिया है.
“कार्रवाई का अर्थ है धन, अपना हाथ जेब में डालिये और इसे साकार करिये.”
उन्होंने सचेत किया कि परिस्थितियाँ बदल रही हैं और इसके मद्देनज़र, फ़िलहाल विकसित किये जा रहे समाधानों में निवेश किया जाना अहम है.