आईसीसी के 20 वर्ष: अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के बारे में जानने योग्य पाँच बातें
जघन्य अपराधों के मुक़दमे चलाना, पीड़ितों को न्याय-प्रक्रिया में शामिल करना, निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना, राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों के पूरक के रूप में काम करना: अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने अपने अस्तित्व के पहले 20 वर्षों में, अपने मिशन में उल्लेखनीय प्रगति की है.
1 जुलाई 2022 को न्यायालय की 20वीं वर्षगाँठ के अवसर पर, आइये जानते हैं ऐसी पाँच बातें, जिनसे स्पष्ट होता है कि आईसीसी किस तरह अधिक न्यायपूर्ण विश्व बनाने में सहयोग कर रहा है.
1) जघन्यतम अपराधों के मुक़दमे चलाना
आईसीसी को उन "लाखों बच्चों, महिलाओं और पुरुषों" को ध्यान में रखकर बनाया गया था, जो "मानवता की अन्तरात्मा को झकझोर देने वाले अकल्पनीय अत्याचारों के शिकार हुए थे." आईसीसी मानवता, युद्धापपराधों, नरसंहार व आक्रामक अपराध करने वालों की जाँच करने व उनपर मुक़दमा चलाने के लिये, दुनिया का पहला स्थाई सन्धि-आधारित, अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है.
आईसीसी ने अपने वजूद के पहले बीस वर्षों के दौरान अन्तरराष्ट्रीय न्याय को लेकर, अनेक महत्वपूर्ण मामलों पर मुक़दमे चलाए और फ़ैसले दिये. इनसे, बाल-सैनिकों के इस्तेमाल के मामले, सांस्कृतिक विरासत का विनाश, यौन हिंसा, या निर्दोष नागरिकों पर हमलों के अनेक मामले उजागर हुए. अनुकरणीय मामलों में इन फ़ैसलों के ज़रिये, धीरे-धीरे आधिकारिक क़ानून स्थापित हो रहा है. 31मामले शुरू किये गए. इसके न्यायाधीशों ने 10 मामलों में दोष सिद्ध किये और अभियुक्त 4 बरी हुए.
इस न्यायालय में दुनिया के कुछ सबसे हिंसक संघर्षों से जुड़े 17 मामलों की जाँच चल रही है, जैसेकि काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC), मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, जॉर्जिया और यूक्रेन.
2) पीड़ितों को शामिल करना
न्यायालय ना केवल सबसे जघन्य अपराधों के लिये ज़िम्मेदार लोगों को दण्डित करने का प्रयास करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों की आवाज़ सुनी जाएँ. पीड़ित यानि वो लोग या पक्ष जिन्हें न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में किसी भी अपराध के परिणामस्वरूप हानि पहुँची हो.
ये पीड़ित, आईसीसी की न्यायिक कार्यवाही के सभी चरणों में भाग लेते हैं. अत्याचार के 10 हज़ार से अधिक पीड़ित, इस न्यायालय की कार्यवाही में भाग ले चुके हैं, और न्यायालय, पहुँच कार्यक्रमों के माध्यम से, अपने अधिकार क्षेत्र में अपराधों से प्रभावित समुदायों के साथ सीधे सम्पर्क बनाए रखता है.
न्यायालय, पीड़ितों एवं गवाहों की सुरक्षा और शारीरिक व मनोवैज्ञानिक अखण्डता की रक्षा करने का भी प्रयास करता है. हालाँकि पीड़ित लोग सीधे इसमें मामले लेकर नहीं आ सकते हैं, लेकिन वे अभियोजक को जानकारी दे सकते हैं, जो यह तय करते हैं कि मामला जाँच के योग्य है या नहीं.
वर्तमान में, पीड़ितों के लिये स्थापित ICC ट्रस्ट कोष, न्यायालय के क्षतिपूर्ति फ़ैसलों की पहली धनराशि आबण्टित करने का काम पूरा कर रहा है. इस कोष ने अपने सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से 4 लाख 50 हज़ार से अधिक पीड़ितों को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक सहायता भी प्रदान की है.
3) निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना
आईसीसी के समक्ष, सन्देह से परे दोषी साबित होने तक सभी प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाता है. सभी प्रतिवादी सार्वजनिक और निष्पक्ष कार्यवाही के हक़दार होते हैं.
आईसीसी में, संदिग्धों और अभियुक्तों के पास महत्वपूर्ण अधिकार होते हैं, जिनमें: आरोपों के बारे में सूचना पाने; अपना बचाव तैयार करने के लिये पर्याप्त समय और सुविधाएँ मिलना; बिना किसी देरी के मुक़दमा चलाया जाना; स्वतंत्र रूप से वकील का चुनाव; अभियोजक से दोषमुक्ति समबन्धी साक्ष्य प्राप्त करना आदि शामिल है.
इन अधिकारों में से एक है - उस भाषा में कार्यवाही करने का अधिकार, जो अभियुक्त को पूरी तरह समझ में आती हो. इसके लिये, अदालत ने 40 से अधिक भाषाओं में विशेष दुभाषियों व अनुवादक काम पर रखे हैं, और कभी-कभी एक ही सुनवाई के दौरान एक साथ चार भाषाओं का उपयोग भी किया जाता है.
अपने पहले 20 वर्षों के कार्यकाल में, प्रतिभागियों को अपराध के स्थान से मीलों दूर, नई वास्तविक और प्रक्रियात्मक चुनौतियों की विविधता का सामना करना पड़ा. इसके अलावा, ICC द्वारा अभियोजित अपराध एक विशिष्ट प्रकृति के होते हैं और ऐसे होते हैं जो अक्सर बड़े पैमाने पर किये जाते हैं, जिनमें बड़ी तादाद में साक्ष्य एवं गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये, अनगिनत प्रयासों की आवश्यकता होती है. कार्यवाही जटिल है और ऐसे अनेक मामले हैं जिन्हें सुनवाई के दौरान पर्दे के पीछे हल करने की आवश्यकता भी पड़ती है.
4) राष्ट्रीय प्राधिकरणों के पूरक
यह न्यायालय, राष्ट्रीय न्यायालयों की जगह नहीं लेता. यह केवल न्याय के अन्तिम उपाय के रूप में काम करता है. सबसे गम्भीर अपराधों को अंजाम देने वालों की जाँच करने और उन्हें दण्डित करने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी देशों की ही होती है. यह न्यायालय केवल तभी क़दम उठा सकता है, जब जिस देश में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के तहत जघन्य अपराध हुआ हो, वो देश क़दम उठाने के लिये अनिच्छुक हो या असल में उसका निपटारा करने में असमर्थ हो.
दुनिया भर में गम्भीर हिंसा तेज़ी से बढ़ रही है. न्यायालय के संसाधन सीमित होते हैं और यह एक समय में बहुत कम मामले ही निपटा सकता है. यह न्यायालय, राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय न्यायाधिकरणों के साथ मिलकर काम करता है.
5) न्याय के लिये अधिक सहयोग जुटाना
आईसीसी ने सभी महाद्वीपों के 123 सम्बद्ध पक्षों के समर्थन से, ख़ुद को एक स्थाई व स्वतंत्र न्यायिक संस्थान के रूप में स्थापित किया है, लेकिन राष्ट्रीय न्यायिक प्रणाली की तरह, इस न्यायालय की अपनी पुलिस नहीं होती. यह अपने गिरफ़्तारी वारण्ट या सम्मन लागू करने जैसे कार्यों के लिये देशों के सहयोग पर निर्भर है. न ही इसके पास उन गवाहों को दूसरे क्षेत्रों में स्थानान्तरित करने के लिये अलग से कोई जगह है, जो किसी प्रकार के जोखिम में होते हैं. मतलब यह कि आईसीसी काफ़ी हद तक देशों के समर्थन और सहयोग पर निर्भर करता है.
आईसीसी अपनी 20वीं वर्षगाँठ के अवसर पर, दुनिया भर के देशों से राजनैतिक व वित्तीय सहायता प्रदान करने, संदिग्धों को गिरफ़्तार करने, उनकी सम्पत्तियाँ ज़ब्त करने, राष्ट्रीय क़ानून की मुख्य रोम संविधि प्रावधान अपनाने वाले क़ानून को लागू करने और आईसीसी गवाहों के स्थानान्तरण सम्बन्धी स्वैच्छिक सहयोग पर हस्ताक्षर करके, अपना समर्थन दोहराने का आहवान कर रहा है.
आईसीसी अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की संयुक्त और नवीनीकृत प्रतिबद्धता के ज़रिये ही, सभी के लिये, अधिक न्याय और सुलह के वादों को साकार कर सकता है.