इण्टरनेट पर रोक व व्यवधान – मानवाधिकारों, अर्थव्यवस्था व दैनिक जीवन पर असर
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) अपनी एक नई रिपोर्ट में चेतावनी जारी की है कि इण्टरनेट सेवा पर रोक लगने, उसमें व्यवधान आने से आमजन के जीवन, उनके मानवाधिकारों और अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर को अक्सर कम करके आंका जाता है.
रिपोर्ट बताती है कि जब बड़े संचार माध्यमों और नैटवर्क की गति धीमी होती है, या उन पर रोक लगाई जाती है, तो इससे हज़ारों-लाखों लोग अपने प्रियजनों से सम्पर्क स्थापित करने, मेडिकल सहायता पाने, काम करने, राजनैतिक चर्चाओं व निर्णयों में हिस्सा लेने से वंचित हो जाते हैं.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय में, विशेष प्रक्रिया एवं विकास के अधिकार प्रखण्ड में निदेशक पैगी हिक्स ने कहा, “जब आप [इण्टरनेट को] बन्द होते हुए देखते हैं, तो वो समय मानवाधिकारों के प्रति चिन्तित होने का होता है.”
Internet shutdowns are powerful markers of sharply deteriorating human rights situations."Action is needed to end Internet shutdowns, incl. through more reporting of impacts & more transparency by involved companies," says @mbachelet in new report.https://t.co/e3GpJyRJ9K pic.twitter.com/Tv6TPKnAa1
UNHumanRights
उन्होंने गुरूवार को जिनीवा में एक प्रैस वार्ता के दौरान बताया कि इण्टरनेट ठप होने से देशों के भीतर और देशों के बीच डिजिटल विभाजन और अधिक गहरा होता है.
“और ये उन स्थानों पर हो रहा है जहाँ मानवाधिकारों के लिये परिस्थितियाँ बद से बदतर हो रही हैं.”
एक ऐसे समय जब विकास सम्बन्धी सहायता का एक बड़ा हिस्सा, कम विकसित देशों में इण्टरनेट जुड़ाव (connectivity) को बेहतर बनाने पर लक्षित है, उससे लाभान्वित होने वाले कुछ देश स्वयं ही इण्टरनेट सेवा को बन्द करके डिजिटल दरार को और गहरा कर रहे हैं.
‘दमनकारी रोक’
यूएन एजेंसी में निदेशक पैगी हिक्स ने बताया कि सबसे कम विकसित 46 देशों में से 27 देशों ने वर्ष 2016 से 2021 के दौरान, इण्टरनेट पर रोक लागू की है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इण्टरनेट कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिये समर्थन प्राप्त होने के बावजूद, इन देशों ने ऐसा किया.
इण्टरनेट पर पहली बार व्यापक रोक, वर्ष 2011 में मिस्र मे तहरीर स्कवैयर पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान लगाई गई थी, जिसमें सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया और बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए थे.
इण्टरनेट सेवा को ठप किये जाने से तात्पर्य, कनेक्टिविटी पर पूरी तरह रोक लगाना हो सकता है, लेकिन देशों की सरकारें अब अन्य रास्ते भी अपना रही हैं.
जैसेकि अब बड़े संचार प्लैटफ़ॉर्म की सुलभता पर पाबन्दी लगा दी जाती है, इण्टरनेट की रफ़्तार कम करने के लिये बैण्डविड्थ सीमित की जाती है और मोबाइल सेवाएँ 2जी ट्रांसफ़र की रफ़्तार तक ही सिमट जाती हैं.
इस धीमी रफ़्तार के कारण, इण्टरनेट के ज़रिये वीडियो देखना, सामग्री साझा करना या सजीव प्रसारण (live broadcast) बहुत कठिन हो जाता है.
हस्तक्षेप से इनक़ार
अनेक देश संचार माध्यमों में दख़लअन्दाज़ी करने या दूरसंचार कम्पनियों पर दबाव डालकर सूचना साझा करने से रोकने की बात को सिरे से नकारते हैं.
55 देशों में नागरिक समाज द्वारा संज्ञान में लाये गए ऐसे मामलों की संख्या 228 है, जिसमें इण्टरनेट पर रोक लगाये जाने के लिये कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया है.
जब प्रशासन द्वारा व्यवधान के आदेश दिये जाने की बात को स्वीकारा जाता है, तो उसकी मुख्य वजह सार्वजनिक सुरक्षा, टकराव या हिंसा को फैलने से रोकना और जानबूझकर फैलाई जा रही ग़लत सूचना के प्रसार पर रोक लगाना होता है.
इसके बावजूद, इण्टरनेट में व्यवधान के नतीजे इससे ठीक उलट होते हैं.
पैगी हिक्स ने बताया कि 199 मामलों में इण्टरनेट पर रोक सार्वजनिक सुरक्षा चिन्ताओं की वजह से लगाई गई, जबकि 150 मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया गया.
मगर, इनमें अनेक मामलों में इण्टरनेट पर रोक लगने के बाद हिंसा में उछाल दर्ज किया गया.
इण्टरनेट पर रोक का अन्त करने का समय
यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई देश इण्टरनेट सेवा पर रोक लगाता है, तो उसका ख़ामियाज़ा आमजन व अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता है.
वर्चुअल माध्यम से शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल, और राजनैतिक भागीदारी ना हो पाने की एक बड़ी क़ीमत है.
रिपोर्ट में ऐसे उदाहरण भी साझा किये गए हैं, जिसमें आपात हालात के दौरान, अस्पताल अपने चिकित्सकों से सम्पर्क कर पाने में असमर्थ थे, जिसके बाद वहाँ डॉक्टर को बुलाने के लिये लाउडस्पीकर लगाने पड़े.
रिपोर्ट में देशों से इण्टरनेट सेवा पर रोक लगाने से परहेज़ करने का आग्रह किया गया है, ताकि इण्टरनेट सुलभता का अधिकतम लाभ लोगों तक पहुँच सके और संचार में अनेकानेक अवरोधों को हटाया जा सके.
साथ ही, कम्पनियों को व्यवधान के सम्बन्ध में जानकारी को साझा करने और रोक के ऐसे मामलों की रोकथाम के लिये हर क़ानूनी उपाय अपनाने को प्रोत्साहित किया गया है.