आदिवासी महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा, नस्लवाद में निहित 'उपनिवेशवाद की विरासत'
संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र अधिकार विशेषज्ञ ने मानवाधिकार परिषद को सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा है कि आदिवासी महिलाओं व लड़कियों को गम्भीर, व्यवस्थित और निरन्तर हिंसा का सामना करना पड़ता है, जो उनके जीवन के हर पहलू पर हावी है.
महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत, रीम अलसालेम ने मंगलवार को कहा, "इस हिंसा की जड़ें, उपनिवेशवाद की विरासत के कारण, ऐतिहासिक और असमान पितृसत्तात्मक सत्ता संरचनाओं, नस्लवाद, बहिष्कार व निर्बल लोगों व समुदायों को हाशिये पर धकेले जाने से जुड़ी हैं."
Report by @UNSRVAW to @UN_HRC : Legal & policy reforms must end #discrimination & #genderbasedviolence vs. #indigenous women & girls, which often occur with the full knowledge and tacit agreement of States, allowing perpetrators to enjoy #impunity. 👉https://t.co/OYHNc0m6Vh pic.twitter.com/FBhnIoCKlO
UN_SPExperts
दण्ड-मुक्ति ख़त्म हो
इस बीच, अपराधी बिना परिणाम भुगते, मुक्त होते जा रहे हैं.
रीम अलसालेम ने कहा, "राष्ट्रीय व गैर-राष्ट्रीय तत्वों को जिस स्तर पर दण्ड-मुक्ति हासिल हैं, वो बेहद ख़तरनाक है, और जिस पैमाने पर आदिवासी महिलाएँ व लड़कियाँ हिंसा का अनुभव करती हैं, वो किन्हीं आँकड़ों, क़ानून या सार्वजनिक नीतियों में पूर्णत: उजागर नहीं होता."
उन्होंने बताया कि हालाँकि, आदिवासी महिलाओं और लड़कियों के हिंसा से मुक्त होने का अधिकार अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में निहित है, लेकिन इसे अभी तक अधिकांश देशों द्वारा प्रभावी रोकथाम एवं सुरक्षा उपायों के रूप में लागू नहीं किया गया है.
काली छाया के पीछे छुपना
संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ ने चेतावनी दी कि गैर-राष्ट्रीय तत्वों की जवाबदेही में, क़ानूनी कमियों और ‘ग्रे ज़ोन’ भी आदिवासी महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा को बढ़ावा देने का काम करते हैं.
उनकी रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा, उन्हें स्थानीय और सामान्य न्याय प्रणालियों में प्रणालीगत भेदभाव का सामना भी करना पड़ता है, जिससे न्याय मिलने में बेहद कठिनाई होती है.
स्वतंत्र विशेषज्ञ ने कहा कि यह हिंसा, अक्सर "देशों की पूर्ण जानकारी व उनके मौन समर्थन" से जारी रहती है.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जहाँ भी यह हो, "दण्ड-मुक्ति को ख़त्म करने के लिये, इसे प्रभावी ढंग से सम्बोधित किया जाना चाहिये."
'सहनसक्षम पक्ष'
यह रिपोर्ट, लिंग आधारित हिंसा के मुख्य कारणों और परिणामों का एक सिंहावलोकन प्रस्तुत करती है, और न्याय व समर्थन सेवाओं तक पहुँचने की आदिवासी महिलाओं की क्षमता बढ़ाने के लिये उत्कृष्ट प्रथाओं एवं चुनौतियों पर प्रकाश डालती है.
इसमें देशों से हिंसा को कम करने के लिये, सरकारों और आदिवासी समुदायों के बीच क़ानूनों के पारस्परिक क्रियान्वयन की समीक्षा करने का आहवान किया गया है.
यह विश्लेषण, देशों और अन्य लोगों से, इस संकट को समाप्त करने में मदद करने हेतु, नीतिगत व क़ानूनी सुधार लागू करने की सिफारिशें भी पेश करता है.
विशेष रैपोर्टेयेर ने ज़ोर देकर कहा, "आदिवासी महिलाओं और लड़कियों को पूर्ण, समान व प्रभावी भागीदारी का अधिकार होना चाहिये, जिससे हिंसा से बचने के वादे से आगे जाकर, उन्हें हिंसा पीड़ितों के रूप में ही नहीं, बल्कि सहनसक्षमता के उदाहरण के रूप में देखा जाए."
विशेष रैपोर्टेयेर और स्वतंत्र विशेषज्ञ जिनीवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा एक विशिष्ट मानवाधिकार विषय या देश की स्थिति की जाँच और रिपोर्ट तैयार करने के लिये, नियुक्त किये जाते हैं. ये पद मानद हैं और विशेषज्ञों को उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं दिया जाता है.