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शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों पर सैन्य तरीक़े अपनाने से, केवल हिंसा वृद्धि

अमेरिका में 2020 में पुलिस के हाथों एक काले व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद, न्यूयॉर्क सिटी में नस्लभेद और पुलिस हिंसा के विरुद्ध प्रदर्शन.
UN Photo/Evan Schneider
अमेरिका में 2020 में पुलिस के हाथों एक काले व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद, न्यूयॉर्क सिटी में नस्लभेद और पुलिस हिंसा के विरुद्ध प्रदर्शन.

शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों पर सैन्य तरीक़े अपनाने से, केवल हिंसा वृद्धि

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक मानवाधिकार विशेषज्ञ ने सोमवार को कहा है कि दुनिया भर में नागरिक स्थान (Civic space) सिकुड़ रहा है और शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के दौरान मानवाधिकार हनन भी बढ़ रहा है क्योंकि देशों की सरकारें, प्रदर्शनों की पुलिस व्यवस्था के दौरान सैन्य तरीक़े ज़्यादा अपना रही हैं.

शान्तिपूर्ण एकत्र होने और संगठन बनाने के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर क्लेमेण्ट वॉले ने सोमवार को मानवाधिकार परिषद में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा है कि बहुत से देशों की सरकारें, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को भागीदारी का एक लोकतांत्रिक तरीक़ा देखने के बजाय, अक्सर प्रदर्शनों व लोगों की आवाज़ों को दबाने के लिये, दमन का सहारा लेती हैं.

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विशेष रैपोर्टेयर क्लेमेण्ट वॉले ने कहा कि दुनिया भर में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाने के लिये सैन्य तरीक़े अपनाए जाने के कारण, हिंसा व मानवाधिकार हनन में बढ़ोत्तरी होती है.

विशेष रैपोर्टेयर की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में देशों की सरकारें शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाने के लिये सैन्यकर्मी तैनात कर रहे हैं और सैन्य शैली वाले तरीक़े अपना रहे हैं, जबकि कुछ मामलों में तो शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर मुक़दमे चलाने के लिये, सैन्य अदालतों का भी प्रयोग किया गया है.

विशेष रैपोर्टेयर क्लेमेण्ट वॉले ने आगाह किया है कि यह तरीक़ा अपनाए जाने के परिणामस्वरूप हिंसा व तनावों और मानवाधिकार हनन में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के सन्दर्भ में दण्ड मुक्ति की भावना में भी बढ़ोत्तरी देखी गई है.

महिलाओं का उत्पीड़न

उन्होंने कहा कि प्रदर्शनों की पुलिसिंग में सैन्य तरीक़े अपनाए जाने में विशेष रूप से, महिला प्रदर्शनकारियों को प्रताड़ित किया जाता है, जिन्हें अक्सर ख़ामोश करने के एक हथियार के रूप में, यौन दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है.

रिपोर्ट में संकटपूर्ण परिस्थितियों में होने वाले शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों की प्रतिक्रिया स्वरूप व्यथित करने वाले रुझानों को भी रेखांकित किया गया है, जिनमें प्रदर्शन आन्दोलनों को बड़े पैमाने पर कलंकित किया जाना भी शामिल है. 

“देशों की सरकारें, प्रदर्शनों को, स्थिरता के लिये जोखिम और संकट शुरू होने के कारकों के रूप में प्रस्तुत करती हैं. तत्पश्चात इन दलीलों को प्रदर्शन आन्दोलनों का दमन करने के लिये प्रयोग किया जाता है.”

जान से मारने के लिये गोली का प्रयोग

विशेष रैपोर्टेयर क्लेमेण्ट वॉले ने कहा कि सरकारी अधिकारी, प्रदर्शनों के प्रतिक्रिया स्वरूप, जान से मारने के लिये गोली चलाने के सपाट आदेश जारी कर रहे हैं. 

प्रदर्शनकारियों को गम्भीर चोटें पहुँचाने या उनकी मौत तक के लिये, कुछ कम घातक हथियारों का भी दुरुपयोग किया गया है. ये हनन तुरन्त रोके जाने होंगे और देशों को, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के लिये अनुकूल हालात बनाने होंगे.

उन्होंने देशों से यह सुनिश्चित करने का आहवान किया कि लोगों को, केवल शान्तिपूर्ण सभा करने की अपनी बुनियादी स्वतंत्रता का प्रयोग करने के लिये, उन पर मुक़दमा ना चलाया जाए, उनकी अवैध गिरफ़्तारी ना हो, उनका आपराधिकारण ना हो, उनका उत्पीड़न ना हो, उन्हें जान से ना मारा जाए या उन्हें कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया जाए.

विशेष रैपोर्टेयर क्लेमेण्ट वॉले ने कहा कि देशों की सरकारों द्वारा, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाने के लिये, दीर्घकालीन और दमनकारी पाबन्दियाँ लागू करना, एक सामान्य बात हो गई है, जोकि कोविड-19 महामारी के दौरान और भी ज़्यादा बढ़ी हैं.

उन्होंने घोषणात्मक अन्दाज़ में कहा, “आपातकाल लागू करने से, देशों को मानवाधिकार हनन करने के लिये खुली छूट नहीं मिल जाती है.”

मानवाधिकार ज़िम्मेदारियाँ

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ का कहना है कि देश चाहे जैसी भी संकटपूर्ण स्थित का सामना कर रहे हों, यहाँ तक कि आपातकाल या युद्ध की स्थिति में भी, वो अपनी मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों से बंधे हैं. जहाँ शान्तिपूर्ण एकत्र होने के अधिकार का पूर्ण आनन्द लिया जाता है, शान्तिपूर्ण, लोकतांत्रिक, अधिकारों का सम्मान करने वाले समाज, फलते -फूलते हैं.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी का सामना करने के लिये, देशों ने जो आपात उपाय किये हैं, उनके कारण, सरकारी प्रतिबन्धों की एक और परत जुड़ गई है.

उन्होंने कहा, “आम लोग, संकटपूर्ण स्थितियों का अपने जीवन पर जिस प्रभाव का सामना करते हैं, उसके बारे में अपनी शिकायतों की अभिव्यक्ति प्रदर्शनों के माध्यम से करते हैं. प्रदर्शन करना उनके बुनियादी अधिकारों का प्रयोग है.”

प्रदर्शनकारियों की बात सुनें

विशेष रैपोर्टेयर क्लेमेण्ट वॉले ने तमाम देशों से आग्रह किया कि वो प्रदर्शनकारियों के साथ बीतचीत करें, उनकी चिन्ताएँ सुनें और संकटों के मूल कारणों के समाधान निकालें.

उन्होंने कहा कि देशों की सरकारें, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के लिये अनुकूल माहौल बनाकर और उनकी वैध मांगों के बारे में सुनकर, ज़्यादा ज़िम्मेदार व न्यायसंगत नीतियाँ अपना सकते हैं, जिनसे संकटों का हल निकलने की ज़्यादा सम्भावना होगी.

यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेष रैपोर्टेयर, स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं, जिसके तहत किसी विशेष देश के मुद्दों या स्थितियों पर ध्यान दिया जाता है.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है. वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.