श्रीलंका: 17 लाख लोगों की सहायता के लिये, साढ़े चार करोड़ डॉलर की अपील
श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय और साझीदार संगठनों ने देश में आर्थिक संकट के कारण उपजी मानवीय राहत आवश्यकताओं की पृष्ठभूमि में गुरूवार को, एक साझा योजना पेश की है, जिसमें सर्वाधिक प्रभावित 17 लाख लोगों तक जीवनरक्षक सहायता पहुँचाने के लिये, चार करोड़ 72 लाख डॉलर की धनराशि जुटाने की पुकार लगाई गई है.
बताया गया है कि इस रक़म के ज़रिये इस साल जून से सितम्बर तक, चार महीनों के दौरान ज़रूरतमन्दों तक मदद पहुँचाने की योजना है.
United Nations in #SriLanka and non-governmental organisations launched a joint Humanitarian Needs and Priorities Plan, calling for US$47.2 million to provide assistance to 1.7 million people worst affected by #EconomicCrisisLK. https://t.co/S9JSvjlPj3 pic.twitter.com/UntakkI9NN
UNSriLanka
इससे पहले, श्रीलंका की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से अन्तरराष्ट्रीय सहायता का निवेदन किया था, ताकि हाल के दिनों में देश में संकट की वजह से उपजी राहत आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके.
इस क्रम में स्वास्थ्य देखभाल, अति-आवश्यक दवाओं, भोजन, कृषि, सुरक्षित पेयजल, आपात आजीविका व संरक्षण पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना होगा.
श्रीलंका में, वित्तीय घाटों, वर्ष 2019 में पेश किये गए कर (टैक्स) में कटौती के पैकेज, और कोविड-19 महामारी समेत अन्य चुनौतियों के कारण, सार्वजनिक क़र्ज़ का भार विशाल स्तर पर है. पर्यटन उद्योग ठप होने से विदेशी मुद्रा प्राप्ति में भी तेज़ गिरावट आई है.
इस वर्ष की शुरुआत में भोजन व ऊर्जा क़ीमतों में दर्ज किया गया व्यवधान, यूक्रेन संकट के कारण और अधिक गहरा हुआ है.
गुरूवार को जो योजना प्रस्तुत की गई है, उनमें उन 17 लाख लोगों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिनकी आजीविका, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता पर सबसे अधिक जोखिम है और जिन्हें तत्काल समर्थन की आवश्यकता है.
श्रीलंका में यूएन की रैज़ीडेण्ट कोऑर्डिनेटर हैना सिंगर-हामदी ने कहा, “श्रीलंका में विविध प्रकार के कारक खाद्य सुरक्षा हालात को प्रभावित कर रहे हैं; अगर हमने अभी कार्रवाई नहीं की, तो अनेक परिवार अपनी बुनियादी खाद्य ज़रूरतों को पूरा कर पाने में असमर्थ होंगे.”
यूएन की शीर्ष अधिकारी ने देश में मानवीय संकट टालने के लिये तत्काल प्रयासों पर ज़ोर देते हुए विकास की दिशा में सामाजिक-आर्थिक उपाय लागू करने का आग्रह किया है.
“एक समय श्रीलंका की मज़बूत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर अब जोखिम है, आजीविकाएँ पीड़ा में हैं और सर्वाधिक निर्बलों पर सबसे अधिक असर हो रहा है.”
“यह समय अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिये श्रीलंका की जनता के साथ एकजुटता व्यक्त करने का है.”
संकट में घिरा देश
एक समय ऊपरी-मध्य आय श्रेणी में आने वाला देश, श्रीलंका, स्वतंत्रता के बाद से अपने सबसे ख़राब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है.
मई महीने में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति 57 प्रतिशत से अधिक थी और देश में महत्वपूर्ण खाद्य सामग्री की क़िल्लत है.
इसके अलावा भोजन पकाने, परिवहन और उद्योग के लिये ईंधन की उपलब्धता भी प्रभावित हुई है और देश में बिजली आपूर्ति में व्यवधान भी जारी है.
यूएन के अनुसार उत्पादन के लिये ज़रूरी मूलभूत वस्तुओं की अनुपलब्धता के कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तेज़ी से सिकुड़ सकती है.
मार्च 2022 के बाद से देश की मुद्रा में 80 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, विदेशी मुद्रा भण्डार की कमी है और सरकार, अन्तरराष्ट्रीय क़र्ज़ दायित्वों को पूरा करने में विफल रही है.
आर्थिक संकट के कारण खाद्य सुरक्षा, कृषि, आजीविका, और स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता पर विशेष रूप से असर हुआ है. वर्ष 2021 की तुलना में पैदावार 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हुई है और फ़िलहाल बीजों, उर्वरक, ईंधन व क़र्ज़ की कमी महसूस की जा रही है.
ज़रूरतमन्दों की बड़ी संख्या
एक अनुमान के अनुसार, देश में क़रीब 50 लाख लोगों, यानि 22 फ़ीसदी आबादी को, खाद्य सहायता की आवश्यकता है.
नवीनतम सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि 86 फ़ीसदी घर-परिवारों को गुज़र-बसर के लिये कम से कम एक क़दम उठाने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है, जैसेकि भोजन सेवन में कमी लाना या फिर किसी समय की भोजन ख़ुराक छोड़ देना.
देश में लगभग 200 अति-आवश्यक दवाओं का भण्डार नहीं हैं और अगले दो से तीन महीनों में अन्य 163 महत्वपूर्ण दवाओं की क़िल्लत होने की सम्भावना है.
बिजली आपूर्ति ठप होने और जैनरेटर चलाने के लिये ईंधन के अभाव के कारण, अनेक अस्पतालों के पास नियमित सर्जरी या ग़ैर-ज़रूरी सर्जरी टालने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र और मानवीय राहत साझीदार संगठनों ने दानदाताओं, निजी क्षेत्र और व्यक्तियों से प्रस्तावित योजना को तुरन्त समर्थन देने की पुकार लगाई है.
इसका उद्देश्य महिलाओं, बच्चों और पुरुषों के लिये जीवनरक्षक सहायता पहुँचाना और देश में मानवीय आवश्यकताओं की स्थिति को बद से बदतर होने से बचाना है.