विकलांग जन के लिये मासिक धर्म स्वास्थ्य व स्वच्छता पर समावेशी कार्रवाई की दरकार

विकलांग जन के लिये मासिक धर्म स्वास्थ्य व स्वच्छता पर समावेशी कार्रवाई की दरकार
भारत में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ((UNFPA) ने मासिक धर्म स्वास्थ्य व स्वच्छता पर समावेशी कार्रवाई पर, वाटर एड इण्डिया (जल सेवा चैरिटेबल संस्थान) के सहयोग से एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में, विकलांगों व उनकी देखभाल करने वाले लोगों के लिये मासिक धर्म सम्बन्धी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता में सुधार के समाधान लागू करने की रूपरेखा दी गई है.
भारत में, पिछले एक दशक में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रबन्धन में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है.
मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रबन्धन के बारे में जागरूकता बढ़ाना, महिलाओं के अनुकूल/लिंग उपयुक्त स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच में वृद्धि और सैनिटरी पैड जैसे मासिक धर्म उत्पादों की उपलब्धता, इसके कुछ उदाहरण हैं.
लेकिन, अब भी कुछ समूह हैं जो इस दायरे में आने से वंचित रह गए हैं, इनमें विशेषकर, विकलांग लड़कियाँ व महिलाएँ शामिल हैं, जो लिंग-भेद और विकलांगता के दोहरे बोझ का सामना करती हैं.
'Menstrual Health & Hygiene Management for Persons with Disability' outlines the key challenges & constraints faced by #PwDs with regard to menstrual health & hygiene, & presents simple & potentially scalable solutions.🔗https://t.co/Gut2X18mwkhttps://t.co/0CMZzO40tu#MHDay pic.twitter.com/LVp7BLGtz3
UNFPAIndia
‘Menstrual Health and Hygiene Management for Persons with Disability’ नामक इस रिपोर्ट की लेखिकाओं में से एक, वॉटर एड की अंजलि सिंघानिया कहती हैं, “विकलांग गण, एक विषम समूह है, वो शहरी, ग्रामीण और यहाँ तक कि सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय आधार पर अलग-अलग वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं."
"वॉटर एड संस्थान ने भारत में यूएनएफ़पीए के सहयोग से, इसी को ध्यान में रखते हुए, मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिये अच्छी प्रथाओं और अन्तर्दृष्टि पर प्रमुख रिपोर्ट तैयार की है.”
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 2 करोड़ 70 लाख लोग यानि भारतीय जनसंख्या का 2.2% हिस्सा विकलांग हैं. हालाँकि समावेशी शिक्षा और रोज़गार सुगम बनाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन फिर भी इस आबादी के स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकारों को नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है.
सम्वेदनशीलता
विकलांगों की प्रजनन शरीर रचना और क्षमताओं के बारे में अन्तर्निहित पूर्वाग्रहों और ग़लत धारणाओं के परिणामस्वरूप उन्हें अलैंगिक, विवाह के लिये अनुपयुक्त और बच्चे पैदा करने व पालने में असमर्थ माना जाता है.
इन सामाजिक व शारीरिक बाधाओं के कारण, उन्हें यौन व प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) की जानकारी एवं सेवाओं तक पहुँच हासिल नहीं होती.
इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं - विकलांग महिलाओं और लड़कियों के शारीरिक और यौन शोषण का शिकार होने की सम्भावना तीन गुना अधिक होती है (यूएनएफ़पीए, 2013).
सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों और मानवीय संकटों के दौरान ग़रीब लड़कियों और विकलामग महिलाओं को ख़राब स्वास्थ्य के जोखिम का सामना करना पड़ता है.
कोविड-19 के शुरुआती दिनों में विकलामग महिलाओं, ग़ार-बाइनरी व ट्रांसजेण्डर व्यक्तियों के साथ एक सर्वेक्षण ने, हाशिये पर धकेले इस समूह के बीच इस डर को उजागर किया कि सेवाओं तक उनकी पहले से ही सीमित पहुँच से, महामारी के कारण और समझौता किया जाएगा. इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिंग और अक्षमताओं पर ध्यान देने के लिये आपातकालीन कार्रवाई का आहवान किया गया था.
भारत में यूएनएफ़पीए की प्रतिनिधि,एण्ड्रिया वोजनार कहती हैं, “मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, चाहे उसकी लिंग पहचान, क्षमता या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो. हालाँकि भारत में, मासिक धर्म स्वास्थ्य को लेकर कलंक व पूर्वाग्रहों को दूर करने और स्वच्छता उत्पादों तक पहुँच बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है – लेकिन यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि कोई भी पीछे न छूट जाए. आइये, अपनी आकांक्षा का विस्तार करें और कोशिश करें कि सक्षम हो या अलग-तरह से सक्षम, मासिक धर्म से गुज़रने वाले सभी व्यक्ति, साल के बारह महीने समान सम्मान और अधिकारों का आनन्द ले सकें.”
समाधानों की रूपरेखा
अंजलि सिंघानिया बताती हैं, “विकलांगों के लिये प्रबन्धन की रिपोर्ट में हमने यह प्रयास किया है कि मानसिक स्वास्थ्य और स्वच्छता की सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला में विकलांग सम्बन्धी चार क्षेत्रों को सम्बोधित करके, समाधान प्रदान किये जाएँ. इनमें से दृष्टिहीन, मूक व बधिर, और बौद्धिक एवं शारीरिक अक्षमता वाले लोगों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.”
रिपोर्ट में, विकलांग व्यक्तियों और उनकी देखभाल करने वाले लोगों के लिये मासिक धर्म स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताएँ और समाधान पेश किये गए हैं.
इनमें, विकलांगों के लिये अलग-अलग जरूरतों और कार्य क्षमताओं के अनुरूप, मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर सुलभ तरीक़े से सूचना, शिक्षा व संचार, मासिक धर्म उपयुक्त सामाजिक मानदण्ड स्थापित करना, उचित व सुरक्षित मासिक धर्म उत्पादों को बढ़ावा देना, व उनका स्वच्छ उपयोग, साथ ही, समावेशी जल, स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई (WASH) की सुविधाएँ प्रदान करना, समाधानों में शामिल है.
इसके अलावा, विकलांग जन की देखभाल करने वालों, परिवारों और संस्थानों को भी इन कार्यक्रमों में शामिल करने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया गया है.
विकलांगों के लिये मासिक धर्म स्वच्छता पर जारी इस रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि ख़ासतौर पर मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्रवाई सम्बन्धी सरकारी नीतियों में, विकलांगता समावेशी दृष्टिकोण शामिल करने और विकलांगता केन्द्रित कार्यक्रमों व योजनाओं को लागू करना अति आवश्यक है.
उत्कृष्ट प्रथाओं से सबक़
रिपोर्ट में कई उत्कृष्ट प्रथाओं का भी उल्लेख किया गया है, जो जानकारी को सुलभ बनाने में सहायक हो सकती हैं. उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र राज्य में ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड’, प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों और मासिक धर्म चक्र के बारे में जानकारी को सुलभ बनाने के लिये, दृष्टिहीन लोगों के लिये प्रजनन प्रणाली के 3D मॉडल का उपयोग करते हैं.
इसके अलावा Sanitation and Hygiene Fund (पूर्व WSSCC) नामक संस्था ने सक्षम ट्रस्ट के सहयोग से, भारतीय सांकेतिक भाषा में मासिक धर्म पर शिक्षा वीडियो विकसित किए, जिससे मूक व बधिर लोगों को लाभ पहुँचा. इसका ऑडियो प्रारूप, दृष्टिहीन लोगों के काम आता है.
वहीं समर्थयम नामक संस्था ने माता-पिता के लिये एक पुस्तिका तैयार की है, जिसमें चित्रों के माध्यम से, गम्भीर और बहु-विकलाँगता ग्रसित किशोरियों के लिये मासिक धर्म प्रबन्धन की शिक्षा दी गई है
‘तारशी’ का इन्टरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम (IVRS) उन लोगों के लिये महत्वपूर्ण संसाधन है, जिनकी शिक्षा या इण्टरनेट तक पहुँच नहीं है. Infoline नामक इस प्रणाली के ज़रिये, पहले से रिकॉर्डिड, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, एचआईवी, गर्भनिरोधक विकल्प, यौन व लिंग पहचान, हिंसा, सुरक्षा और आनंद से सम्बन्धित कई विषयों पर जानकारी दी जाती है.
वहीं, ‘रेड टॉक’ ऐप उन सभी के लाभ के लिये विकसित किया गया है जो विशेष रूप से किशोरावस्था व मासिक धर्म के बारे में जानकारी की तलाश में हैं. इसमें चित्रों के ज़रिये, कहानी सुनाते हुए, सरल तरीक़े से किशोरियों व उनके माता-पिताओं को, मासिक धर्म, स्वच्छता प्रथाओं, मिथकों के बारे में समझाया जाता है.