अफ़ग़ान प्रशासन से गम्भीर मानवाधिकार चुनौतियों से निपटने का आग्रह

अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ रिचर्ड बैनेट ने देश में मानवाधिकारों के लिये उत्पन्न गम्भीर चुनौतियों और आर्थिक व मानवीय संकट पर चिन्ता व्यक्त की है. उन्होंने तालेबान प्रशासन से कथनी और करनी के बीच की दूरी ख़त्म करके, एक ऐसा रास्ता अपनाने का आग्रह किया है जिससे महिलाओं व लड़कियों समेत सभी अफ़ग़ान नागरिकों के लिये स्थिरता व स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके.
विशेष रैपोर्टेयर रिचर्ड बैनेट ने गुरूवार को अपने 11 दिवसीय दौरे के समापन पर अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरूवार को पत्रकारों से बातचीत की.
#Afghanistan🇦🇫 is at a crossroads facing critical #HumanRights challenges-UN expert Richard Bennett.“Either the society will become more stable & a place where every Afghan enjoys freedom & human rights, or it will become increasingly restrictive.” 👉 https://t.co/wReKAcxyW0 pic.twitter.com/yfY8glPcPM
UN_SPExperts
यूएन विशेषज्ञ ने आम लोगों के उत्पीड़न, डराए-धमकाए जाने, हमलों, गिरफ़्तारियों, और अपना दायित्व निभा रहे पत्रकारों, अभियोजकों व न्यायधीशों या शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्र होने के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे लोगों के गुमशुदा होने की घटनाओं पर चिन्ता जताई.
“अफ़ग़ानिस्तान को अनेकानेक मानवाधिकार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका आबादी पर गम्भीर प्रभाव हो रहा है.”
रिचर्ड बैनेट के अनुसार स्थानीय प्रशसन मौजूदा समस्याओं की विकरालता और दुर्व्यवहारों की गम्भीरता को स्वीकार करने, उनसे निपटने की ज़िम्मेदारी निभाने और सम्पूर्ण आबादी की रक्षा में विफल रहा है.
विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, तालेबान प्रशासन की नीतियाँ और पूर्ण नियंत्रण की मंशा से उठाए जा रहे क़दमों से, मानवाधिकारों पर बुरा असर हुआ है और समाज भय के साए में जीने के लिये मजबूर हो रहा है.
“तालेबान एक दोराहे पर खड़ा है. या तो समाज पहले से अधिक स्थिर और ऐसा स्थान बनेगा जहाँ हर अफ़ग़ान अपनी स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का इस्तेमाल करे, या फिर यहाँ पाबन्दियाँ बढ़ती जाएंगी.”
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कुन्दूज़, काबुल, और बाल्ख़ प्रान्त में धार्मिक स्थलों व स्कूलों पर हुए हमलों की जाँच कराए जाने की मांग की है.
उन्होंने क्षोभ व्यक्त किया कि हज़ारा, शिया व सूफ़ी समुदायों को निशाना बनाकर किये ये हमले, व्यवस्थागत रूप लेते जा रहे हैं और मानवता के विरुद्ध अपराधों का संकेत देते हैं.
उन्होंने तालेबान प्रशासन से मानवाधिकार चुनौतियों को स्वीकार करने और शब्दों व कृत्यों के बीच की दूरी को पाटने की मांग की है.
पिछले कुछ महीनों में, माध्यमिक स्कूलों में लड़कियों की शिक्षा को रोका गया है, रोज़गार के रास्ते में अवरोध खड़े किये गए हैं, राजनैतिक व सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का कोई अवसर नहीं है, और उनकी आवाजाही, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पाबन्दियाँ हैं.
महिलाओं को अपने किसी पुरुष पारिवारिक सदस्य के साथ ही घर से बाहर निकलने की अनुमति है, और उन्हें अपना चेहरा ढँकने और घर में ही रहने के लिये कहा गया है.
“महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से मिटा देने की ओर बढ़त, विशेष रूप से चिन्ताजनक है.”
यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि ये निर्देश अनेक मानवाधिकार सन्धियों के तहत, अफ़ग़ानिस्तान के लिये तय दायित्वों का उल्लंघन हैं. उन्होंने कहा कि इसके बावजूद, महिलाओं ने समाज में हर स्तर पर अपनी भागीदारी के संकल्प को प्रदर्शित किया है.
विशेष रैपोर्टेयर रिचर्ड बैनेट ने उन सभी नीतियों व निर्देशों को तत्काल वापिस लेने का आग्रह किया है, जिनसे महिलाओं पर नकात्मक असर होता है, और महिलाओं व लड़कियों के लिये शिक्षा, रोज़गार व सार्वजनिक जीवन के समान भागीदारी के अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी होगी.
उन्होंने कहा कि अगर माध्यमिक स्कूलों को लड़कियों के लिये तत्काल खोले जाने, अफ़ग़ान समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले समावेशी प्रशासन को आकार दिये जाने और शिक़ायतों के निवारण के लिये सम्वाद हेतु एक प्लैटफ़ॉर्म, ऐसे मानदण्डों को पूरा किया जाता है, तो देश में अस्थिरता और पीड़ा बढ़ने के जोखिम को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है.
विशेष रैपोर्टेयर ने अपनी यात्रा के दौरान, तालेबान नेताओं और नागरिक समाज के सदस्यों से मुलाक़ात की है, जिनमें महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार, अल्पसंख्यक, मानवाधिकार हनन मामलों के पीड़ित, विकलांगजन और न्यायिक अधिकारी हैं.
विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार देश के अनेक हिस्सों में सशस्त्र टकराव का अन्त हुआ है और सत्ता पर तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद हिंसक संघर्ष की वजह से हताहतों की संख्या में भी कमी आई है.
उन्होंने उम्मीद जताई कि अफ़ग़ानिस्तान की अग्रणी हस्तियों की वापसी के लिये हाल ही में स्थापित किये गए आयोग से सम्वाद का अवसर मिलेगा और शासन व्यवस्था को मज़बूती मिलेगी.
देश में मानवीय और आर्थिक संकट को ध्यान में रखते हुए, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, लैंगिक ज़रूरतों के अनुरूप हरसम्भव समर्थन जारी रखने की पुकार लगाई है.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने सचेत किया है कि प्रतिबन्धों को लागू किये जाने का असर, सर्वजन के लिये सुलभ अति-आवश्यक सेवाओं पर होने से रोका जाना होगा.
रिचर्ड बैनेट का मानना है कि पूर्व सरकार में अधिकारियों व सुरक्षा बलों के सदस्यों को आम माफ़ी दिया जाना, आपसी मेल-मिलाप की दिशा में पहला क़दम हो सकता है. मगर, न्यायेतर हत्याओं का जारी रहना, घर-घर तलाशी लिया जाना और पूर्व सरकारी अधिकारियों व सुरक्षा बल के सदस्यों से बदला लेने की भावना से की गई कार्रवाई की ख़बरें चिन्ताजनक हैं.
सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.
ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.