आम लोगों पर युद्ध के घातक परिणामों की 'गम्भीर वास्तविकता' पर सुरक्षा परिषद में चर्चा

संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए बताया कि संघर्ष में "व्यापक स्तर पर आम लोगों की मौत होना और घायल होना" जारी है, जिससे युद्ध के समय बमबारी का चपेट में आए लोगों की "गम्भीर वास्तविकता" उजागर होती है.
मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA) के समन्वय प्रभाग के निदेशक रमेश राजसिंघम ने सशस्त्र संघर्ष में आम लोगों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट पर, विभिन्न देशों के राजदूतों को जानकारी देते हुए कहा कि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में संघर्ष के कारण, आम लोगों की मौत व घायल होने का जोखिम "तेज़ी से" बढ़ता जा रहा है.
"जब आबादी वाले क्षेत्रों में विस्फोटक हथियारों का इस्तेमाल किया गया, तो हताहतों में लगभग 90 प्रतिशत आम नागरिक थे, जबकि अन्य क्षेत्रों में ये संख्या 10 प्रतिशत थी."
Today, @UN Security Council held its annual open debate on the protection of civilians in armed conflict, focused on the denial of humanitarian access in armed conflicts. Explore the protection for civilians #UNSCAD dashboard to learn more: https://t.co/ZLkchIsjCd pic.twitter.com/MtzJ8duhsu
UNDPPA
युद्ध, पानी, स्वच्छता, बिजली और स्वास्थ्य जैसी महत्वपूर्ण सेवाएँ बाधित करके महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नुक़सान पहुँचाता है व उन्हें नष्ट करता है. साथ ही शिक्षा भी ख़तरे में पड़ जाती है – और सैकड़ों-हज़ारों बच्चे शिक्षा से वंचित होकर, जबरन हथियारबन्द गुटों में भर्ती जैसे ख़तरों का सामना करते हैं.
उन्होंने कहा, "पिछले साल के पहले नौ महीनों में, अफ़गानिस्तान में 900 से अधिक स्कूल नष्ट हो गए, क्षतिग्रस्त हो गए या बन्द हो गए और विस्फोटकों के ख़तरे के कारण उन्हें दोबारा शुरू करना भी मुश्किल हो गया है."
संघर्ष के दौरान न केवल लड़ाई के कारण, बल्कि सुशासन की कमी और उपेक्षा के कारण भी प्राकृतिक पर्यावरण को नुक़सान पहुँचता है.
रमेश राजसिंघम ने कहा, "हम सभी हिंसा और विस्थापन के चक्र से पूर्णत: परिचित हैं, और वर्ष 2021 भी इसका अपवाद नहीं था. वर्ष के मध्य तक, संघर्ष व असुरक्षा के कारण 8 करोड़ 40 लाख लोग जबरन विस्थापित होने को मजबूर हो गए, जिनमें से लगभग 5 करोड़ 10 लाख आन्तरिक रूप से विस्थापित थे."
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने सप्ताहान्त में जानकारी दी कि यूक्रेन युद्ध और अन्य संघर्षों के कारण, पहली बार संघर्ष, हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन और उत्पीड़न से भागने के लिये मजबूर लोगों की संख्या 10 करोड़ तक पहुँच गई है.
जब आम लोग भागने को मजबूर होते हैं, तो वे अक्सर विकलांग लोगों को पीछे छोड़ देते हैं. फिर जिन्हें अक्सर घर छोड़कर भागना पड़ता है, उन्हें सहायता प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
संघर्ष से मानसिक स्वास्थ्य पर भी अहम प्रभाव पड़ता है.
मानवीय मामलों के उप प्रमुख ने कहा, "संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले पाँच में से एक से अधिक लोगों के अवसाद, चिन्ता व पीटीएसडी से पीड़ित होने का अनुमान है."
चिकित्सा कर्मियों, सुविधाओं, उपकरणों और परिवहन पर हमले जारी हैं, और संघर्ष करने वाले पक्ष, चिकित्सा देखभाल में बाधा डालते रहे हैं.
उन्होंने विस्तार से बताया, "इथियोपिया के उत्तरी हिस्से में, स्वास्थ्य सुविधाओं, उपकरणों और परिवहन पर हमला करके उन्हें लूट लिया गया, व अस्पतालों को सैन्य कार्रवाई के लिये इस्तेमाल किया गया."
महामारी ने मानव पीड़ा और बढ़ा दी है और स्वास्थ्य सेवाएँ कमज़ोर हो गई हैं.
रमेश राजसिंघम ने सुरक्षा परिषद को बताया, "लगभग तीन अरब लोग अब भी अपने पहले टीके की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनमें से अनेक लोग, संघर्ष के ऐसे हालात में जी रहे हैं, जहाँ स्वास्थ्य प्रणालियाँ कमज़ोर हैं और जनता का विश्वास कम होता जा रहा है."
साथ ही, संघर्ष में शामिल विभिन्न पक्षों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को नष्ट करके खाद्य असुरक्षा को बढ़ा दिया है, जिससे राहत कर्मियों को जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और आम लोग जीवन रक्षक सहायता से वंचित हो रहे हैं.
उप राहत प्रमुख ने बताया कि गैर-सरकारी सशस्त्र समूह, मानवीय पहुँच पर चल रही वार्ताओं को और जटिल बना रहे हैं, वहीं निजी सैन्य व सुरक्षा ठेकेदारों ने सहायता देने की पुरजोर कोशिश में लगे राहतकर्मियों के रास्ते में अनेक रोड़े खड़े कर दिये हैं.
इसके अलावा, प्रतिबन्धों और व्यापक आतंकवाद विरोधी उपायों के कारण भी मानवीय कार्यों के रास्ते में बाधा उत्पन्न हो रही है, वहीं ग़लत सूचना व दुष्प्रचार से विश्वास ख़त्म होता जा रहा है – जिससे मानवतावादियों के लिये जोखिम बढ़ता जा रहा है और उनका काम ख़तरे में पड़ गया हैं.
ओचा प्रमुख ने विस्तार से बताया, "जब मानवीय गतिविधियों का राजनीतिकरण किया जाता है, तो समुदाय से स्वीकृति मिलने में मुश्किल पैदा होती है. मानवीय कर्मचारियों को उनके कार्यों के दौरान धमकाने, गिरफ़्तार करने और हिरासत में लेने के अनेक मामले सामने आते हैं."
साल 2021 में संघर्ष से प्रभावित 14 देशों और क्षेत्रों में, मानवीय कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ 143 सुरक्षा सम्बन्धी घटनाएँ दर्ज की गईं, साथ ही 93 मानवीय कर्मियों की जान भी चली गई.
मारे गए, घायल या अपहृत लोगों में से 98 प्रतिशत उसी देश के कर्मचारी थे.
24 फ़रवरी से, OHCHR ने यूक्रेन में 8,089 हताहत नागरिकों की संख्या दर्ज की है, जिसमें 3,811 लोग मारे गए और 4,278 घायल हुए.
अस्पतालों, स्कूलों, घरों और आश्रयों पर हमले हुए हैं, एक करोड़ 20 लाख लोगों को अपने घरों से बेदख़ल किया गया है, और लाखों लोग, भोजन, पानी और बिजली से कटे हुए क्षेत्रों में फँसे हुए हैं.
उप राहत समन्वयक राजसिंघम ने कहा, "परमाणु संघर्ष की सम्भावना, जो कभी अकल्पनीय थी, अब सम्भावना नज़र आ रही है."
निर्यात पर युद्ध के असर की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर खाद्य, ईंधन और उर्वरक की क़ीमतें आसमान छूती जा रही हैं - अफ़्रीका और मध्य पूर्व में लोगों के प्रमुख खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है- "जिससे सबसे ग़रीब लोगों पर अत्यधिक मार पड़ी है... जिससे दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता व अशान्ति के बोए बीज बढ़ते जा रहे हैं."
रमेश राजसिंघम ने ज़ोर देकर कहा कि सभी देशों व अन्य पक्षों को अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून (IHL) का पालन करना चाहिये, जिसमें आबादी वाले क्षेत्रों में व्यापक क्षेत्र प्रभाव वाले विस्फोटक हथियारों के प्रयोग से बचना शामिल है.
उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण, सिद्धान्त, नीति और क़ानूनी ढाँचे में क़ानूनी सुरक्षा को एकीकृत करने की आवश्यकता पर भी बल दिया.
संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी ने निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा, "संघर्ष के सभी पक्षों और देशों को, युद्ध के नियमों का सम्मान करने के लिये अधिक राजनैतिक इच्छाशक्ति एवं प्रतिबद्धता जतानी चाहिये."
रेड क्रॉस (ICRC) की अन्तरराष्ट्रीय समिति के महानिदेशक, रॉबर्ट मार्दिनी ने सभी देशों के राजदूतों को याद दिलाया कि IHL के सम्मान के लिये, राष्ट्रों और संघर्षरत दलों के साथ जवाबदेही और रचनात्मक बातचीत की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि मानवीय सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिये.
उन्होंने याद दिलाया कि ICRC, नागरिकों की दुर्दशा पर साल-दर-साल सुरक्षा परिषद को जानकारी देता रहा है, साथ ही ये तर्क भी दिया कि आबादी वाले क्षेत्रों में सभी सैन्य अभियानों की योजना और संचालन में, नागरिकों की सुरक्षा को रणनैतिक प्राथमिकता बनाया जाना चाहिये, जिसमें भारी विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल से बचना भी शामिल हो."
अन्तरराष्ट्रीय बचाव समिति (International Rescue Committee) के अध्यक्ष और पूर्व ब्रिटिश विदेश मत्री डेविड मिलिबैण्ड ने ज़ोर देकर कहा कि प्रारम्भिक चेतावनी तंत्र पर "धूल इकट्ठा" नहीं होने देनी चाहिये.
महासभा को अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के उल्लंघन पर सबूत इकट्ठा करने हेतु स्वतंत्र तंत्र स्थापित करने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा, "इस परिषद के साथ-साथ, जिन संघर्षरत क्षेत्रों में हम काम करते हैं, वहाँ बाधाएँ नज़र आती हैं. लेकिन इन गतिरोधों को तोड़ने के लिये भी, हम व्यापक अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की ओर ही देखते हैं. ”
डेविड मिलिबैण्ड ने "राहत कार्यों का गला घोंटने और उसे हथियार की तरह इस्तेमाल करने" से रोकने के लिये "नई ताक़त" और मौजूदा अधिकार बनाए रखने के लिये, अधिक दृढ़ संकल्प की आवश्यकता को भी ज़रूरी माना.
बैठक की पूरी कार्यवाही देखने के लिये यहाँ क्लिक करें.