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'सम्पन्न देशों में संसाधनों की अति-खपत', बच्चों के स्वास्थ्य पर जोखिम 

दक्षिण सूडान में जूबा के निकट नील नदी में बाढ़ में, एक लड़की स्कूल से घर वापसी के रास्ते पर नदी पार करते हुए.
© UNICEF/Bullen Chol
दक्षिण सूडान में जूबा के निकट नील नदी में बाढ़ में, एक लड़की स्कूल से घर वापसी के रास्ते पर नदी पार करते हुए.

'सम्पन्न देशों में संसाधनों की अति-खपत', बच्चों के स्वास्थ्य पर जोखिम 

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि अधिकांश सम्पन्न देशों में संसाधनों का उपभोग अधिक होने से, विश्व भर में बच्चों के लिये अस्वस्थ, ख़तरनाक व हानिकारक परिस्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं. यूनीसेफ़ ने बच्चों के स्वास्थ्य व पर्यावरण की रक्षा व उनके लिये बेहतर माहौल सुनिश्चित करने के लिये सुझाव प्रस्तुत किये हैं. 

यूनीसेफ़ के शोध कार्यालय की नवीनतम रिपोर्ट ‘Innocenti Report Card 17: Places and Spaces’ में, बच्चों के लिये स्वस्थ पर्यावरण के विषय में, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) और योरोपीय संघ के 39 देशों में हालात का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है.

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अध्ययन के अनुसार, यदि विश्व में हर एक व्यक्ति OECD समूह और योरोपीय देशों की दर से संसाधनों की खपत करे, तो उपभोग का मौजूदा स्तर बनाए रखने के लिये 3.3 पृथ्वी जैसे तीन ग्रहों की ज़रूरत होगी. 

मगर, यदि यह खपत कैनेडा, लक्ज़मबर्ग और अमेरिका में मौजूदा जीवन शैली के स्तर पर की जाती है, तो कम से कम पाँच पृथ्वियों की आवश्यकता होगी.  

यूनीसेफ़ शोध कार्यालय की निदेशक गुनीला ओलस्सन ने बताया कि, “अधिकांश धनी देश ना सिर्फ़ अपनी सीमाओं के भीतर बच्चों के लिये स्वस्थ माहौल प्रदान करने में विफल हो रहे हैं, बल्कि वे दुनिया के अन्य हिस्सों में, बच्चों के पर्यावरण को तबाह करने में भी योगदान दे रहे हैं.” 

वैश्विक पर्यावरण पर प्रभाव

यह रिपोर्ट तैयार करने के लिये, ज़हरीली हवा, कीटनाशक, सीसा; प्रकाश, हरित स्थलों जैसे नुक़सानदेह प्रदूषकों और सुरक्षित मार्गों की सुलभता; जलवायु संकट में देशों का योगदान; संसाधनों की खपत और ई-कचरे जैसे संकेतकों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है. 

इसके अनुसार, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कैनेडा और अमेरिका समेत अन्य अति-सम्पन्न देशों का, वैश्विक पर्यावरण पर गम्भीर और व्यापक असर पड़ा है. इस प्रभाव को कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, ई-कचरा और प्रति व्यक्ति संसाधनों की खपत से आँका गया है.

साथ ही, ये देश अपनी सीमाओं के भीतर बच्चों के लिये स्वस्थ पर्यावरण के निर्माण की सूची में निचले स्थान पर हैं. इसके विपरीत, OECD समूह और योरोपीय संघ में सबसे कम सम्पन्न देशों का शेष जगत पर कहीं कम असर है. 

कुल मिलाकर, इस सूची में स्पेन, आयरलैण्ड और पुर्तगाल शीर्ष देशों में हैं, लेकिन OECD समूह और योरोपीय संघ के सभी देश, सभी संकेतकों पर बच्चों को स्वस्थ पर्यावरण दे पाने में विफल हो रहे हैं.

यूनीसेफ़ शोध कार्यालय निदेशक ने बताया कि कुछ देश अपने यहाँ बच्चों के लिये अपेक्षाकृत स्वस्थ पर्यावरण तो सुनिश्चित कर पाए हैं, लेकिन वो उन प्रदूषकों के लिये ज़िम्मेदार देशों की सूची में शीर्ष पर हैं, जिनसे विदेश में बच्चों के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. 

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष:

इस समूह के देशों में दो करोड़ से अधिक बच्चों के रक्त में सीसा की मात्रा अधिक पाई गई है, जोकि एक ख़तरनाक विषैला पदार्थ है.

फ़िनलैण्ड, आइसलैण्ड और नॉर्वे अपने यहाँ बच्चों को एक स्वस्थ माहौल प्रदान करने में शीर्ष स्थान पर हैं, मगर उत्सर्जन की ऊँची दर, ई-कचरे और खपत के विषय में दुनिया में वे निचले स्थान पर हैं.

बड़ी संख्या में बच्चे अपने घरों में और बाहर, विषैली हवा में साँस ले रहे हैं.

वायु प्रदूषण के कारण, स्वस्थ जीवन के वर्षों को खो देने में मैक्सिको सबसे ऊपर है, जहाँ प्रति हज़ार बच्चों में 3.7 वर्ष का नुक़सान होता है. जबकि फ़िनलैण्ड और जापान के लिये यह आँकड़ा बेहद कम, 0.2 वर्ष है.   

जर्मनी के कोलोन शहर में एक ऊर्जा संयंत्र से उत्सर्जन.
© Unsplash/Paul Gilmore
जर्मनी के कोलोन शहर में एक ऊर्जा संयंत्र से उत्सर्जन.

बेल्जियम, चैक गणराज्य, इसराइल, नैदरलैण्ड्स, पोलैण्ड और स्विट्ज़रलैण्ड में हर 12 में से एक से अधिक बच्चा, ज़्यादा कीटनाशक प्रदूषण की चपेट में हैं. इसे कैंसर समेत अन्य बीमारियों की वजहों से जोड़ कर देखा जाता है. 

यूनीसेफ़ ने बच्चों के लिये स्वस्थ माहौल के निर्माण हेतु देशों की सरकारों से अहम उपाय अपनाने का आग्रह किया है. 

बेहतरी के लिये सुझाव

इस क्रम में, कचरे, वायु व जल प्रदूषण में कमी लाना और उच्च-गुणवत्ता वाली आवासीय व्यवस्था सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा. 

सबसे निर्बल बच्चों के रहन-सहन के लिये बेहतर परिस्थितियों के निर्माण पर बल दिया गया है. विशेषज्ञों के अनुसार, धनी परिवारों की तुलना में निर्धन परिवारों के बच्चों के पर्यावरणीय हानि की चपेट में आने का जोखिम अधिक होता है.

इसके अलावा, पर्यावरणीय नीतियाँ तैयार करते समय बाल ज़रूरतों का ध्यान रखे जाने, अभिभावकों व राजनेताओं के परिप्रेक्ष्य को सुनने और भावी पीढ़ियों को प्रभावित करने वाली नीतियों में उनके सुझावों को समाहित किया जाना होगा.

रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों को भविष्य के मुख्य हितधारक के रूप में इन प्रक्रियाओं में शामिल किया जाना होगा, जिन्हें लम्बे समय तक मौजूदा पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है.

देशों और व्यवसायों से वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती लाने के संकल्प पूरे करने का आग्रह किया है. साथ ही, शिक्षा से लेकर बुनियादी ढाँचे तक, अनुकूलन को जलवायु कार्रवाई के केन्द्र में रखा जाना होगा.