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आपबीती: आधुनिक मधुमक्खी पालन का मधु स्वाद

हेती में एक मधुमक्खी पालक
UN Haiti/Daniel Dickinson
हेती में एक मधुमक्खी पालक

आपबीती: आधुनिक मधुमक्खी पालन का मधु स्वाद

आर्थिक विकास

हेती के दक्षिणी कम्यून (क्षेत्र) बॉनबॉन में मधुमक्खी पालक, एक ऐसे इलाक़े में शहद के इर्द-गिर्द धूम मचा रहे हैं जो वर्ष 2021 में आए भूकम्प से उबरने की कोशिश कर रहा है.

इलैरियॉन सेलेस्टिन को शहद उत्पादन में, आधुनिक तरीक़े अपनाने की एक परियोजना के तहत, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) और हेती के पर्यावरण मंत्रालय ने मदद मुहैया कराई है. इलैरियॉन सेलेस्टिन ने हर वर्ष 20 मई को मनाए जाने वाले विश्व मधुमक्खी दिवस के अवसर पर, यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत की...

“मैं एक परम्परागत मधुमक्खी पालक हुआ करता था. मेरी मधुमक्खियाँ एक पेड़ के तने में बनी ख़ाली जगह में शहद बनाया करती थीं, मगर फिर खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने मुझे मधुमक्खी पालन के आधुनिक तरीक़ों का रास्ता दिखाया जिनमें तकनीकी परीक्षण के साथ-साथ तमाम उपकरण भी मुहैया कराए गए. इनमें 18 छत्ते भी शामिल थे, मुझे एक पेशेवेर मधुमक्खी पालक बनना था.

हमने सीखा कि उचित तरीक़े से मधुमक्खियों की देखभाल कैसे की जाती है और अब वो ज़्यादा स्वस्थ हैं, पहले से ज़्यादा शहद बनाती हैं, और हमारा उत्पादन यानि पदार्थ ज़्यादा स्वच्छ भी है.

मुझे शहद बहुत भाता है, इसका स्वाद बहुत अच्छा होता है और ये प्रोटीन में समृद्ध होने के साथ-साथ, इसकी औषधि अहमियत भी है. मेरी मधुमक्खियाँ चार भिन्न क़िस्मों का शहद बनाती हैं; उनमें मुझे सफ़ेद रंग का शहद सबसे ज़्यादा पसन्द है जो मोरिंगा (सहजन) पेड़ के फूलों से बनता है.

मधुमक्खियाँ करती हैं कड़ी मेहनत

मधुमक्खी पालन में आधुनिक तरीक़े व तकनीक अपनाने से, हेती के इलैरियॉन सेलेस्टिन का शहद उत्पादन, एक साल में 270 गैलन तक पहुँच गया है.
UN Haiti/Daniel Dickinson
मधुमक्खी पालन में आधुनिक तरीक़े व तकनीक अपनाने से, हेती के इलैरियॉन सेलेस्टिन का शहद उत्पादन, एक साल में 270 गैलन तक पहुँच गया है.

ये कोई बहुत कठिन काम नहीं है, मैं हर एक छत्ते को महीने में दो बार देखता हूँ और साल में तीन बार शहद निकालता हूँ. ये तो मधुमक्खियाँ हैं जो कड़ी मेहनत करती हैं.

जब मैं परम्परागत शैली में मधुमक्खी पालन किया करता था तो शहद की उपज एक साल में दो गैलन हुआ करती थी, मगर अब मेरी कुल उपज बढ़कर 270 गैलन तक पहुँच गई है, और इसके परिणामस्वरूप मेरी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गई है. 

मुझे काफ़ी बड़ी रक़म की आमदनी होती है. एक गैलन शहद की बिक्री क़रीब 50 डॉलर में होती है, इस तरह ये अच्छा कारोबार है. FAO ने हमें बताया है कि शहद की काफ़ी बड़ी मांग है और हो सकता है कि भविष्य में मेरा शहद विदेशों को भी निर्यात किया जाने लगे. अभी तो मैं ये शहद स्थानीय स्तर पर और राजधानी पोर्ट ओ प्रिंस में ही बेचता हूँ.

अब मैं अपने बच्चों को शिक्षा के लिये स्कूल भेजने और अपना घर बनाने में सक्षम हूँ, और मैंने एक गाय भी ख़रीद ली है.

अब और भी ज़्यादा लोग मधुमक्खी पालक बनने में रुचि ले रहे हैं, विशेष रूप में अगस्त 2021 में आए भूकम्प के बाद. FAO ने मुझे, अन्य स्थानीय लोगों को यह काम सिखाने के लिये प्रशिक्षित किया है और वो लोग मेरे खेतों में ये देखने के लिये आते हैं कि मैं अपना कारोबार किस तरह चलाता हूँ, इसलिये मैं अनेक प्रशिक्षण सत्रों का नेतृत्व करता हूँ, और मुझे अपना ज्ञान व अनुभव अन्य लोगों के साथ बाँटने में अच्छा महसूस होता है. अब लगभग 60 मधुमक्खी पालक, इस इलाक़े में शहद उत्पादन करते हैं.

ये मधुमक्खी पालक भली-भाँति जानते हैं कि कोई भूकम्प भी, मधुमक्खियों के शहद बनाने के काम में बाधा नहीं डाल सकता, अलबत्ता मेरे संगठन में कुछ किसानों को उस समय कुछ मधुमक्खियों का नुक़सान उठाना पड़ा था जब उनके छत्ते, अगस्त 2021 में आए भूकम्प में गिर गए थे, और भूस्खलन का भय भी है. मगर कुल मिलाकर, भविष्य के लिये ये, एक अच्छा कारोबार है.

हेती में किसान लोग, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपड़ करके, जंगलों का विस्तार कर रहे हैं.
WFP Haiti/Theresa Piorr
हेती में किसान लोग, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपड़ करके, जंगलों का विस्तार कर रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन चुनौती

हमारे सामने जो मुख्य चुनौती है – वो है जलवायु परिवर्तन. जब सूखा पड़ता है तो पेड़ों पर अच्छी तरह से फूल नहीं उगते हैं, और चूँकि पानी कम होता है तो मधुमक्कियों को फूलों का रस चूसने और पानी पीने के लिये, ज़्यादा लम्बी यात्रा करनी पड़ती है, जिसका मतलब है कि वो कम शहद बनाती हैं.

इसलिये, मैं पेड़ लगाने की शुरुआत करने के साथ-साथ, ये सुनिश्चित करने की भी कोशिश कर रहा हूँ कि समुचित मात्रा में पानी उपलब्ध हो. इस तरह, मैं स्थानीय जंगलों की पुनर्बहाली में भी मदद कर रहा हूँ, जो मेरे समुदाय के लिये भी अच्छा है, क्योंकि ऐसी भूमि का क्षय कम होगा जिसका प्रयोग किसान अपनी फ़सलें उगाने के लिये करते हैं, और जैवविविधता में भी इज़ाफ़ा हो रहा है.

ये एक अच्छा काम है और बहुत टिकाऊ भी है और मैं अपने शहद पर गौर्वान्वित महसूस करता हूँ.”