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LGBTIQ+: अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर पुकार, समानता के लिये रास्ता अभी बहुत लम्बा

यूएन शरणार्थी एजेंसी - UNHCR के जिनीवा स्थित मुख्यालय में, होमोफ़ोबिया, ट्रांसफ़ोबिया और बाइफ़ोबियो के ख़िलाफ़ अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाते हुए.
© UNHCR/Susan Hopper
यूएन शरणार्थी एजेंसी - UNHCR के जिनीवा स्थित मुख्यालय में, होमोफ़ोबिया, ट्रांसफ़ोबिया और बाइफ़ोबियो के ख़िलाफ़ अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाते हुए.

LGBTIQ+: अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर पुकार, समानता के लिये रास्ता अभी बहुत लम्बा

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में, अनेक नेताओं ने मंगलवार को, होमोफ़ोबिया, बाइफ़ोबिया और ट्रांसफ़ोबिया के विरुद्ध अन्तरराष्ट्रीय दिवस (IDAHOBIT) मनाते हुए, एक ऐसी दुनिया के लिये पुकार लगाई है जहाँ, सभी लोग हिंसा और भेदभाव से मुक्त माहौल में जीवन जी सकें.

इस दिवस के दौरान विविधता का जश्न मनाया जाता है और लैस्बियन, समलैंगिक, बाइसैक्सुअल, ट्रांसजैण्डर, व इण्टरसैक्स (LGBTIQ+) लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाती है.

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अधिकार हनन जारी

यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने एक वक्तव्य जारी करके याद दिलाया है कि दुनिया भर में, LGBTIQ+ लोगों के मानवाधिकारों की ख़ातिर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत के फलस्वरूप, हाल के समय में, बहुत से सकारात्मक बदलावों के बावजूद, बड़े पैमाने पर अधिकार हनन, हत्याएँ, उत्पीड़न, यौन हिंसा, आपराधिकरण, और मनमाना बन्दीकरण अब भी जारी है.

संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, एक तिहाई से भी ज़्यादा देश, अब भी समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध मानते हैं. और LGBTIQ+ के लोगों को, जब ज़बरदस्ती चिकित्सा उपचार या ग़ैर-ज़रूरी सर्जरी कराने के लिये विवश किया जाता है तो, उन्हें क़ानूनी संरक्षण, अनिवार्य स्वास्थ्य देखभाल, सिविल व मानवाधिकार से वंचित रखा जाता है, जिनमें अपने शरीर की स्वायत्तता का अधिकार भी शामिल है. 

हमारे शरीर. हमारे जीवन. हमारे अधिकार.

इस वर्ष इस दिवस की थीम – हमारे शरीर. हमारे जीवन. हमारे अधिकार. का उद्देश्य ये याद दिलाना है कि हर किसी को, अपनी शारीरिक स्वायत्तता का प्रयोग करते हुए, अपनी पूर्ण क्षमता व सम्भावना की तलाश करने का पूरा अधिकार हासिल है, और इसी मान्यता के आधार पर, अन्य मानवाधिकार आधारित हैं.

यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने ज़ोर देकर कहा कि LGBTIQ+ लोग भी, अन्य लोगों की ही तरह अपनी गरिमा के लिये बराबर सम्मान, संरक्षण और अपने बुनियादी मानवाधिकारों की पूर्ति के हक़दार हैं.

मिशेल बाशेलेट ने, LGBTIQ+ समुदाय के मानवाधिकारों के लिये काम करने वाले पैरोकारों के लगातार उत्पीड़न, अभिव्यक्ति, संगठन बनाने और शान्तिपूर्ण सभाएँ करने की आज़ादी पर भेदभावपूर्ण पाबन्दियों और अनेक देशों में अनेक भेदभावपूर्ण उपाय अपनाए जाने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए, देशों से, इस समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा किये जाने के लिये, तत्काल ठोस उपाय करने का आग्रह किया है.

अपराधियों जैसा बर्ताव

महिला कल्याण के लिये काम करने वाले यूएन संगठन – यूएन वीमैन ने भी इस पुकार में अपनी आवाज़ मिलाई है और विविधतापूर्ण यौन प्राथमिकताओं, लैंगिक विविधताओं, लैंगिक अभिव्यक्तियों और यौन चारित्रिक भिन्नताओं वाले लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की है.

सशस्त्र संघर्षों और कोविड-19 महामारी, व जलवायु परिवर्तन के लगातार जारी प्रभावों ने, अन्यायों को और ज़्यादा भड़काया है.

यूएन वीमैन ने एक वक्तव्य में कहा है, “बीते एक वर्ष के दौरान, और ज़्यादा क़ानूनों व नीतियों के वजूद में आने से, लैंगिक विविधता को आपराधिकरण और कलंक के रूप में प्रस्तुत किया गया है.

LGBTIQ+ के लोग जोकि, निम्न आय वाले, युवा, विकलांग, काले, आदिवासी, और रंग जन हैं, उन्हें अपनी शारीरिक स्वायत्तता के लिये इस तरह के जोखिमों का सामना, अन्य तरह के भेदभाव के साथ करना पड़ता है और उन्हें हाशिये पर धकेला जाता है.”

नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, लगभग दो अरब लोग ऐसे माहौल में रहते हैं जहाँ LGBTIQ+ लोगों के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव किया जाता है.

होमोफ़ोबिया, ट्रांसफ़ोबिया और बाइफ़ोबिया के विरुद्ध अन्तरराष्ट्रीय दिवस (IDAHTB) अब, 130 से ज़्यादा देशों में मनाया जाता है.
© UNHCR/Susan Hopper
होमोफ़ोबिया, ट्रांसफ़ोबिया और बाइफ़ोबिया के विरुद्ध अन्तरराष्ट्रीय दिवस (IDAHTB) अब, 130 से ज़्यादा देशों में मनाया जाता है.

पलायन के लिये विवश

यूएन शरणार्थी एजेंसी – UNHCR के प्रमुख फ़िलिपो ग्रैण्डी ने भी इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर LGBTIQ+ समुदाय के सामने दरपेश ख़तरों को रेखांकित किया है, जबकि बहुत ज़्यादा देशों में अब भी समलैंगिक सम्बन्धों को अवैध माना जाता है.

शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने आगाह करते हुए कहा कि कुछ देशों में तो समलैंगिक जोड़ों को, मृत्युदण्ड का भी सामना करना पड़ता है, जबकि कुछ अन्य देशों में इस समुदाय के जिन लोगों को, आपराधिक समूहों, उनके अपने समुदायों, और यहाँ तक कि उनके अपने परिवारों से जब हिंसा के जोखिम का सामना करना पड़ता है, तो उन्हें रक्षा मुहैया नहीं कराई जाती है.

उन्होंने कहा, “इस वास्तविकता से दो-चार, LGBTIQ+ समुदाय के लोगों के सामने अपने स्थानों से भाग जाने के अलावा और कोइ विकल्प नहीं होता है.”

इन वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने, UN Free & Equal नामक एक नया विषयात्मक अभियान शुरू किया है जिसमें ऐसे परिवारों का जश्न मनाया जाता है जो अपने सदस्यों की लैंगिक प्राथमिकताओं और पहचान की परवाह किये बिना, उन्हें भरपूर समर्थन देते हैं.

इस अभियान में हर एक जन से, LGBTIQ+ समुदाय के लोगों के मानवाधिकारों की हिमायत में और समावेशी व हिमायती परिवारों की पूर्ण विविधता के साथ उनके समर्थन में खड़े होने की पुकार भी लगाई गई है.