यूक्रेन संकट: 48 लाख रोज़गार हानि की आशंका, ILO का नया विश्लेषण

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का एक नया विश्लेषण दर्शाता है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 48 लाख रोज़गार समाप्त हो जाने की आशंका है. यूएन एजेंसी के अनुसार, अगर ये टकराव और अधिक बढ़ता है, तो रोज़गार हानि का आँकड़ा 70 लाख तक पहुँच सकता है.
संगठन ने बुधवार को, The impact of the Ukraine crisis on the world of work: Initial assessments, प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार यदि युद्ध तत्काल रोका जाता है, तो इन परिस्थितियों से तेज़ी से उबरा जा सकता है.
The Ukrainian economy has been severely affected by Russian aggression. Since it began:➡️ Over 5.23M refugees have fled ➡️ Nearly 5M jobs have been lostHeinz Koller, @ilo Regional Director of Europe & Central Asia, presents our new brief takeaways ⤵️ https://t.co/xHDVWTaG1s pic.twitter.com/nFcD7Z8JqA
ilo
इससे 34 लाख रोज़गार फिर से बहाल कर पाना सम्भव होगा और रोज़गार हानि को 8.9 फ़ीसदी तक सीमित रखा जा सकता है.
24 फ़रवरी को रूसी आक्रमण के बाद से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है. 52 लाख से अधिक लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है, जिनमें अधिकतर महिलाएँ, बच्चे और 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति हैं.
कुल शरणार्थी आबादी में लगभग 27 लाख कामकाजी उम्र के हैं, और इनमें से 43 फ़ीसदी, यानि क़रीब 12 लाख या तो पहले काम कर रहे थे या फिर उन्होंने अपने रोज़गार खो या छोड़ दिये हैं.
यूक्रेन में सामान्य जीवन में भीषण व्यवधान के परिणामस्वरूप, देश की सरकार ने राष्ट्रीय सामाजिक संरक्षा प्रणाली को जारी रखने के लिये प्रयास किये हैं, जिसके तहत, प्राप्त होने वाले लाभ की अदायगी की गारण्टी दी गई है.
इनमें डिजिटल टैक्नॉलॉजी के उपयोग के ज़रिये आन्तरिक रूप से विस्थापित होने वाले लोगों को दिये जाने वाले लाभ भी हैं.
यूक्रेन में संकट से अन्य पड़ोसी देशों में भी श्रम बाज़ार में व्यवधान उत्पन्न हुआ है, मुख्य रूप से हंगरी, मोल्दोवा, पोलैण्ड, रोमानिया और स्लोवाकिया में.
संगठन का मानना है कि टकराव जारी रहने की स्थिति में, यूक्रेनी शरणार्थियों को लम्बी अवधि के लिये निर्वासन में रहने के लिये मजबूर होना होगा, जिससे पड़ोसी देशों में श्रम बाज़ार और सामाजिक संरक्षा प्रणालियों पर दबाव बढ़ेगा.
कुछ देशों में बेरोज़गारी बढ़ने की स्थिति भी पैदा हो सकती है.
रूसी महासंघ में आर्थिक व रोज़गार क्षेत्र में आए व्यवधान का असर मध्य एशिया के उन देशों में देखा गया है, जिनकी अर्थव्यवस्था रूस से प्राप्त होने वाले धन-प्रेषण पर निर्भर है. उदाहरणस्वरूप, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़िस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान.
रूसी महासंघ मे बड़ी संख्या में प्रवासी इन देशों से आते हैं, जोकि अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा धन-प्रेषण के रूप में अपने मूल देशों में भेजते हैं.
यूएन एजेंसी ने सचेत किया है कि टकराव जारी रहने और रूसी महासंघ पर लगाई गई पाबन्दियों से, प्रवासी कामगारों के रोज़गार पर असर हो सकता है, जिससे उनके अपने देश लौटने और मध्य एशियाई देशों के लिये आर्थिक हानि होने की आशंका है.
यूक्रेन में युद्ध का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी हुआ है, जिससे कोविड-19 संकट से पुनर्बहाली प्रक्रिया और अधिक जटिल हो गई है. इन परिस्थितियों में रोज़गार वृद्धि, वास्तविक आय और सामाजिक संरक्षा प्रणालियों पर असर पड़ने की सम्भावना है.
यूक्रेन में संकट का श्रम बाज़ार पर असर करने के लिये, श्रम संगठन ने निम्न उपाय प्रस्तुत किये हैं:
- नियोक्ता व कामगार संगठनों के प्रयासों को सहारा दिया जाए, ताकि वे मानव कल्याण समर्थन प्रदान करने और जहाँ तक सम्भव हो, कामकाज जारी रखने में अहम भूमिका निभा सकें.
- यूक्रेन के अपेक्षाकृत सुरक्षित इलाक़ों में लक्षित ढंग से रोज़गार समर्थन मुहैया कराया जाए, ताकि सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों को मज़बूती देकर कामगारों व उद्यमों को दूसरे स्थान पर बसाया जा सके.
- यूक्रेन में सामाजिक संरक्षा प्रणाली को समर्थन प्रदान किया जाए ताकि लाभान्वितों तक ज़रूरी सहायता पहुँचाई जा सके.
- हिंसक संघर्ष के ख़त्म होने के बाद पुनर्निर्माण रणनीति के लिये तैयारी की जाए और रोज़गार-गहन निवेशों के ज़रिये शिष्ट व उत्पादक रोज़गार सृजित किये जा सकें.