शराब को बढ़ावा देने के लिये ऑनलाइन मार्केटिंग, सख़्त नियामन उपायों पर ज़ोर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, शराब पीने को बढ़ावा देने के लिये ऑनलाइन मार्केटिंग का इस्तेमाल बढ़ रहा है, जिसमें ज़्यादा मात्रा में ऐल्कोहॉल का सेवन करने वाले लोगों और युवाओं पर विशेष रूप से लक्षित विज्ञापन तैयार किये जाते हैं. यूएन एजेंसी ने बढ़ते स्वास्थ्य जोखिमों के मद्देनज़र कारगर नियामन उपायों की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
दुनिया भर में, स्वास्थ्य के लिये नुक़सानदेह मद्यपान के परिणामस्वरूप हर वर्ष 30 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जोकि कुल होने वाली मौतों का पाँच फ़ीसदी है.
शराब पीने की वजह से होने वाली इन मौतों में एक बड़ी संख्या युवजन की है. 20 से 39 वर्ष आयु वर्ग में होने वाली कुल मौतों में क़रीब 13 प्रतिशत ऐल्कोहॉल सेवन के कारण होती है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की मंगलवार को प्रकाशित, Reducing the harm from alcohol – by regulating cross-border alcohol marketing, advertising and promotion, नामक रिपोर्ट में राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाकर, ऐल्कोहॉल के प्रचार-प्रसार पर विस्तृत जानकारी दी गई है.
Alcohol causes 1⃣ death every 🔟 seconds.To reduce the harm from alcohol, WHO releases its first report on regulating alcohol marketing across borders 👉https://t.co/oYm5FWjyKP pic.twitter.com/uEzvoX7PqW
WHO
रिपोर्ट में बच्चों, किशोरों, महिलाओं और शराब का अधिक सेवन करने वाले लोगों पर लक्षित विज्ञापनों के प्रति ख़ास तौर से चिन्ता व्यक्त की गई है.
रिपोर्ट बताती है कि बहुत से देशों में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक माहौल की परवाह किये बग़ैर, ऐल्कोहॉल की मार्केटिंग के लिये डिजिटल माध्यमों का भी सहारा लिया जाता है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि, “शराब, युवा लोगों, उनके परिवारों और समाजों से उनका जीवन व सम्भावना छीन लेती है.”
“स्वास्थ्य के लिये स्पष्ट ख़तरा होने के बावजूद, ऐल्कोहॉल के प्रचार-प्रसार पर नियंत्रण, दिमाग़ को प्रभावित करने अन्य उत्पादों की तुलना में कमज़ोर है.”
अध्ययन दर्शाते हैं कि कम उम्र में ही शराब पीने की शुरुआत करना, वयस्क होने के बाद नुक़सानदेह ढँग से ऐल्कोहॉल सेवन की आदत बन सकता है.
दुनिया भर में ऐल्कोहॉल की कुल खपत के तीन-चौथाई हिस्से के लिये पुरुष ज़िम्मेदार हैं.
मगर, महिलाओं में शराब सेवन को बढ़ावा देने के लिये इसे सशक्तिकरण व समानता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक का मानना है कि ऐल्कोहॉल की मार्केटिंग के सिलसिले में कारगर ढँग से लागू किये गए और सुसंगत नियामन की मदद से लोगों के जीवन की रक्षा की जा सकती है.
बेहद परिष्कृत ऑनलाइन मार्केटिंग तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल करते हुए, इण्टरनेट सेवा प्रदात्ता कम्पनियाँ, यूज़र्स की आदतों और पसन्द-नापसन्द के बारे में जानकारी जुटाती हैं.
इसके ज़रिये, ऐल्कोहॉल को बढ़ावा देने में जुटी कम्पनियों के लिये राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाकर लक्षित सन्देश तैयार करने, भेजने और फिर शेयर करने का रास्ता खुल जाता है.
एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में अग्रणी ऐल्कोहॉल कम्पनियों द्वारा किये गए मीडिया व्यय का क़रीब 70 फ़ीसदी, ऑनलाइन प्रचार-प्रसार, ऑनलाइन विज्ञापनों समेत अन्य तरीक़ों में ख़र्च हुआ.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में ऐल्कोहॉल एवं मादक पदार्थ इकाई में विशेषज्ञ डैग रेक्वे ने बताया कि डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल के कारण, ये विज्ञापन देशों की सीमाओं के परे जाते हैं, और सरकारों के लिये ऐसी ऑनलाइन मार्केटिंग पर अपने न्यायिक क्षेत्र में रोक लगा पाना कठिन हो जाता है.
शराब कम्पनियाँ, वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बड़े खेलकूद आयोजनों को भी प्रायोजित करती हैं, जिससे नए दर्शकों में उनके ब्रैण्ड के प्रति जागरूकता बढ़ती है.
इसके समानान्तर, स्पोर्ट्स लीग और क्लब के साथ उनकी साझेदारी के ज़रिये, वे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में नए दर्शकों और सम्भावित उपभोक्ताओं तक अपनी पहुँच बनाते हैं.
साथ ही, अन्तरराष्ट्रीय सब्सक्रिप्शन चैनलों पर फ़िल्मों और धारावाहिकों में उत्पादों का प्रचार किया जाता है.
रिपोर्ट में पेश की गई अनुशन्साओं में ऐल्कोहॉल की मार्केटिंग पर सख़्त उपाय लागू किये जाने या फिर प्रतिबन्ध लगाये जाने की बात कही गई है.
विशेषज्ञों का कहना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों में, सीमा-पार विज्ञापनों के पहलुओं को भी एकीकृत किया जाना होगा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि बहुत से देशों की सरकारों ने शराब की मार्केटिंग पर कुछ हद तक पाबन्दियों को लागू किया है, मगर वे अपेक्षाकृत कमज़ोर हैं.
वर्ष 2018 में, यूएन एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार, अधिकाँश देशों में, परम्परागत मीडिया में शराब के प्रचार-प्रसार पर किसी ना किसी रूप में नियामन है.
मगर, लगभग पचास फ़ीसदी देशों में इण्टरनैट या सोशल मीडिया के लिये कोई नियामन नहीं है.