वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

जलवायु संकट: दुनिया, तापमान वृद्धि की 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा के क़रीब

अमेरिका के कुछ हिस्सों में जंगल की आग फैलने से, सैन फ्रांसिस्को का आकाश.
© Unsplash/Patrick Perkins
अमेरिका के कुछ हिस्सों में जंगल की आग फैलने से, सैन फ्रांसिस्को का आकाश.

जलवायु संकट: दुनिया, तापमान वृद्धि की 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा के क़रीब

जलवायु और पर्यावरण

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, अगले पाँच वर्षों में औसत वैश्विक तापमान के पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से, 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुँच जाने की सम्भावना लगभग 50 फ़ीसदी तक पहुँच गई है, और यह आशंका समय के साथ बढ़ती जा रही है.  

मंगलवार को प्रकाशित 'The Global Annual to Decadal Climate Update'  में आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2022 से 2026 के दौरान, कम से कम कोई एक साल, अब तक का सर्वाधिक गर्म वर्ष होने की 93 प्रतिशत सम्भावना है. अभी तक, वर्ष 2016 को सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया है. 

Tweet URL

इस अवधि (2022-206) के लिये पाँच साल का औसत तापमान, उससे पिछले पाँच साल, यानि 2017-2021 की तुलना में अधिक रहने की सम्भावना भी 93 फ़ीसदी है.

1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य पैरिस समझौते के तहत स्थापित किया गया है, जोकि देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने हेतु, ठोस जलवायु कार्रवाई करने का आहवान करता है, ताकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को सीमित रखा जा सके. 

बढ़ती सम्भावना 

यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस ने बताया कि यह अध्ययन दर्शाता है कि दुनिया, जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते में तापमान वृद्धि पर स्थापित लक्ष्य की निचली सीमा तक पहुँच रही है.

उन्होंने कहा कि 1.5 डिग्री सेल्सियस बिना सोचे-समझे प्रस्तुत किया गया कोई आँकड़ा नहीं है, "बल्कि यह उस बिन्दु का संकेतक है, जहाँ से लोगों और वास्तव में पूरे ग्रह के लिये, जलवायु प्रभाव तेज़ी से हानिकारक होते जाएंगे."

यह रिपोर्ट ब्रिटेन के मौसम विज्ञान कार्यालय ने तैयार की है, जोकि जलवायु सम्बन्धी पूर्वानुमान व आकलन के लिये, यूएन एजेंसी का मुख्य केंद्र है. 

रिपोर्ट के अनुसार, तापमान अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से अधिक होने की सम्भावना, वर्ष 2015 के बाद से लगातार बढ़ी है, जब यह लगभग शून्य थी. 

लेकिन पिछले पाँच वर्षों में सम्भावना बढ़कर 10 प्रतिशत हो गई है और 2022-2026 की अवधि के लिये, लगभग 50 प्रतिशत तक पहुँच गई है.

व्यापक प्रभाव

यूएन एजेंसी प्रमुख पेटेरी टालस ने चेतावनी दी कि जब तक देश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रखेंगे, तापमान वृद्धि होती रहेगी.

उन्होंने कहा, "और इसके साथ-साथ, हमारे महासागर गर्म और अधिक अम्लीय होते रहेंगे, समुद्र में जमा पानी और ग्लेशियर पिघलते रहेंगे, समुद्री जल स्तर बढ़ता रहेगा और चरम मौसम की घटनाएँ बढ़ती जाएंगी."

महासचिव टालस सचेत किया कि आर्कटिक क्षेत्र में तापमान वृद्धि विषमतापूर्ण ढँग से अधिक है और आर्कटिक में परिस्थितियों के बदलने से हम सभी प्रभावित होते हैं.

पैरिस समझौते में उन दीर्घकालिक लक्ष्यों की रूपरेखा पेश की गई है जो सरकारों को वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सैल्सियस से काफ़ी हद तक नीचे सीमित रखने का रास्ता दिखाते हैं. और इस क्रम में, तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये प्रयास भी किये जाने होंगे.

जर्मनी में लोग वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं. (फ़ाइल)
© Unsplash/Markus Spiske
जर्मनी में लोग वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं. (फ़ाइल)

'तय सीमा के क़रीब'

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अन्तर सरकारी पैनल के मुताबिक़, 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से होने वाले जलवायु जोखिम, फ़िलहाल मौजूद परिस्थितियों से अधिक हैं, मगर 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में वे फिर भी कम होंगे. 

रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम के प्रमुख और UK Met Office के डॉक्टर लियोन हर्मैनसन ने कहा, "हमारे नवीनतम जलवायु पूर्वानुमानों से स्पष्ट है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रहेगी, इस सम्भावना के साथ कि 2022 और 2026 के बीच का कोई एक वर्ष, पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो." 

उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी एक वर्ष के 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने का यह अर्थ नहीं है कि हमने पैरिस समझौते की सीमा को पार ही कर लिया हो, लेकिन यह दर्शाता है कि हम एक ऐसी स्थिति के क़रीब पहुँच रहे हैं जहाँ एक लम्बी अवधि के लिये तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है.

वैश्विक जलवायु की स्थिति पर WMO की एक अन्तरिम रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से, 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक था. 2021 की अन्तिम रिपोर्ट 18 मई को जारी की जाएगी.

यूएन एजेंसी के अनुसार, 2021 की शुरुआत और फिर अन्त में 'ला नीन्या'  के कारण, वैश्विक तापमान पर ठण्डा प्रभाव हुआ. हालाँकि, यह केवल अस्थायी असर है और दीर्घकालिक वैश्विक तापमान वृद्धि के रुझान को उलट नहीं सकता है.