प्रति दिन एक से अधिक आपदा की आशंका, जोखिम में कमी के लिये कार्रवाई का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई है कि मानवीय गतिविधियाँ और बर्ताव की वजह से, दुनिया भर में आपदाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे लाखों-करोड़ों ज़िन्दगियों के लिये ख़तरा उत्पन्न हो रहा है. साथ ही, हाल के दशकों में दर्ज की गई आर्थिक व सामाजिक प्रगति पर भी जोखिम मंडरा रहा है.
इस रिपोर्ट को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये यूएन कार्यालय ने जोखिमों में कमी लाने के लिये अगले महीने होने वाले वैश्विक प्लैटफ़ॉर्म से पहले प्रकाशित किया है.
रिपोर्ट दर्शाती है कि पिछले दो दशकों में हर वर्ष 350 से 500, मध्यम से विशाल स्तर तक की आपदाएँ हर साल हुई हैं.
एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक इन आपदाओं की संख्या प्रति वर्ष बढ़कर 560 तक पहुँच जाने की आशंका है, यानि हर दिन औसतन 1.5 आपदाएँ.
From conflict to #COVID19 & the climate crisis, human action is creating greater & more dangerous disaster risks.We all have to work together to stop the spiral of self-destruction.More in the latest @UNDRR Disaster Risk Reduction report: https://t.co/Z9g3tOEoM9 pic.twitter.com/rPEw3i9UWh
UN
रिपोर्ट में इन आपदाओं के लिये, उन नीतिगत, वित्तीय और विकास निर्णयों को ज़िम्मेदार ठहराया है, जिनसे मौजूदा निर्बलताएँ कमज़ोर होती हैं और लोगों के लिये ख़तरा बढ़ता है.
‘Our World at Risk: Transforming Governance for a Resilient Future’ बताती है कि 2015 के सैण्डाई फ़्रेमवर्क के तहत आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों को लागू किये जाने से, अतीत के एक दशक में आपदा प्रभावित लोगों और हताहतों की संख्या में कमी लाना सम्भव हुआ है.
मगर, इन आपदाओं की गहनता और स्तर में निरन्तर वृद्धि हो रही है, और पिछले पाँच वर्षों में मृतकों व प्रभावितों की संख्या, उससे पहले के पाँच वर्षों की तुलना में अधिक है.
आपदाओं का विकासशील देशों पर विषमतापूर्ण असर होता है, जिन्हें प्रति वर्ष अपने सकल घरेलू उत्पाद में औसतन एक फ़ीसदी का नुक़सान उठाना पड़ता है, जबकि विकसित देशों के लिये यह आँकड़ा 0.3 प्रतिशत से भी कम है.
एशिया-प्रशान्त क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं की सबसे अधिक क़ीमत चुकानी पड़ती है, जहाँ इन घटनाओं के कारण हर वर्ष औसतन 1.6 प्रतिशत जीडीपी का नुक़सान होता है.
विकासशील देशों में भी, निर्धनतम आबादी को इन आपदाओं की सबसे ज़्यादा पीड़ा झेलनी पड़ती है.
पुनर्बहाली प्रयासों में बीमा के अभाव में, आपदाओं का असर लम्बे समय तक महसूस किया जाता है. वर्ष 1980 के बाद से, आपदा-सम्बन्धी कुल हानि में से केवल 40 प्रतिशत का ही बीमा किया गया था.
विकासशील देशों में बीमा कवरेज की दर अक्सर 10 फ़ीसदी से भी कम होती है, और कभी-कभी तो यह लगभग शून्य है.
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और यूएन एजेंसी प्रमुख मामी मीज़ूतोरी ने कहा, “आपदाओं की रोकथाम की जा सकती है, मगर तभी, यदि देश अपने जोखिमों को समझने व उन्हें कम करने के लिये समय व संसाधनों का निवेश करें.”
उन्होंने सचेत किया कि जानबूझकर जोखिमों को नज़रअन्दाज़ करने और निर्णय-निर्धारण को एकीकृत करने में विफल रहने से, दुनिया अपनी ही तबाही के लिये वित्तीय ज़मीन तैयार कर रही है.
“अति महत्वपूर्ण सैक्टरों, सरकारों से लेकर विकास एवं वित्तीय सेवाओं तक, को तत्काल पुनर्विचार करना होगा कि वे आपदा जोखिमों को किस तरह देखते हैं, और उनसे निपटते हैं.”
आपदा जोखिम का एक बड़ा हिस्सा, चरम मौसम की घटनाएँ हैं, जिसकी जलवायु परिवर्तन एक बड़ी वजह है.
जलवायु परिवर्तन के लिये यूएन के वार्षिक सम्मेलन (कॉप26) के दौरान जलवायु अनुकूलन प्रयासों में तेज़ी लाये जाने की पुकार लगाई गई थी, और GAR2022 रिपोर्ट में उसी पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि नीतिनिर्धारक किस तरह जलवायु बदलावों से ना प्रभावित होने वाले विकास व निवेशों को आकार दे सकते हैं.
इन उपायों में, राष्ट्रीय बजट योजना में सुधार लाते हुए, जोखिमों व अनिश्चितताओं को समाहित करना, और उसके समानान्तर, जोखिम में कमी लाने को प्रोत्साहित करने के इरादे से, क़ानूनी व वित्तीय प्रणालियों में फेरबदल करना है.
रिपोर्ट में कुछ ऐसे उदाहरण भी साझा किये गए हैं, जिन्हें देश सर्वोत्तम उपायों के रूप में अपना या सीख सकते हैं.
जैसेकि, कोस्टा रीका में वर्ष 1997 में ईंधन पर कार्बन कर लगाया गया, जिससे आपदाओं की एक बड़ी वजह बन रहे, वनों की कटाई की रोकथाम करने में मदद मिली और अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुँचा.
वर्ष 2018 तक, कोस्टा रीका में लगभग 98 फ़ीसदी बिजली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त होती है.