
आपबीती: मारियुपोल के एक तहख़ाने में गुज़रा एक महीना
आक्रमणकारी रूसी सैन्य बलों ने दक्षिणी यूक्रेन में स्थित बन्दरगाह शहर मारियुपोल को लगभग पूरी तरह बर्बाद कर दिया है. शहर की पूर्व निवासी ऐलिना बेस्क्रोफ़्ना ने यूएन न्यूज़ के साथ एक बातचीत में अपनी व्यथा बयान करते हुए बताया कि उन्होंने वहाँ से जान बचाकर निकलने से पहले, भीषण लड़ाई और तबाही के बीच किस तरह तहख़ाने (basement) में रहकर एक महीना गुज़ारा.
युद्ध के कारण यूक्रेन में विस्थापित हुए और अन्य पड़ोसी देशों में शरण लेने वाले लोगों तक संयुक्त राष्ट्र द्वारा निरन्तर सहायता पहुँचाई जा रही है.
ऐलिना बेस्क्रोफ़्ना ने बताया कि “आक्रमण वाले दिन की सुबह, मैंने अपना अपार्टमेंट छोड़ दिया और लगभग एक महीना मारियुपोल के बाहरी इलाक़े में स्थित एक तहख़ाने में गुज़ारे, 23 मार्च को वहाँ से निकल जाने तक.
शुरुआती कुछ दिन एक अजीबोग़रीब उनीन्देपन में कुछ मित्रों के साथ मिलने-जुलने और बातचीत में गुज़र गए. हमारे पास हमारी ज़रूरत का सब सामान था...जब तक कि वो ख़त्म ना हो गया.
पहले बिजली चली गई, जब रूस ने शहर की विद्युत प्रणाली पर बमबारी की. लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन की बैट्री ख़त्म होने लगी.
फिर रूसियों ने जल प्रणाली को निशाना बनाया. जब तक टण्की से पानी आ रहा था, हमने जितना सम्भव हो सका, पानी बाल्टियों में भर लिया.
लेकिन जल्द ही महसूस हुआ कि पेयजल की क़िल्लत एक बड़ी समस्या होगी.
और फिर हमने एक बड़ा धमाका सुना और गैस आपूर्ति भी चली गई. इसका अर्थ था लकडियों को एकत्र करना, उन्हें काटना और तहख़ाने के प्रवेश द्वार पर आग जलाना.

‘लोग छतों से कूद गए’
दूसरा सप्ताह ख़त्म होते-होते, हमने लगातार गोलाबारी सुनी, जोकि शहर के उत्तरी हिस्से से हो रही थी और जिसमें हमारे नज़दीक के रिहायशी इलाक़ों को निशाना बनाया जा रहा था.
दो मिसाइलें सड़क के दूसरी ओर स्थित एक नौ-मंज़िला इमारत पर गिरीं जोकि हमारे तहख़ाने के ठीक सामने थी.
हमने चौथे तल को आग की लपटों में घिरा पाया और लोग वहाँ से कूद गए जिससे उनकी मौत हो गई.
जब भी हमारे पास कोई एक मिसाइल आकर गिरी, तो ऐसा लगा कि यह हमारी ओर ही आ रही थी.
हमने झटकों को महसूस किया; तहख़ाने की दीवारों और फ़र्श पर दरारें हर एक झटके से और चौड़ी हो जाती थीं.
और हम सोचते थे कि इस इमारत की नींव और कितना बर्दाश्त कर सकती है.

‘पता नहीं मेरे पिता जीवित हैं भी या नहीं’
आक्रमण के शुरुआती दिनों में, रूसियों ने ऊँची इमारतों वाले एक रिहायशी इलाक़ों में स्थित एक संचार स्टेशन को निशाना बनाया.
मैं जानती थी कि ऐसा क्यों किया जा रहा है: हमें पूरी तरह असहाय, निराश, हतोत्साहित करने और बाहरी दुनिया से सम्पर्क काटने के लिये.
मेरा अपने पिता से सम्पर्क टूट गया. वो शहर के दूसरे इलाक़े में थे और मुझे निश्चित रूप से पता नहीं था कि मैं फिर कभी उन्हें देख भी पाऊंगी या नहीं.
मैं बस यही आशा करती थी कि वो किसी तरह चलकर हम तक पहुँच जाएंगे, चूंकि उनके पास हमारा पता था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
मुझे अब भी नहीं पता कि वो जीवित हैं या नहीं. मैं नहीं जानती अगर रूस ने उन्हें बलपूर्वक हिरासत में ले लिया हो. शहर में अफ़वाहें फैलनी शुरू हुईं कि अब शहर पर रूसी नियंत्रण हो गया है और यह अब रूसी क्षेत्र है.
हमने चेचेनों के सड़कों पर घूमने की भयावह घटनाएँ सुनीं, जो महिलाओं का बलात्कार कर रहे थे, बेहद नज़दीक से आम लोगो को गोलियाँ मार रहे थे.
और यह भी कि शहर के तीनों छोर पर लड़ाई के बीच जान बचाने के लिये भागने की कोशिश करना भी कितना ख़तरनाक था.
इसलिये किसी ने भागने की हिम्मत नहीं की. बाहरी दुनिया से सम्पर्क ना हो पाने की वजह से ऐसा महसूस हुआ जैसेकि हमारे चारों ओर सामूहिक हत्याएँ की जा रही थीं, और दुनिया को उसका कुछ पता नहीं था.
और कि जो कुछ हो रहा था उसकी वास्तविकता कभी सामने नहीं आ आएगी.

बलात्कार का भय
मुझे दो बड़े डर थे. एक बलात्कार का था, जिसे रूसी सैन्य बल युद्ध के एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल करते है और हमें इस बारे में पता है.
और दूसरा बलपूर्वक रूस या फिर तथाकथित दोनेत्स्क जन गणराज्य में ले जाये जाने का था.
मुझे ये भी चिन्ता थी कि मारियुपोल को दोनेत्स्क जन गणराज्य का हिस्सा घोषित किया जा रहा है, जिससे वहाँ से निकल पाने की मेरी आशा धूमिल हो जाएगी.
मैं बस यही सोचती रहती थी, क्या वे हमें बाहर जाने देंगे? क्या बाहर निकलने का कोई रास्ता है?
जो कोई भी शुरू के तीन-चार दिनों में नहीं निकल पाया, वो उसके बाद वहाँ से जाने में असमर्थ थे, चूँकि लड़ाई लगातार हो रही थी और रूसी सैन्य बल तीन दिशाओं से शहर की ओर बढ़ रहे थे.
बचकर निकलने की कोशिश
जिन्होंने भागने की कोशिश की, उन्होंने स्वयं को एक रणक्षेत्र में घिरा पाया.
हम बस एक सम्भावित रास्ते के खुलने की ही प्रतीक्षा कर सकते थे. युद्ध के दूसरे सप्ताह में, रूसी टैलीग्राम (सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म) एक अफ़वाह फैली कि एक संगठित समूह, थिएटर के पास एकत्र हो रहा है और पश्चिम की ओर मनहुश की ओर बढ़ रहा है.
जिस किसी के पास भी एक वाहन था और पर्याप्त ईंधन, उसने अपनी गाड़ी के शीशे पर यह दर्शाने के लिये एक सफ़ेद कपड़ा रखा कि वे आम लोग हैं और बच कर निकलने की कोशिश कर रहे हैं.
और फिर वे उस स्थल तक पहुँचे जहाँ लोग एकत्र होने की बात कही जा रही थी. मगर, वहाँ कुछ नहीं था. यह एक झूठी अफ़वाह साबित हुई.
20 मार्च तक, रूसियों ने पूरी तरह से अज़ोव सागर के पास एक भूमि पट्टी को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया था – बर्ड्यान्सक और मनहुश से मारियुपोल के बाहरी इलाक़े तक.
तीन दिन बाद हमने आम लोगो को निशाना बनाये जाने की रिपोर्टों के बावजूद शहर छोड़ने का निर्णय किया. उस समय शहर पर लगातार ताबड़तोड़ और सटीक गोलाबारी की जा रही थी.

मैंने अपनी आँखों से देखा कि किस तरह अपार्टमेंट इमारतों को निशाना बनाया गया, मानो वे कोई एक कम्पयूटर गेम खेल रहे हों.
हमारे पास भोजन और जल समाप्त होता जा रहा था. मैं एक महीने से स्नान नहीं कर पाई थी.
‘भयावह’ यात्रा
23 मार्च की सुबह 7 बजे, हमने ज़ैपोरिझिया की ओर बढ़ना शुरू किया. 16 रूसी चौकियों से गुज़रने की वजह से हमें इस यात्रा में 14 घण्टे का समय लगा, जबकि आम तौर पर यह रास्ता तीन घण्टे में पूरा किया जा सकता है.
गाड़ी से किया गया ये सफ़र भयावह था. रूसी सेना ने हमारे कपड़े उतरवा कर तलाशी ली, दस्तावेज़ों को देखा और हर पुरुष को हिरासत में ले लिया.
मगर, एक बार ज़ैपोरिझिया के नज़दीक यूक्रेनी चैक प्वाइंट पर पहुँचने के बाद हमें यूक्रेनी भाषा सुनाई दी.
ऐसा महसूस हुआ कि हमने यह सफ़र पूरा कर लिया था, जैसेकि हम अपेक्षाकृत सुरक्षित थे.
विनाश और मौत के एक अंधियारे कुँए से बाहर निकलने जैसी अनुभूति होने के बावजूद, ज़ैपोरिझिया भी कोई सुरक्षित जगर नहीं थी; वहाँ लगातार हवाई धावे हो रहे थे.
मगर, हम मारियुपोल से बाहर निकलने में सफल हो गए थे, और हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि हम जीवित हैं.”