टिकाऊ विकास: विकासशील देशों के लिये वित्त पोषण सुनिश्चित किये जाने पर बल

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि अनेक विकासशील देशों को कर्ज़ लेने के बाद उसे चुकाने की भारी क़ीमत का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिये कोविड-19 महामारी से पुनर्बहाली के रास्ते में अवरोध पैदा हुए हैं और उन्हें विकास मद में व्यय में कटौती के लिये भी मजबूर होना पड़ा है. यूक्रेन में युद्ध के कारण ईंधन और खाद्य क़ीमतों में उछाल की वजह से आर्थिक परिदृश्य और अधिक चुनौतीपूर्ण होने की आशंका व्यक्त की गई है.
संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को ‘2022 Financing for Sustainable Development Report: Bridging the Finance Divide’ नामक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें टिकाऊ विकास के लिये वित्त पोषण की उपलब्धता की समीक्षा की गई है.
रिपोर्ट बताती है कि बेहद कम ब्याज़ दरों पर रिकॉर्ड धनराशि उधार लेकर, धनी देशों के लिये वैश्विक महामारी से उबर पाना सम्भव हुआ है.
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मगर, निर्धनतम देशों को अरबों डॉलर अपने ऋण की क़िस्त अदायगी में चुकाना पड़ा और इस वजह से टिकाऊ विकास में निवेश नहीं हो पाया.
रिपोर्ट के अनुसार, औसतन, निर्धनतम विकासशील देशों को अपने कुल राजस्व का 14 प्रतिशत हिस्सा कर्ज पर ब्याज़ के लिये देना पड़ता है.
विकसित देशों (3.5 प्रतिशत) की तुलना में ये आँकड़ा चार गुना अधिक है.
विश्व में, अनेक विकासशील देशों को वैश्विक महामारी के कारण अपने शिक्षा, बुनियादी ढाँचे व अन्य अहम सैक्टरों में कटौती के लिये मजबूर होना पड़ा है.
संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने कहा, “ऐसे समय में जब हम विश्व के टिकाऊ विकास लक्ष्यों को वित्त पोषित करने के आधे रास्ते पर पहुँच रहे हैं, ये निष्कर्ष चिन्ताजनक हैं.”
यूएन उपप्रमुख ने कहा कि सामूहिक दायित्व के इस निर्धारक क्षण में कोई क़दम ना उठाने और भूख की मार व निर्धनता झेल रहे लोगों की सहायता ना कर पाने के लिये कोई बहाना नहीं है.
“हमें शिष्ट एवं हरित रोज़गार, सामाजिक संरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की सुलभता के लिये निवेश करना होगा और किसी को भी पीछे नहीं छूटने देना होगा.”
वर्ष 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण साढ़े सात करोड़ से अधिक लोग चरम निर्धनता का शिकार हुए और साल का अन्त होते-होते, अनेक अर्थव्यवस्थाएँ, 2019 से पहले के स्तर से भी नीचे पहुँच गईं.
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि हर पाँच में से एक विकासशील देश में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, वर्ष 2023 के अन्त से पहले 2019 के स्तर तक नहीं लौट पाएगा.
ऐसी आशंका, यूक्रेन में युद्ध के असर के आकलन से पहले आंकी गई है, और यूक्रेन में युद्ध के कारण ये चुनौतियाँ और अधिक गहरी होने की आशंका है.
साथ ही, ऊर्जा की ऊँची क़ीमतों, वस्तुओं के दामों में उछाल, सप्लाई चेन में फिर से व्यवधान दर्ज होने, मुद्रास्फीति की ऊँची दर व सुस्त प्रगति के कारण नई चुनौतियाँ पैदा होंगी.
इस पृष्ठभूमि में अनेक विकासशील देशों के लिये कर्ज़ का दबाव और बढ़ेगा और भरपेट भोजन ना पाने वाले लोगों की संख्या भी.
रिपोर्ट बताती है कि निर्धनता में कमी लाने, सामाजिक संरक्षा और टिकाऊ विकास में निवेश के क्षेत्र में कुछ प्रगति दर्ज की गई है, जोकि विकसित और कुछ बड़े विकासशील देशों द्वारा उठाए गए क़दमों के ज़रिये सम्भव हुआ है.
उदाहरणस्वरूप, कोविड-19 आपात व्यय में 17 हज़ार अरब डॉलर का ख़र्च किया गया है.
इसके तहत, शोध एवं विकास, हरित ऊर्जा और डिजिटल टैक्नॉलॉजी के लिये वित्तीय समर्थन बढ़ा है, निजी निवेश में उछाल आया है. साथ ही, आधिकारिक विकास सहायता में भी रिकॉर्ड प्रगति नज़र आई है और यह रक़म 161 अरब डॉलर तक पहुँच गई.
मगर, विकासशील देशों में विशाल ज़रूरतों के कारण यह धनराशि अपर्याप्त है और यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि में इसमें कटौती भी दर्ज की जा सकती है.
रिपोर्ट में तीन अहम क्षेत्रों में क़दम उठाये जाने की पुकार लगाई गई है:
- वित्त पोषण सम्बन्धी कमियों और उभरते कर्ज़ जोखिमों से तत्काल निपटा जाना होगा
- सभी वित्तीय लेनदेन को टिकाऊ विकास की ज़रूरतों के अनुरूप बनाया जाना होगा
- पारदर्शिता बढ़ानी होगी और एक सूचना पारिस्थितिकी तंत्र के सहारे जोखिमों पर पार पाने और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल किये देशों की क्षमता को मज़बूती प्रदान करनी होगी